बहुविकल्पी प्रश्न
1. तुलसीदास जी कवि थे-
उत्तर : रामभक्ति शाखा के।
2. तुलसीदास जी का जन्म हुआ था –
उत्तर : सन् 1497 ई. में
3. तुलसीदास द्वारा रचित प्रामाणिक ग्रन्थों की संख्या है –
उत्तर : बारह
4. तुलसीदास का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य –
उत्तर : रामचरितमानस
5. रामचरितमानस आधारित है –
उत्तर : रामकथा पर
6. 'रामचरितमानस की भाषा –
उत्तर : अवधी
7. तुलसीदास सर्वोत्तम गीतिकाव्य है-
उत्तर : विनय पत्रिका
8. तुलसीदास अनन्य भक्त हैं-
उत्तत : राम के
9. तुलसीदास की भक्ति-पद्धति निम्न में से किस भाव की –
उत्तर : दैन्य।
निम्नलिखित से किसकी रचना ब्रजभाषा में
10. तुलसीदास सम्प्रदाय के कवि हैं?
उत्तर : सखी सम्प्रदाय।
11. तुलसीदास के गुरू का नाम -
उत्तर : नरहरिदास ।
12. तुलसीदास भक्ति जिस भाव है?
उत्तर : दास्य भाव
13 विनय पत्रिका में पद है –
उत्तर : तीन सौ
14. तुलसीदास ने किसकी मुढ़ता की बात कही है –
उत्तर : मन की।
15. तुलसीदास ने राम भक्ति की तुलना की है –
उत्तर : सुरसरिता से
16. तुलसीदास अनुसार किनकी कृपा के बिना विवेक नहीं हो सकता –
उत्तर : ईश्वर और गुरु की।
17. तुलसीदास ने संसार की तुलना निम्न में किससे की
उत्तर : सागर से।
18. निम्न से किसकी कृपा के बगैर मोह-माया से छुटकारा नहीं पाया जा सकता –
उत्तर : श्रीराम की।
19. तुलसीदास ने कृपानिधि कहा है-
उत्तर : श्रीराम को।
20. धुएँ समूह को बादल समझ लेता -
उत्तर : चातक।
21. तुलसीदास जी किसके स्वभाव को ग्रहण करना चाहते है – (क) श्रीराम के
उत्तर : संत
22. तुलसीदास जीकिसे समान से ग्रहण की बात करते हैं?
उत्तर: सुख-दुख
23. तुलसीदास जी किसे नियमपूर्वक निबाहने बात करते हैं?
उत्तर : मन, कर्म और वचन।
24. किसके चित्र से विपत्ति नाश हो सकता है?
उत्तर : कल्पतरु तथा कामधेनु।
25. तुलसीदास मूर्ख मन तुलना किससे की है –
उत्तर : चातक और गरुड़ से।
लघुउत्तरीय
1. तुलसीदास जी के बचपन का नाम था ?
उत्तर: तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था।
2. तुलसीदास जी के माता-पिता का नाम बताएं।
उत्तर: तुलसीदास के पिता नाम आत्माराम दूबे तथा माता का नाम हुलसी था।
3. तुलसीदास जी के माता-पिता उनका त्याग क्यों किया था?
उत्तर: अभुक्तमूल नक्षत्र में कारण उनके माता-पिता उनका त्याग किया ।
4. तुलसीदास का पालन-पोषण किसने किया?
उत्तर: तुलसीदास का पालन-पोषण मुनिया नामक दासी ने किया था।
5. तुलसीदास जी को रामकथा किसने कराया ?
उत्तर: तुलसीदास अध्ययन स्वामी नरहरिदास जी ने कराया।
6. तुलसीदास जी का विवाह किससे हुआ था?
उत्तर: दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से तुलसीदास जी का विवाह हुआ था।
7. तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर: तुलसीदास जी की मृत्यु संवत् 1680 वि. (सन् 1623 ई.) में हुई।
8. "ऐसी मुढ़ता या मन की"- यहाँ किसे सम्बोधित किया गया है ?
उत्तर: पंक्ति में तुलसीदास जी अपने मन मूढ़ता को सम्बोधित किया ।
9. धुएँ समूह को चातक क्या समझ लेता है ?
