वर्ण या अक्षर : ऐसी छोटी से छोटी मूल ध्वनि है जिसके खंड नहीं किया जा सकता |
उदाहरण : अ , इ , ए , क , प आदि |
वर्णमाला : भाषा के सभी वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं| हिंदी भाषा में वर्णमाला के वर्णों की कुल संख्या 48 है | इनके अलावा क्ष , त्र , ज्ञ व श्र भी वर्ण है | इस प्रकार कहा जा सकता है की हिंदी भाषा में कुल 52 वर्ण है |
संयुक्त अक्षर : ऐसे वर्ण या अक्षर जिनका निर्माण दो या दो से अधिक वर्णों के मेल से होता है उन्हें संयुक्त अक्षर कहते है |
sanyukt akshar || संयुक्त अक्षर || हिंदी
क्ष = क् + ष + अ
त्र = त् + र् + अ
ज्ञ = ज् + ञ + अ
श्र = श् + र् + अ
वर्णो के भेद : उच्चारण के आधार पर वर्णो को दो भागो में बाँटा गया है :-
1 . स्वर वर्ण (Vowel)
2. व्यंजन वर्ण (Consonant )
स्वर वर्ण : स्वर वर्णों का उच्चारण बिना किसी अवरोध के होता है | इनका उच्चारण कंठ तथा तालु से होता है | अपवाद के रूप में उ , ऊ है जिनका उच्चारण होठों से होता है |
स्वरों के भेद : —
स्वरों के तीन भेद हैं :-
ह्रस्व स्वर (लघु स्वर )
दीर्घ स्वर (गुरु स्वर )
प्लुत स्वर
ह्रस्व स्वर (लघु स्वर) : इन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है | इन्हे मूल स्वर या मात्रिक भी कहा जाता है |
उदाहरण : अ , इ , उ , ऋ |
इनकी संख्या 4 है |
दीर्घ स्वर : इन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा दोगुना समय लगता है | इन्हे संयुक्त स्वर या द्विमात्रिक स्वर भी कहा जाता है |
उदाहरण : आ , ई , ऊ , ए , ऐ ,ओ , औ = 7
आ = अ + अ ई = इ + इ
ऊ = उ + उ ए = अ + इ
ऐ = अ + ए ओ = अ + उ
औ = अ + ओ
प्लुत स्वर : इन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा तिगुना समय लगता है | इन्हे संयुक्त स्वर या त्रिमात्रिक स्वर भी कहा जाता है | प्लुत का चिन्ह [३] का अंक है |
जैसे : ओ३म | प्लुत का उपयोग संस्कृत में होता है |
अनुनासिक , निरनुनासिक , अनुस्वार एवं विसर्ग
अनुनासिक : इस स्वरों का उच्चारण दोनों मुख व नासिका के द्वारा होता है | इस स्वर का चिन्ह चंद्रबिंदु [ँ] है|
जैसे : दाँत , गाँव , आँगन आदि |
निरनुनासिक : इस स्वरों का उच्चारण केवल मुख से होता है |
जैसे : घर, इधर आदि|
अनुस्वार: इस स्वरों का उच्चारण के समय नाक का उपयोग किया जाता है | इसका चिन्ह [.] होता है |
[तत्सम शब्द में जहाँ अनुस्वार लगता है वहाँ उनके तद्भव रूप में चंद्रबिंदु लगता है |
जैसे : दंत से दाँत , अंगुष्ठ से अँगूठा आदि ]
जैसे : बंदर, अंगूर, अंक आदि |
विसर्ग : विसर्ग का उच्चारण ह की तरह होता है | इसका चिन्ह [ : ] है |
जैसे : अन्तः , स्वतः, दुःख आदि |
[आयोग वाह : कुछ विद्वानों के मतानुसार अनुस्वार और विसर्ग दोनों ध्वनियाँ न तो स्वर है न व्यंजन | इसलिए इन्हें अयोगवाह कहते हैं | ]
पंचमाक्षर : ङ, ञ , ण , न , म — ये सभी पंचमाक्षर कहलाते हैं | संस्कृत के अनुसार शब्द का अंतिम अक्षर स्वर्ग का होता है उसके पहले पंचमाक्षर प्रयोग होता है|
कवर्ग —- गङ्गा - गंगा
चवर्ग —- पञ्च - पंच
टवर्ग — खण्डन - खंडन
तवर्ग —- सन्धि - संधि
पवर्ग —- पम्प - पंप
ऋ : हिंदी में ऋषि का उच्चारण रिशि की तरह होता है तथा इसका व्यवहार सिमित है |
जैसे : ऋषि , ऋण , ऋग्वेद आदि |
उपर्युक्त ग्यारह स्वरों के अतिरिक्त अंग्रेजी के ऑ ध्वनि वाले शब्दों का हिंदी में प्रयोग किया जाता है |
जैसे : डॉक्टर , ऑफिस |
ऑ की ध्वनि आ एवं ओ के बीच की होती है |
व्यंजन (Consonants ): व्यंजन वर्ण स्वर पर आश्रित है | हिंदी में व्यंजन वर्णों की कुल संख्या 33 + 2 = 35 है |
व्यंजन वर्ग व्यंजन माला
क वर्ग क् ख् ग् घ् ङ्
च वर्ग च् छ् ज् झ् ञ्
ट वर्ग ट् ठ् ड् ढ् ण्
त वर्ग त् थ् द् ध् न्
प वर्ग प् फ् ब् भ् म्
अंतः स्थ व्यंजन य् र् ल् व्
उष्ण व्यंजन श् ष् स् ह्
अतिरिक्त ड़् ढ़्
स्वर-युक्त व्यंजन माला
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
ड़ ढ़
व्यंजन के भेद : व्यंजन को मुख्य रूप से तीन भागो में विभाजित किया गया है :-
स्पर्श :- क से म तक - 25
