वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किस पत्रिका का सम्पादन किया
(क) माधुरी
(ख) जागरण
(ग) कविवचन सुधा
(घ) सरस्वती
2. शकुन्तला ने किस भाषा में श्लोक कहा
(क) अपभ्रंश
(ख) प्राकृत
(ग) शौरसेनी
(घ) पाली
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
3. ‘रसज्ञ रंजन’ के रचयिता का नाम है
(क) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(ख) प्रताप नारायण मिश्र
(ग) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(घ) बद्रीनारायण प्रेमचन्द।
4. ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक निबन्ध द्विवेदी जी के किस निबन्ध-संग्रह से लिया गया है
(क) रसज्ञरंजन
(ख) महिला मोद
(ग) अद्भुत आलाप
(घ) साहित्यसीकर
5. ‘स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक निबन्ध ‘सरस्वती’ में सन् 1914 में किस नाम से प्रकाशित हुआ था?
(क) स्त्री-शिक्षा के दोष
(ख) स्त्री-शिक्षा का अनुचित विरोध
(ग) पढ़े-लिखों का पांडित्य
(घ) स्त्री-शिक्षा का विरोध और सामाजिक अहित
6. ‘गॅवारों की भाषा’ कहा गया है
(क) संस्कृत को
(ख) प्राकृत को
(ग) अपभ्रंश को .
(घ) शौरसेनी को
7. शकुंतला ने दुर्वाक्य कहे थे
(क) दुष्यन्त से
(ख) कण्व से
(ग) अनुसूया से
(घ) प्रियंवदा से
8. सीता ने अपने संदेश में राम को कही थी
(क) प्रियतम
(ख) आर्यपुत्र
(ग) अनार्य
(घ) राजा
9. शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में निरुत्तर करने वाली विदुषी थी
(क) गार्गी
(ख) अनुसूया
(ग) मंडन मिश्र की पत्नी
(घ) विज्जा
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.बौद्ध धर्म के त्रिपिटक ग्रंथ की भाषा क्या है?
उत्तर : बौद्ध धर्म के त्रिपिटक ग्रंथ की भाषा प्राकृत है
प्रश्न 2. रुक्मिणी हरण की कथा कहाँ मिलती है?
उत्तर: ‘रुक्मिणी हरण’ की कथा श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध में मिलती है।
प्रश्न 3. पाठ में आये प्राचीन कालीन विदुषी महिलाओं के नाम लिखिए।
उत्तर: पाठ में आई विदुषी महिलाओं के नाम हैं- शीला, विज्जा, अनुसूया, गार्गी इत्यादि।
प्रश्न 4. शकुंतला ने दुष्यंत के विषय में दुर्वाक्य क्यों कहे?
उत्तर: शकुंतला के साथ राजा दुष्यंत ने गांधर्व विवाह किया था किंतु बाद में उसको पहचानने से भी मना कर दिया था। इससे कुपित और अपमानित होकर शकुंतला ने उनसे दुर्वचन कहे थे।
प्रश्न 5. नाट्यशास्त्र सम्बन्धी नियमों में स्त्री-पात्रों के लिए कौन-सी भाषा निर्धारित की गई है?
उत्तर: नाट्यशास्त्र सम्बन्धी नियमों में स्त्री-पात्रों के लिए प्राकृत भाषा निर्धारित की गई है।
प्रश्न 6.“नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:जिस समय आचार्यों ने नाट्यशास्त्र के नियम बनाये थे, उस समय सभी लोग संस्कृत का प्रयोग नहीं करते थे। अधिकांश लोग प्राकृत बोलते थे और वही जनभाषा थी।
अतः उन्होंने स्त्रियों के संवाद संस्कृत में नहीं रखने का नियम बनाया। पुरुषों के संवाद संस्कृत में रखे जाते थे।
प्रश्न 7.“यह सारा दुराचार स्त्रियों के पढ़ाने का ही कुफल हैं”–पंक्ति में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:गार्गी ने बड़े-बड़े ब्रह्मवादियों के शास्त्रार्थ में छक्के छुड़ा दिए थे। पं. मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को निरुत्तर कर दिया था। यदि वे पढ़ी-लिखी न होतीं तो विद्वान पुरुषों से तर्क-वितर्क नहीं कर सकती थीं। उपर्युक्त वाक्य में इन विदुषी-नारियों की प्रशंसा की गई है। ऐसी महिलाओं की शास्त्रार्थ करने की कुशलता को पढ़ाई के कारण होने वाला ‘दुराचार’ बताने वालों की मूर्खता पर कठोर व्यंग्य किया गया है।
प्रश्न 8.द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा के समर्थन में कौन-कौन से तर्क दिए हैं? .