उत्तर: धुएँ समूह को चातक बादल समझ लेता है।
10. धुएँ के समूह को बादल समझ से चातक को क्या हानि होती है?
उत्तर: धुएँ के समूह को बादल समझ से चातक को न ही शीतलता मिलती है न ही जम मिलता है, अपितु उसके आँखों को क्षति पहुँचती है।
11. तुलसीदास जी ने बाज को मूर्ख क्यों कहा है?
उत्तर: बाज शीशे में अपनी परछाई पर झपट पड़ता है, फलस्वरूप चोंच चोटिल हो जाती है । अतः तुलसीदास ने
उसे मूर्ख कहा है।
12. तुलसीदास जी किससे अपने दुःख को हरण करने का निवेदन करते हैं?
उत्तर: तुलसीदास श्रीराम को अपने दुःख हरण करने का निवेदन कर रहे हैं।
13. मोह-फॉस का क्या अर्थ है?
उत्तर: मोह-फॉस का मोह का फन्दा है।
14. तुलसीदास जी के अनुसार जीव की मुक्ति कब तक सम्भव नहीं है ?
उत्तर: तुलसीदास के अनुसार तक अन्त: करण की शुद्धि नहीं है तब तक जीव मुक्ति सम्भव नहीं है।
15. तुलसीदास जी के अनुसार निर्मल ज्ञान प्राप्ति तक नहीं हो सकती ?
उत्तर: तुलसीदास के अनुसार जब तक भगवान् और गुरु की कृपा न हो , तब तक निर्मल ज्ञान की प्राप्ति नहीं सकती।
16. संसार रूपी दुस्तर समुद्र को कब तक पार नहीं किया जा सकता ?
उत्तर: जब तक आत्मज्ञान की प्राप्ति न हो जाए तब संसार दुस्तर समुद्र को पार नहीं किया का सकता।
17. तुलसीदासजी के अनुसार मोहपाश कैसे टूट सकता है ?
उत्तर: तुलसीदासजी के अनुसार आत्मज्ञान से ही मोहपाश टूट सकता है।
18. तुलसीदास जी अनुसार किसकी कृपा बिना मोह माया से छुटकारा सम्भव नहीं है?
उत्तर: तुलसीदास के अनुसार बिना भगवान कृपा से मोह और से छुटकारा सम्भव है।
19. कवि अनुसार वास्तविक सुख अर्थात् ब्रह्मानन्द की प्राप्ति कब सम्भव है?
उत्तर: कवि के अनुसार निर्मल अन्तःकरण में आत्मज्ञान होगा तब वास्तविक सुख अर्थात् ब्रह्मानन्द की प्राप्ति सम्भव है।
20.. पुनि हानि होत लोचन की – यहाँ किसके लोचन की हानि होती है और क्यों?
उत्तर: चातक के लोचन की हानि होती है क्योंकि वह धुएँ के समुह को बादल समझ लेता है।
21. गरूड़ काँच के फर्श अपनी छाया देखकर क्या सोचता है?
उत्तर : जब गरूड़ काँच के फर्श में अपनी छाया देखता है, तो उसे अपना शिकार समझता है।
व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
एसी मूढ़ता या मन की ।
परिहरि राम-भगति-सुरसरिता, आस करत ओसकन की।
(क) प्रस्तुत अंश कहाँ से लिया गया है? इनके रचनाकार कौन है?
उत्तर : प्रस्तुत अंश “विनय के पद” से लिया गया है।
इसके रचनाकार तुलसीदास जी है।
(ख) पक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : तुलसीदास जी कहते हैं कि यह मानव मन की मुर्खता ही है जो भगवान राम की भक्तिरुपी गंगा को छोड़कर अन्य
संसार के भौतिक सुख रुपी ओसकण से अपनी प्यास बुझाने की आशा करता है।
धूम-समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि घन की
नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होत लोचन की।
(क) प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर : (क) प्रस्तुत पंक्ति रचनाकार भक्त तुलसीदास हैं।
(ख) पक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : तुलसीदास कहते कि चातक पक्षी धुएँ को देखकर उसे बादल समझ अपनी प्यास बुझाना चाहता है लेकिन वहाँ न तो
शीतलता ही मिलती और न जल ही। धुएँ के कारण वह अपनी आँखों को कष्ट पहुँचाता है।
कहें लो कहाँ कुचाल कृपानिधि, जानत हौं गति जन की ।
तुलसीदास प्रभु हरतु दुख, करहु लाज निजपन की।।
(क) रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियों के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।
(ख) पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : तुलसीदास जी भगवान के प्रति अपनी शरण लेने वालों से कह रहे हैं कि वे भगवान के आगे अपने दुःखों को हरा सकते हैं और अपनी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि भगवान सभी के दुखों को हर सकते हैं और उन्हें शांति प्रदान कर सकते हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि आप अपने दुःखों को हरा सकते हैं और भगवान की कृपा से अपनी समस्याओं को दूर कर सकते हैं।
माधव ! मोह-फाँस क्यों टूटै।
बाहर उपाय करिय, अभ्यंतर ग्रंथि ना छुटै॥
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ उद्धत है?
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित 'विनय पत्रिका' उद्धत है।
(ख) पंक्तियों का भाव स्पष्ट किजिए।
उत्तर : पंक्तियों का इन पंक्तियों तुलसीदास कहते कि हे प्रभु मेरी मोटह रुपी यह फाँसी कब छूटेगी? बाहर कितना उपाय करूँ लेकिन अन्दर यह गाँठ छूटने वाली नहीं है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न - रचनात्मक एवं आलोचनात्मक प्रश्नोत्तर :-
प्रश्न : तुलसीदास के अनुसार मानव मन की मूढ़ता क्या है?
उत्तर : तुलसीदास जी के अनुसार मानव मूर्ख है। वह प्रभु राम की भक्ति रूपी गंगा को त्यागकर विषय-वासना रूपी ओस के कणों से प्यास बुझाने की अभिलाषा रखता है। जिस प्रकार से धुएँ के समूह को देखकर प्यासा चातक उसे बादल समझकर अपनी प्यास बुझाना चाहता है, लेकिन उसको वहाँ से न तो शीतलता प्राप्त होती है और न ही उसकी प्यास बुझती है, लेकिन उसके नेत्रों को हानि अवश्य पहुँचती है। इसी प्रकार मनुष्य विषय-वासना में मग्न होकर आनन्द की प्राप्ति करना चाहता है, लेकिन उसको आनन्द के स्थान पर अशान्ति की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार से मुर्ख बाज दर्पण में अपनी परछाईं को देखकर अन्य बाज समझकर उस पर झपटता है, लेकिन उसको आहार तो नहीं प्राप्त होता है परन्तु उसका मुख अवश्य क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार मनुष्य भी मूर्खतावश सांसारिक विषय-वासनाओं में लिप्त रहना चाहता है। यदि मानव ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति करे तो निश्चय ही उसे सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिल सकती है, क्योंकि प्रभु राम ही सब के कष्टों को दूर करके तारने वाले हैं।
प्रश्न : तुलसीदास की भाषा-शैली एवं साहित्य में स्थान के बारे में लिखें।
उत्तर : भाषा-शैली : तुलसीदास की भाषा-शैली सरल और सुबोध होती है। वे भाषा का सरलतम रूप अपनाते थे जिससे उनकी रचनाओं में बहुत सी जनता को संज्ञान हो सके। उनकी भाषा में भावों को उचित रूप से व्यक्त करने की कला होती थी और उन्होंने अपनी रचनाओं में साधारण लोगों की भाषा का प्रयोग किया।