उत्तर:द्विवेदी जी ने कहा है कि स्त्री-शिक्षा देश और समाज की प्रगति में सहायक है। शिक्षा से कोई अनर्थ नहीं होता। यदि शकुंतला ने दुष्यंत तथा सीता ने राम के व्यवहार की निन्दा की थी तो उसका कारण उनकी पढ़ाई नहीं थी। शिक्षा से यदि अनर्थ होता है तो वह पुरुषों की शिक्षा से भी होगा। यदि प्राचीन काल में स्त्री-शिक्षा नहीं थी तो इस कारण वर्तमान में स्त्री-शिक्षा का विरोध करना उचित नहीं है।
बोधमूलक प्रश्न -
प्रश्न 1: कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर: द्विवेदी जी ने पुराने जमाने के ऐसे कितने उदाहरण दिए हैं जिनमें पढ़ी लिखी स्त्रियों का उल्लेख हुआ है। इन उदाहरणों की मदद से वे इस कुतर्क को झुठलाना चाहते हैं कि पुराने जमाने में स्त्रियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं थी। वे ये भी बताते हैं कि शायद पुराने जमाने में स्त्रियों को विधिवत शिक्षा देने की जरूरत नहीं पड़ी होगी। लेकिन जब हम जरूरत के हिसाब से हर पद्धति को बदल सकते हैं तो स्त्री शिक्षा के बारे में भी हमें अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है।
प्रश्न 2: ‘स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं’ – कुतर्कवादियों की इस दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया है, अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: दिववेदी जी नए बताया है कि पुरुषों ने स्त्रियों की तुलना में कहीं ज्यादा अनर्थ किए हैं। पुरुषों ने युद्ध में मार काट मचाई है, चोरी की है, डाका डाला है और अन्य कई अपराध किए हैं। इसलिए शिक्षा को अनर्थ के लिए दोष देना उचित नहीं है।
प्रश्न 3: द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है – जैसे ;यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।‘ आप ऐसे अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।
उत्तर: ‘सारा दुराचार स्त्रियों को पढ़ाने का ही नतीजा है।‘ – इस व्यंग्य में उन्होंने उस मानसिकता पर प्रहार किया है जो हर गलत घटना के लिए स्त्रियों की शिक्षा को जिम्मेदार ठहराता है। ‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूँट।‘ – इस पंक्ति के द्वारा द्विवेदी जी स्त्री शिक्षा के विरोधियों की दोहरी मानसिकता के बारे में बता रहे हैं।
प्रश्न 4: पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृत भाषा में बोलना क्या उनके अपढ़ होने का सबूत है – पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: पुराने जमाने में कई ग्रंथ प्राकृत में लिखे गये थे। उदाहरण के लिए बुद्ध के उपदेशों को प्राकृत में लिखा गया था। शाक्यमुनि अपने उपदेश प्राकृत में ही देते थे। इससे यह पता चलता है कि प्राकृत भाषा उस समय अत्यधिक लोगों द्वारा बोली जाती थी। इसके अलावा हमें एक खास भाषा पर महारत को शिक्षा के मुद्दे से अलग करके देखना होगा। आधुनिक भारत में अंग्रेजी बोलने में पारंगत लोगों को अधिक संभ्रांत समझा जाता है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो व्यक्ति अंग्रेजी बोलना नहीं जानता उसे हम अशिक्षित करार दे दें।
प्रश्न 5: परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हों – तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर: परंपराएँ कभी-कभी रूढ़ि बन जाती हैं। जब ऐसी स्थिति हो जाए तो किसी खास परंपरा को तोड़ना ही सबके हित में होता है। समय बदलने के साथ पुरानी परंपराएँ टूटती हैं और नई परंपराओं का निर्माण होता है। इसलिए परंपरा के उन्हीं पक्षों को स्वीकार करना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 6: तब की शिक्षा प्रणाली और अब की शिक्षा प्रणाली में क्या अंतर है? स्पष्ट करें।
उत्तर: अंग्रेजों के आने से पहले तक भारत में शिक्षा की कोई नियमबद्ध प्रणाली नहीं थी। वेदों और पुराणों के जमाने में ऋषि मुनि गुरुकुलों में शिक्षा दिया करते थे। ऐसे गुरुकुलों में छात्रों को गृहस्थ जीवन के लिए हर जरूरी क्रियाकलाप में दक्षता हासिल करनी होती थी। इसके अलावा उन्हें एक अच्छे योद्धा बनने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। आज की शिक्षा प्रणाली अधिक परिष्कृत और नियमबद्ध है। आज नाना प्रकार के विषयों के ज्ञान दिए जाते हैं। पहले स्त्रियों की शिक्षा के लिए कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं थी लेकिन अब ऐसी बात नहीं है।
प्रश्न 7: महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है, कैसे?