तुलसीदास की भाषा में विशेषताएं शामिल हैं, जैसे कि सरलता, अर्थपूर्णता, संगठनशीलता, संवेदनशीलता और भावनात्मकता। उनकी रचनाओं में शब्दों का चुनाव स्थान के अनुसार किया जाता था और उन्होंने भाषा के विभिन्न अंशों का प्रयोग करते हुए रचनाओं में विस्तृत वर्णन किया।तुलसी
दास की भाषा-शैली का प्रभाव आज भी हमारे समय में दिखाई देता है। उनकी भाषा में गीत, दोहे, चौपाई, छंद और अनुप्रास जैसी विधाएं शामिल होती हैं जो उनकी रचनाओं को अधिक भावनात्मक बनाती हैं। उनकी रचनाओं में भाषा का उचित प्रयोग और शान्ति का वातावरण महसूस होता है।
साहित्य में स्थान : तुलसी अपनी विराट प्रतिभा, कविता-शक्ति एवं मंगलमयी भक्ति भावना कारण हिन्दी साहित्य में हिमालय के उतुंग भाँति अपने प्रकाश संसार आलोकित कर रहे हैं। तुलसीदासजी भारतीय साहित्य के महान कवियों में से एक हैं। उनके लेखन की भावनात्मक गहराई, सरल भाषा और सुंदर अलंकारों से भरी भाषा शैली से उनके साहित्य को अलग और विशिष्ट बनाती है। उनके द्वारा रचित रामचरितमानस भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। रामचरितमानस में श्री राम और सीता के जीवन के बारे में जानकारी दी गई है और उनके भक्ति भाव भी दर्शाए गए हैं।
तुलसीदासजी के अन्य लेखनों में विशेष रूप से हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, कबीर सागर, जानकी मंगल, रामलीला मानस और गीतावली शामिल हैं। उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, भावनाओं और मूल्यों के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान दर्शाया गया है। उनके साहित्य में धर्म, आध्यात्मिकता, समझौता और मानवता के संदेश शामिल हैं।
तुलसीदासजी की रचनाओं के संस्कृति और धर्म से सम्बंधित संदेश आज भी उपयोगी हैं ।
प्रश्न : तुलसीदास को काव्यगत विशेषताओं प्रकाश डालें।
उत्तर : तुलसीदास को भारतीय साहित्य के सबसे महान कवि में से एक माना जाता है। उनके काव्य के अनेक गुण हैं जो उन्हें अन्य कवियों से अलग और विशिष्ट बनाते हैं। कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
भावनात्मक गहराई: तुलसीदास के काव्य में भावनाओं की गहराई एवं संवेदनशीलता को बखूबी दिखाया गया है। वे अपनी भावनाओं को सरल भाषा और सुंदर अलंकारों के द्वारा व्यक्त करते हैं।
रचनात्मक सौंदर्य: तुलसीदास के काव्य में संगीत, अलंकार और छंद की मधुरता एवं सौंदर्य प्रधान होती है। उनकी रचनाओं में संगीत की अद्भुत भावनाएं होती हैं जो पाठकों को भावुक बनाती हैं।
सामाजिक संदेश: तुलसीदास के काव्य में समाज के नैतिक मूल्यों को सुरक्षित रखने का संदेश दिया गया है। उन्होंने संवेदनशीलता के साथ महिलाओं के पक्ष में बोला और समाज में जातिवाद का खिलाफ भी लिखा।
सरलता: तुलसीदास की काव्य शैली सरल और सुलभ होती है। वे अपनी रचनाओं में साधारण व्यंजनों और संज्ञाओं का प्रयोग करते हैं, जो उनकी भाषा को और सुंदर बनाता है।
अलंकार: तुलसीदास की काव्य शैली में अलंकारों का बड़ा महत्व है। उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले अलंकार उनकी काव्य रचनाओं को और भी सुंदर बनाते हैं।
समझौता: तुलसीदास अपनी काव्य रचनाओं में समझौता का महत्त्व देते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में धार्मिक और सामाजिक संदेशों को समझाने का प्रयास किया है।
रस: तुलसीदास की कविताओं में विभिन्न रसों का प्रयोग किया गया है, जैसे कि शान्ति रस, शृंगार रस, वीर रस, रौद्र रस, भक्ति रस आदि। उन्होंने रसों के माध्यम से अपनी रचनाओं में भावनाओं को दर्शाया है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
आधुनिक युग की मीरा किसे कहा जाता है?
उत्तर : महादेवी वर्मा को।
महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ था?
उत्तर : सन् 1907 ई. में
भारत सरकार ने महादेवी वर्मा को किस पुरस्कार से अलंकृत किया?
उत्तर : पद्मविभूषण सम्मान से
महादेवी वर्मा जी समाज सेवा में किस की प्रेरणा से जुट गई?
उत्तर : महात्मा गांधी की प्रेरणा से।
महादेवी वर्मा जी किस धर्म की दीक्षा लेना चाहती थी?
उत्तर : बौद्ध धर्म की।
6. कवित्री महादेवी वर्मा ने क्षितिज के धरती पर किसे उतर आने का आग्रह किया है?
उत्तर : बसन्त रजनी से।
7. कवयित्री महादेवी वर्मा ने किसे बसंत रजनि को किसका घुँघत पहनाया हे?
उत्तर : श्वेत बादलों के टुकड़े को।
8. कवयित्री महादेवी वर्मा ने बसन्त रजनी को किे रुप में चित्रित किया है?
उत्तर : अभिसारिका और सखी के रूप में।
9. कवित्री महादेवी वर्मा जी के अनुसार धरती का प्रियतम कौन हैं?
उत्तर : बसन्त ऋतु।
10. महादेवी वर्मा किसे धीरे-धीरे क्षितिज से उतरने कहती (है?
उत्तर : वसंत-रजनी को
11.धीरे धीरे उतर क्षितिज से कविता में किस का मानवीकरण किया गया है?
उत्तर : वसंत-रजनी का
12. किसका प्रत्येक पग अलसता की तरंग से भरा हुआ ?
उत्तर : वसंत-रजनी का।
13. 'मलयानिल' का क्या तात्पर्य है?
उत्तर: मलय पर्वत से आनेवाली हवा।
14. किसका सरिता रूपी हृदय सिहर सिहर उठता ?
उत्तर : बसंत-रजनी का।
15. महादेवी को उनकी किस रचना भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला
उत्तर : 'यामा' और 'दीपशिखा' ।
16. 'नीलांबरा' किसकी रचना है?
उत्तर : महादेवी वर्मा जी की।
17. 'नीरजा' के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर : महादेवी वर्मा जी की।
अति लघुउत्तरीय प्रश्न
युग की मीरा किसे उत्तर: आधुनिक को कहा जाता
महादेवी वर्मा की किन्हीं पाँच रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, लहरी।
2 . महादेवी वर्मा काव्य की विशेषताएँ को लिखिए।
उत्तर: महादेवी के काव्य को प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है:
(i)छायावाद (ii) रहस्यवाद (iii) वेदनाभाव प्रकृति चित्रण \
3. महादेवी वर्मा की भाषा संक्षेप प्रकाश डालिए।
उत्तर: महादेवी की भाषा सहज , प्रवाहमय एवं बोधगम्य है।
4. महादेवी की काव्य-भाषा क्या है?
उत्तर: खड़ीबोली।
5. प्रस्तुत में कवयित्री प्रकृति को किसके रुप में चित्रित किया हे?
उत्तर: प्रस्तुत पाठ महादेवी ने प्रकृति नारी रूप में चित्रित किया है।
6. धीरे - धीरेउत्तर क्षितिज से' शीर्षक में कवयित्री ने किसे नायिका का रूप मे लिया है?
उत्तर: बसन्त रजनी को।
7. 'मुक्ताहल अभिराम बिछा दे, चितवन से अपनी यहाँ कौन, किससे, क्या कह रहा है?
उत्तर : कवयित्री वसंत रजनी से कह रही है कि जब वह पृथ्वी आए तो हृदय की भावनारूपी सुन्दर मोतियों को पूरि
पृथ्वी पर सजा दे।
8. किसकी ध्वनि घुंघरूओं और किंकणी की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं?
उत्तर : पत्तों की मर्मर ध्वनि बसंत रजनी के घुंघरूओं तथा भौरे आवाज पैरों की किकणि की सुमधुर ध्वनि की तरह प्रतीत होते हैं।
9. विहँसती आ बसंत रजनी का भाव स्पष्ट किजिये।
उत्तर : कवयित्री चाहती कि जब बसंत-रजनी धीरे-धीरे पृथ्वी पर उतरे तो उसके होठों पर मृदुल मुस्कान हो।
10. 'कर में हो स्मृतियों की अंजलि का भाव स्पष्ट किजिए।
उत्तर : कवियित्रि यह चाहती है कि जब बसंत-रजनी पृथ्वी पर उतरे तो उसकी अंजलि स्मृतियों से भरी हो।
11. किसकी कल्पना से बसंत-रजनी हृदय सिहर-सिहर उठता है?