उत्तर: महावीर प्रसाद द्विवेदी जिस जमाने के हैं उससे यह साफ पता चलता है कि उनकी सोच कितनी आधुनिक थी। उस जमाने में अधिकाँश लोग स्त्रियों की शिक्षा के खिलाफ थे। ऐसे में कोई स्त्री-पुरुष समानता की बात करे तो इसे दुस्साहस ही कहेंगे। महावीर प्रसाद का खुलापन इसी बात में झलता है।
प्रश्न 8: द्विवेदी जी की भाषा शैली पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर: महावीर प्रसाद द्विवेदी ने खड़ी हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया। उन्होंने भाषा को और शुद्ध तथा परिष्कृत किया। लेकिन उनकी भाषा पाठकों के लिए दुरूह न हो जाए इसका भी ध्यान दिया। उन्होंने अपनी भाषा में सरलता भी लाने की कोशिश की थी। इसके अलावा व्यंग्य का उन्होंने जमकर इस्तेमाल किया है। व्यंग्य के इस्तेमाल से दो फायदे होते हैं। लेखक इससे पाठक को बाँधने में कामयाब हो जाता है। व्यंग्य के माध्यम से गंभीर से गंभीर बात भी आसानी से कही जा सकती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.“स्त्री-शिक्षा अनर्थ का कारण होती है।” स्त्री-शिक्षा के विरोधियों के इस कथन के बारे में द्विवेदी जी ने क्या कहा है? द्विवेदी जी के साथ अपनी सहमति अथवा असहमति व्यक्त कीजिए।
उत्तर:स्त्री-शिक्षा के विरोधी शिक्षा को अनर्थ कारिणी मानते थे। द्विवेदी जी के समय लोग लड़कियों को पढ़ाने के विरुद्ध थे। उनका कहना था कि पढ़-लिखकर स्त्रियाँ उद्दण्ड और दुर्विनीत हो जाती हैं तथा बड़ों का अपमान करती हैं। स्त्रियों की पढाई अनर्थों का कारण होती है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी प्रगतिशील विचारों के धनी थे तथा उनका चिन्तन समयानुकूल था। उनका मानना था कि स्त्री-शिक्षा अनर्थ का कारण नहीं होती। पढ़ने-लिखने से अनर्थ करने वाली कोई बात नहीं होती। अनर्थ स्त्रियों से ही नहीं पुरुषों से भी होते हैं। अनर्थ अपढ़ों और पढ़े-लिखे दोनों से ही होते हैं।
अनर्थ, दुराचार और पापाचार का कारण शिक्षा न होकर मनुष्य का स्वभाव और आचरण होता है।स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होने की सम्भावना कतई नहीं है।द्विवेदी जी अत्यन्त दूरदर्शी थे। वह स्त्री-शिक्षा का महत्व जानते थे। स्त्री-शिक्षा समाज और परिवार के सुचारु संचालन और बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए आवश्यक है। मैं द्विवेदी जी के विचार से सहमत हूँ।
प्रश्न 2.“भवभूति और कालिदास के नाटक जिस जमाने के हैं उस जमाने में शिक्षितों का समस्त समुदाय संस्कृत ही बोलता था, इसका प्रमाण कोई पहले दे ले तबे प्राकृत बोलने वाली स्त्रियों को अपढ़ बताने का साहस करे।” द्विवेदी जी ने यह चुनौती क्यों दी है? ।
उत्तर:प्राकृत भाषा संस्कृत से विकसित हुई है। जब संस्कृत व्याकरण के कठोर नियमों से जकड़ दी गई तो वह सामान्य जन की पहुँच से दूर हो गई। इसके बाद प्राकृत ने जनभाषा का लोकप्रिय रूप ग्रहण कर लिया। स्त्री-शिक्षा के विरोधी प्राकृत को अपढ़ों की भाषा तथा आँवार-भाषा कहते हैं। संस्कृत के नाटकों में स्त्री-पात्र प्राकृत भाषा बोलते थे।
इसको आधार बनाकर वे लोग प्राचीन भारत में स्त्रियों को अपढ़ और निरक्षर बताते थे।इनके अनुसार प्राकृत भाषा का प्रयोग करने वाले सुशिक्षित तथा विद्वान नहीं थे। उनके मते में प्राकृत बोलना और लिखना अपढ़ और अशिक्षित होने का प्रमाण था।द्विवेदी जी प्राकृत को महत्वपूर्ण भाषा मानते हैं जो जनता में प्रचलित हो चुकी थी तथा लोकप्रिय जनभाषा बन गई थी। भवभूति और कालिदास के नाटकों के समय समाज में कुछ लोग ही संस्कृत बोलते थे।