उत्तर : प्रियतम मिलने की कल्पना से बसंत रजनी का हृदय सिहर सिहर उठता है।
12. नुपुर- ध्वनि किसे कहा गया है?
उत्तरः पत्तों कि मर्मर को नुपुर-ध्वनि कहा है।
13. 'रश्मि-वलय' का क्या अर्थ ?
उत्तर: रश्मि-वलय का अर्थ 'किरणों का कंगन'।
व्याख्यामूलक वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
1. शीश-फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित घन अवगुण्ठन,
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे
चितवन से अपनी!
(क) प्रस्तुत अंश किस पाठ से लिया गया है? इसके रचयिता का नाम लिखो।
उत्तर : प्रस्तुत अंश धीरे-धीरे उत्तर क्षितिज नामक पाठ लिया गया है। इनकी रचयिता आधुनिक युग मीराबाई महादेवी वर्मा हैं।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए?
उत्तर : कवयित्री चाहती कि वसंत-रजनी जब पृथ्वी तथा चन्द्रमा रुपहली किरणों को कंगन की सजा जब वह पृथ्वी पर आए तो अपने हृदय की भावनारूपी सुंदर मोतियों पूरी पृथ्वी पर सजा दे । उसका पृथ्वी पर आगमन आनन्द से भरा हो।
2.मर्मर की सुमधुर नुपूर ध्वनि,
अलि - गुंजित पद्मो किंकिणि
भर पद-गति अलस तरंगिणि,
तरल रजत धार बहा दे
मृदु स्मित से सजनी !
(क) प्रस्तुत अंश के पाठ एवं रचनाकार के नाम लिखो।
उत्तर : प्रस्तुत अंश धीरे-धीरे उत्तर क्षितिज नामक कविता से लिया गया है तथा इनकी रचनाकार महादेवी वर्मा जी है।
(ख) पंक्तियों का भाव स्पष्ट किजिए।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री बसंत-रजनी के बारे यह कहती कि पत्तों को मर्मर ध्वनि उसके घुंघरूओं भीर आवाज तथा भौंरो कि आवाज किकिणी के मधुर ध्वनी की तरह प्रतीत होते हैं। उसका प्रत्येक पग अलसता तरंग से भरा हुआ है। कवयित्री चाहती है कि बसंत-रजनी अपनी मधुर मुस्कान से पूरी पृथ्वी पर तरल चाँदी की धारा-सी बहा दे। जब वह पृथ्वी पर आए उसके होठों पर मधुर मुस्कान हो।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (सन् 1927 1984 ई०)
आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के कवियों में श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नाम अग्रगण्य है।
जन्म : 15 सितम्बर 1927 को उत्तर प्रदेश स्थित बस्ती जिला
शिक्षा : उन्होंने एंग्लो संस्कृत विद्यालय, वस्ती से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और क्वींस कॉलेज वाराणसी) में प्रवेश लिया। तत्पश्चात् उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
कार्य : शिक्षा क्षेत्र में अध्यापन करने के उपरांत उन्होंने आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर के रूप में कार्य किया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने कुछ दिन 'दिनमान' के प्रमुख उपसम्पादक पद पर भी कार्य किया।
बाद में बच्चों की पत्रिका 'पराग' का सम्पादन कार्य भी किया।
मृत्यु : देहावसान 25 सितम्बर 1984