अधिकांश लोगों की भाषा प्राकृत ही थी। नाटकों में स्त्रियों द्वारा प्राकृत में संवाद बोलना उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है।प्राकृत का प्रयोग करने वाले अशिक्षित नहीं होते थे। बौद्ध तथा जैन धर्माचार्यों ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में ही दिये थे। त्रिपिटक ‘गाथा-सप्तशती’, ‘सेतुबंध-महाकाव्य’ तथा ‘कुमारपाल चरित’ आदि ग्रंथ प्राकृत में ही लिखे गये थे।इस ऐतिहासिक सत्य की उपेक्षा करके प्राचीन भारत की स्त्रियों को नँवार और निरक्षर बताने वालों के निराधार हठ के कारण द्विवेदी जी ने यह चुनौती दी है।
प्रश्न 3.प्राचीन शिक्षा प्रणाली और आधुनिक शिक्षा प्रणाली में क्या अन्तर है?
उत्तर:प्राचीन शिक्षा प्रणाली गुरुकुल पद्धति पर आधारित थी। इसमें विद्यार्थी को अपना घर छोड़कर गुरुकुल में रहकर पढ़ना पड़ता था। गुरुकुल में सभी छात्र समान रूप से रहते तथा विद्याध्ययन करते थे। जब उनकी शिक्षा पूरी हो जाती थी तभी उनको अपने घर जाने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की अनुमति होती थी।आज शिक्षा का स्वरूप बहुत व्यापक है। शिक्षा देने वाले अनेक स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय हैं।
तकनीकी, वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग आदि विषयों की शिक्षा के लिए अलग-अलग संस्थायें हैं।कुछ विद्यालयों में दिन में कक्षा में पढ़ने के बाद छात्र घर आ सकते हैं, कुछ में वहीं रहकर शिक्षा प्राप्त करनी होती है। इनको क्रमश: ‘डे स्कॉलर’ और ‘हॉस्टलर’ कहते हैं। छात्राओं के लिए अलग से विद्यालय होते हैं यद्यपि सह-शिक्षा भी दी जाती है। दिन में काम करने वालों के लिए सायंकालीन कक्षायें भी संचालित होती हैं।प्राचीन काल में शिक्षा का उद्देश्य आत्मा की मुक्ति प्राप्त करना था।
शिक्षा आध्यात्मिक होती थी। उसमें धर्म, नैतिकता आदि मानवीय गुणों को प्रोत्साहन दिया जाता था। | आज की शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को धनोपार्जन के योग्य बनाना है। वह भौतिकता से प्रेरित है। जीवन में सफलता पाना ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए कोई भी उपयुक्त साधन स्वीकार किया जा सकता है।इस प्रकार व्यवस्था, पाठ्यक्रम और उद्देश्य की दृष्टि से भी आधुनिक और प्राचीन शिक्षा प्रणाली में गहरा अन्तर है।
प्रश्न 4.द्विवेदी जी की भाषा तथा शैली के विषय में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी खड़ी बोली को सहज रूप में रखा जिससे वह जनसाधारण के निकट रह सकी। उनकी भाषा स्वाभाविक तथा अकृत्रिम है। उसमें वाक्य छोटे तथा शब्द सरल हैं। द्विवेदी जी ने विषय और भाव की आवश्यकता के अनुरूप शब्दों का चयन किया है। तत्सम शब्दों के साथ अन्य भाषा के जनता में प्रचलित शब्दों को भी उदारतापूर्वक उन्होंने अपनाया है।
मूल रूप में उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है। लोकोक्तियों तथा मुहावरों के प्रयोग ने उनकी भाषा को प्रभावशाली बनाया है। द्विवेदी जी ने प्रसंग के अनुसार अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। इस निबंध में उनकी विचारात्मक, तार्किक, व्यंग्यात्मक, उपदेशात्मक आदि शैलियों के दर्शन होते हैं। द्विवेदी जी द्वारा प्रयुक्त शैली का उदाहरण निम्नलिखित है
“मान लीजिए पुराने जमाने में भारत की एक भी स्त्री पढ़ी-लिखी न थी। न सही। उस समय स्त्रियों को पढ़ाने की जरूरत न समझी गई होगी। पर अब तो है। अतएव पढ़ाना चाहिए।”व्यंग्यात्मक शैली का एक अन्य उदाहरण दर्शनीय हैआर्य पुत्र, शाबाश! बड़ा अच्छा काम किया, जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं।”
प्रश्न 5.महावीर प्रसाद द्विवेदी ने स्त्री-शिक्षा का महत्व किन शब्दों में प्रतिपादित किया है?