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तीसरा तार सप्तक के कवि हैं। छायावाद के उपरांत नई कविता के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं सुमित्रानंदन पंत ने सक्सेना जी की साहित्य कला दृष्टि की सहायता की है तथा उन्हें सहज प्रयत्न कवि और नए कवियों में कलाबोध का पारखी बताया है। उनके काव्य में रोमानियत और समसामयिकता पाई जाती है। वे समष्टि चेतना और व्यष्टि चेतना के प्रति सजग हैं। | उन्होंने कविता के नए-नए विषयों की ओर ध्यान दिया है। सक्सेना जी ने जीवन के विविध पक्षों को अपनी कविता में नए रंग-ढंग से व्यक्त किया है।
रचनाएँ: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार है उनकी साहित्यिक कृतियाँ निम्न प्रकार हैं:-
काव्य कृतियाँ : काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टंगे लोग आदि।
नाटक : बकरी, कल फिर भात आएगा, लड़ाई, अब गरीबी हटाओ, राज-बाज बहादुर और रानी रूपमती आदि।
उपन्यास : पागल कुर्तों का मसीहा, सोया हुआ जल ।
लेख संग्रह : चरचे और चरखे आदि।
पेड़ का दर्द
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
कुछ धुआँ
कुछ लपटें
कुछ कोयले
कुछ राख छोड़ता
चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हूँ
मुझे जंगल की याद मत दिलाओ।
हरे-भरे जंगल की
जिसमें मैं संपूर्ण खड़ा था
चिड़ियाँ मुझ पर बैठ चहचहाती थीं
धामिन मुझसे लिपटी रहती थी
और गुलदार उछलकर मुझ पर
बैठ जाता था।
जंगल की याद
अब उन कुल्हाड़ियों की याद रह गई है
जो मुझ पर चली थीं
उन आरों की जिन्होंने
मेरे टुकड़े-टुकड़े किए थे
मेरी संपूर्णता मुझसे छीन ली थी।
चूल्हे में
लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ
बिना यह जाने, कि जो हाँड़ी चढ़ी है
उसकी खुदबुद झूठी है।
या उससे किसी का पेट भरेगा
आत्मा तृप्त होगी।
बिना यह जाने
कि जो चेहरे मेरे सामने हैं
वे मेरी आँच से
तमतमा रहे हैं
या गुस्से से,
वे मुझे उठाकर चल पड़ेंगे
या मुझ पर पानी डाल सो जाएँगे
जंगल की याद मुझे मत दिलाओ।
एक-एक चिनगारी
झरती पत्तियाँ हैं
जिनसे अब भी मैं चूम लेना चाहता हूँ
इस धरती को
जिसमें मेरी जड़ें थी ।
लघुउत्तरी प्रश्नोत्तर : --
प्रश्न क- कवि तथा कविता का नाम बताइए ।
उत्तर- कवि का नाम सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा कविता का नाम पेड़ का दर्द है।
प्रश्न ख-जंगल की याद अब किसकी याद रह गई है? उ
त्तर- जंगल की याद अब कुल्हाडियो की याद रह गई है।
प्रश्न ग-आरों ने किस के टुकड़े किए थे?
उत्तर- आरो ने पेड़ के टुकड़े किए थे। प्र
श्न घ-पेड़ की संपूर्णता किस ने छीन ली थी?
उत्तर- पेड़ की संपूर्णता कुल्हाडियो और आरो ने छीन ली थी।
प्रश्न इ -पेड़ पर कुल्हाडिया क्यों चली थी?
उत्तर- पेड़ को टुकड़ों में खंडित करने के लिए पेड़ पर कुल्हाडिया चली थी।
बोधमुलक प्रश्न उत्तर
प्रश्न क- कुल्हाडियो और आरों ने पेड़ को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर-कुल्हाडियों और आरो ने पेड़ को टुकड़ों में काटकर अर्थात उनकी संपूर्णता छीनकर उन्हें प्रभावित किया।
प्रश्न ख- या मुझ पर पानी डाल सो जाएंगे से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर- या मुझ पर पानी डाल सो जाएंगे से कवि का तात्पर्य है कि लकड़ी बना पेड़ यह नहीं जानता कि उसकी आग की उर्जा से खाद्य वस्तु पकेगी किसी की आत्मा तृप्त होगी या उसकी आग की उर्जा पर भी पानी डाल उसे नष्ट कर दिया जाएगा।
प्रश्न ग. जंगल में पेड़ की कैसी दशा थी?