(अथवा)’स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक निबन्ध का प्रतिपाद्य क्या है?
उत्तर:द्विवेदी जी प्रगतिशील सोच वाले व्यक्ति थे। वह जानते थे कि समाज तथा देश के हित के लिए देशवासियों का सुशिक्षित होना आवश्यक है। उनके समय में कुछ पुरातनपंथी लोग स्त्री-शिक्षा के विरोधी थे तथा अपनी निराधार सोंच के समर्थन में बेतुके कुतर्क दिया करते थे।द्विवेदी जी ने उनके विचारों के खंडन के लिए ही यह निबन्ध लिखा था। द्विवेदी जी ने बताया है कि प्राकृत अपढ़ों-गॅवारों की भाषा नहीं थी। गौतम बुद्ध ने प्राकृत में ही उपदेश दिये थे।
जैन धर्म के उपदेश भी प्राकृत में दिये गये थे। त्रिपिटक गाथा-सप्तशती, सेतुबंध महाकाव्य, कुमारपाल चरित आदि की रचना प्राकृत में ही हुई थी। प्राकृत भाषा जनता में। प्रचलित थी। संस्कृत का प्रयोग तो कुछ लोग ही करते थे। प्राकृत आँवारों की भाषा नहीं थी और न प्राकृत के प्रयोग करने वाले अपढ़ और गॅवार। नाटकों में स्त्री-पात्रों द्वारा प्राकृत बोलना भी उनके अपढ़ होने का प्रमाण नहीं है।
स्त्री-शिक्षा समाज के लिए आवश्यक तथा हितकर है। स्त्रियों को शिक्षा न देना समाज तथा देश को पतन की ओर ले जाने वाला है। यदि प्राचीन भारत में स्त्रियाँ अशिक्षित थीं तब भी वर्तमान में उनको शिक्षा देना बहुत जरूरी है। स्त्री शिक्षा ही इस निबंध का प्रतिपाद्य है।
प्रश्न 6.यदि आपको भारतीय समाज के उत्थान का कार्य सौंपा जाय तो आप यह कार्य कैसे करेंगे? कल्पना पर आधारित उत्तर दीजिए।
उत्तर:हमारा देश भारत निरन्तर प्रगति-पथ पर बढ़ रहा है। इसका कारण हमारे नेतृत्व द्वारा समयानुकूल दृष्टिकोण अपनाना है। यदि मुझको अपने समाज के उत्थान का कोई कार्य सौंपा जायगा तो इसको पूरा करने में मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए मैं अपने देश के बालक-बालिकाओं को अच्छी और समय की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध करूंगा।
आज का समय विज्ञान और तकनीक का है। मैं अपने देश के बच्चों को ऐसी शिक्षा दिलाना चाहूँगा कि वे विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में देश को आगे बढ़ा सकें। भाषा एवं साहित्य की शिक्षा आज उतनी उपयोगी नहीं रह गई है। अब तो पूरी बड़ी-बड़ी पुस्तकें भी इंटरनेट पर पढ़ने के लिए उपलब्ध हैं। अतः प्रगति पथ पर बढ़ते हुए विश्व के देशों के साथ
द्विवेदी जी के ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक निबन्ध का सारांश लिखिए।
उत्तर- पाठ-परिचय-सितम्बर, 1914 को ‘सरस्वती’ पत्रिका में द्विवेदी जी का ‘पढ़े-लिखों का पांडित्य’ शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ था। इसी को अपने निबन्ध-संग्रह ‘महिला मोद’ में आपने ‘स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन’ शीर्षक देकर छापा था। इसमें स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वालों के विचारों को सतर्क खंडन किया गया है।
स्त्री-शिक्षा का विरोध-कुछ लोग स्त्री शिक्षा विरोधी थे तथा उसको स्त्रियों तथा घर के सुख का विनाशक मानते थे। इन लोगों में धर्मशास्त्र तथा संस्कृत साहित्य के ज्ञाता तथा शिक्षाशास्त्री भी थे।
संस्कृत के नाटकों में संवाद-ऐसे लोगों का तर्क था कि प्राचीनकाल में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। तभी तो संस्कृत नाटकों में स्त्रियों के संवाद संस्कृत में न होकर अपढ़ों की भाषा में होते थे। शकुंतला ने इसी भाषा में श्लोक लिखकर दुष्यन्त को कटु वाक्य कहे थे। इससे सिद्ध होता है कि अपढ़ों की भाषा का ज्ञान कराना भी स्त्रियों के लिए हितकर नहीं है।
प्राकृत अपढ़ों की भाषा नहीं-नाटकों में स्त्रियों के संवाद प्राकृत में होते थे। प्राकृते अपढ़ों की भाषा नहीं थी। वह जन भाषा थी तथा संस्कृत के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय थी। उसमें बौद्धधर्म और जैन-धर्म से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे गये थे। ‘गाथा-सप्तशती’, ‘कुमारपाल चरित’ प्राकृत में ही लिखे गये थे। प्राकृत पढ़े हुए लोग सभ्य, शिक्षित और विद्वान थे।
शंकुतला और सीता-शकुंतला ने दुष्यंत से कटुवचन कहे थे। यह उसकी पढ़ाई का दुष्परिणाम नहीं था। दुष्यंत के व्यवहार से वह आहत और अपमानित थी। उसके कटुवचन उसकी प्रतिक्रिया थे। सीता ने भी अपने परित्याग पर राम को आर्यपुत्र न कहकर राजा संबोधित कर अपनी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी। महर्षि वाल्मीकि ने भी राम पर क्रोध व्यक्त किया है।
प्राचीन विदुषियाँ-पुराने समय में स्त्री-शिक्षा का प्रमाण न मिलने का अर्थ यह नहीं है कि उस समय स्त्रियाँ अपढ़ थीं। ‘उत्तर रामचरित’ में कवियों की पत्नियाँ संस्कृत बोलती थीं। स्त्रियों ने वेद मंत्रों की रचना की थी। ‘त्रिपिटक’ में सैकड़ों स्त्रियों की पद्य-रचनाएँ उद्धृत हैं। शीला और विज्जा की कविता के नमूने शाङ्गधर-पद्धति’ में मिलते हैं। अत्रि की पत्नी ने पत्नीधर्म पर पांडित्यपूर्ण व्याख्यान दिया था। गार्गी ने ब्रह्मवादियों को शास्त्रार्थ में हराया था। मंडन मिश्र की पत्नी ने शंकराचार्य को हराया था। इसी प्रकार अनेक विदुषी स्त्रियाँ प्राचीन भारत में हो चुकी हैं। श्रीमद्भागवत में ‘रुक्मिणी हरण’ की कथा है। रुक्मिणी ने एक पत्र संस्कृत में लिखकर ही श्रीकृष्ण को भेजा था।
पढ़ाई और दुर्व्यवहार-दुर्व्यवहार का कारण पढ़ाई नहीं है। महापुरुषों से तर्क करना अथवा पुरुषों के अनुचित व्यवहार का प्रतिरोध करना पढ़ाई का दुष्परिणाम नहीं है। पढ़ाई में कोई अनर्थ नहीं है। अनर्थ स्त्री-पुरुष दोनों से ही हो सकता है। पढ़ेलिखे और अपढ़ दोनों ही गलत व्यवहार कर सकते हैं। पढ़ाई के कारण स्त्रियाँ परिवार में अशांति पैदा नहीं करतीं।
स्त्रियों को पढ़ाने का विरोध अनुचित-शिक्षा व्यापक शब्द है। उसमें अनेक सीखने योग्य बातें हैं। पढ़ाई भी इनमें एक है। स्त्रियों की पढ़ाई का विरोध उचित नहीं है। ऐसा करने वाले समाज का अपकार करने वाले हैं। वर्तमान शिक्षा-प्रणाली यदि दोषपूर्ण है तो उसका सुधार किया जाना चाहिए। किन्तु स्त्रियों को पढ़ाने का विरोध करना तथा उसको परिवार और समाज के लिए अहितकर बताना अज्ञान है। पहले स्त्रियाँ शिक्षित न भी होती हों किन्तु आज उनको पढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है।