उत्तर- जंगल में पेड़ हरे-भरे और संपूर्ण थे उनका अस्तित्व था।
प्रश्न घ- लकड़ी की तरह अब में जल रहा हूं के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूके माध्यम से कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि वृक्ष अपनी वर्तमान स्थिति से अत्यंत दुखी हैं, और वह व्यथित होकर कह रहा है कि अब मेरी हरियाली, संपूर्णता सब नष्ट हो गई है। अब मेरा अस्तित्व भी नहीं है। अब में मात्र एक लकड़ी के रूप में चूल्हे में जल रहा हूँ।
प्रश्न ङ -प्रस्तुत कविता से हमें क्या संदेश मिलता है?
उत्तर प्रस्तुत कविता में कवि वनों के विनाश को रोकने और अधिकाधिक वृक्षारोपण करने का संदेश दे रहा है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1: वर्तमान में पेड़ की क्या दशा है? पेड़ के मन में क्या विचार आ गए थे?
उत्तर- वर्तमान में पेड़ की अत्यंत दयनीय दशा थी। पेड़ टुकड़े में खंडित अस्तित्व विहीन था। पेड़ के मन मै अपने हरे भरे दिनों की याद आ रही है जब वह जंगल में संपूर्ण खड़ा था। उसके शरीर से धामिन लिपटी रहती थी गुलदार थक कर उसकी शाखाओं पर बैठा करता था। इस प्रकार अपने जंगल में अपने हरे भरे दिनों को याद कर पेड़ व्यथित हो रहा था ।
प्रश्न 2: एक एक चिंगारी झरती पतियां है के माध्यम से कवि की वेदना व्यक्त कीजिए।
उत्तर : इस पंक्तियों में कवि पेड़ के माध्यम से अपनी व्यथा व्यक्त कर रहा है। कवि पेड़ की दशा से अत्यंत आहत है। पेड़ जो कभी हरे भरे थे आज मनुष्य के स्वार्थी वृत्ति के कारण सूखे और अस्तित्व हीन हो गए हैं। सूखे पेड़ से झरती एक-एक पत्तियां पेड़ की व्यथा व्यक्त कर रही है और यह सूखी पत्तियां अति वेदना से चिंगारी के रूप में जल रही है। जो कवि के हृदय को व्यथित कर रही है।
3. पेड़ का दर्द कविता का सारांश लिखो।
उत्तर - प्रस्तुत कविता कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी द्वारा उद्धृत है।
इस कविता में कवि ने पेड़ के माध्यम से अपनी पीड़ा व्यक्त की है। वे दिन प्रतिदिन घटती वन संपदा के प्रति भी चिंतित है हमारे जीवन का आधार पेड़ है। यह अपनी परोपकारी प्रवृति के लिए चीर प्रसिद्ध है। मनुष्य अपनी अनगिनत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वृक्षों का अंधाधुंध कटाई कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। मनुष्य इसके दुष्परिणाम को जानते हुए भी अपने तत्कालिक लाभ के लालच में निरंतर पेड़ों की कटाई कर रहा हैं। कवि अपनी कविता में वृक्षों की इसी स्थिति को देखते हुए प्रतीकात्मक शैली में वनों के विनाश को रोकने का संदेश दिया है तथा दूसरी ओर अधिकाधिक वृक्षारोपण हेतु प्रेरणा दे रहा है।
प्रश्न - भावार्य लिखिए-
चूल्हे में लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ
बिना यह जाने की जो हांडी चढ़ी है या उससे किसी का पेट भरेगा
उसकी खुद बुद झूठी है
आत्मा तृप्त होगी।
या उससे किसी का पेट भरेगा
आत्मा तृप्त होगी।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियां पाठ्य पुस्तक का पाठ पेड़ का दर्द' नामक कविता से ली गई है। इसके कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी हैं।
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों का तात्पर्य है की लकड़ी के रूप में परिवर्तित पेड़ चूल्हे में जल रहा है । उसे यह भी नहीं पता कि चूल्हे पर जो खादी वस्तु पक रही है, उससे किसी की भूख मिटेंगी, किसी की आत्मा तृप्त होगी या स्वार्थी वृत्ति वाले मनुष्यों द्वारा उस पर पानी डाल उसे नष्ट कर दिया जाएगा। अतः उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि ने समाज की असमानता स्वार्थपरकता जगजाहिर किया है।