अन्तः स्थ :- य , र ,ल ,व – 4
उष्ण :- श , ष , स , ह - 4
इस प्रकार वर्णमाला में कुल वर्णो की संख्या 52 हो जाती है :
स्वर —------------ 11
व्यंजन —---------- 33
अयोगवाह —------ 2 (अं , अः )
अतिरिक्त —------- 2 (ड़ , ढ़ )
संयुक्त —---------- 4 ( क्ष, त्र, ज्ञ, श्र )
दो वर्णों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह सन्धि कहलाता है। सन्धि में पहले शब्द के अंतिम वर्ण का मेल होता है।
सन्धि के तीन भेद होते हैं-
(1) स्वर-सन्धि
(2) व्यंजन सन्धि
(3) वृद्धि विसर्ग सन्धि
स्वर- सन्धि — स्वर के बाद स्वर अर्थात दो स्वरों के मेल को स्वर सन्धि कहते है। स्वर सन्धि के 5 भेद होते है-
(i) दीर्घ सन्धि
(ii) गुण सन्धि
(iii) वृद्धि सन्धि
(iv) यण सन्धि
(v) अयादि सन्धि
दीर्घ सन्धि- हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’, के पश्चात क्रमशः हस्व या दीर्घ ‘आ’, ‘इ’, ‘उ’ स्वर आएं तो दोनों को मिलाकर दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते है, जैसे
अ + अ = आ धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
आ + आ = आ विद्या + आलय = विद्यालय
आ + अ =आ महा + आत्मा = महात्मा, महा + आनन्द = महानन्द
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
मत + अनुसार = मतानुसार
रेखा + अंश = रेखांश
वीर + अगंना = विरांगना
सीमा + अन्त = सीमान्त
इ + इ = ई अति + इव = अतीव
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
कपि + इन्द्र = कपिन्द्र
इ + ई = ई गिरि + ईश = गिरीश
परि + ईक्षा = परीक्षा
हरि + ईश = हरीश
ई + इ = ई मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई + ई = ई रजनी + ईश = रजनीश, योगी + इन्द्र = योगीन्द्र , जानकी + ईश = जानकीश, नारी + र्दश्वर = नारीश्वर
उ + उ = ऊ भानु + उदय = भानूदय
उ + ऊ = ऊ घातु + ऊष्मा = धातूष्मा
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश ,सिंघु + ऊर्मि = सिंघूर्मि
लघु + उत्तर = लघूत्तर
ऊ + उ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ भू + ऊर्जा = भूर्जा
भू + उद्धार = भूद्वार , भू + ऊष्मा = भूष्मा
यदि अ और आ के बाद इ या ई, उ या ऊ तथा ऋ स्वर आए तो दोनों के मिलने के क्रमशः ए, ओ और अर हो जाते है, जैसे
या, ऊ ,तथा , ऋ
आ + इ = ए नर + इन्द्र = नरेन्द्र
अ + ई = ए नर + ईश = नरेश
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
सोम + ईश्वर = सोमेश्वर
आ + इ = ए रमा + इन्द्र = रमेन्द्र
आ + ई + ए महा + ईश = महेश
महा + इन्द्र = महेन्द्र
राका + ईका = राकेश
राजा + इन्द्र = राजेन्द्र
रमा + ईश = रमेश
अ + उ = ओ वीर + उचित = वीरोचित
अ + ऊ = ओ सूर्य + ऊर्जा =
पर + उपकार =परोपकार
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा
हित + उपदेश = हितोपदेश
आ + उ = ओ महा + उदय = महोदय
आ + ऊ = ओ महा + ऊष्मा = महोष्मा
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + ऊर्जा = महोर्जा
अ + ऋ = अर देव + ऋषि = देवर्षि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
राज + ऋषि = राजर्षि
अ या आ के बाद ए या ऐ आए तो ‘ऐ’ और ओ और औ आए तो औ हो जाता हो।
अ + ए = ऐ , एक + एक = एकैक, लोक + एषण = लोकैषणा
अ + ऐ = ऐ, मत + ऐक्य = मतैम्य, धन + ऐश्वर्य = धनैश्वर्य
आ + ए = ऐ , सदा + एव = सदैव, तथा + एव = तथैव
आ + ऐ = ऐ , महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य , रमा + ऐश्वर्य = रमैश्वर्य
अ + ओ = औ, वन + ओषधि = वनौषधि, दन्त + ओष्ठ = दंतौष्ठ
अ + औ = औ , परम + औदार्य =परमौदार्य
आ + औ = और, महा + ओज = महौज
आ + औ = और, महा + औदांर्य = महौदार्य
यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आये तो इ और ई का ‘य’ तथा उ और ऊ का व और का ऋ हो जाता है-
इ + अ = य , अति + अधिक = अत्यधिक, यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या , इति + आदि = इत्यादि, अति + आचार = अत्याचार
इ + उ = यु , उपरि + उक्त = उपर्युक्त, प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
इ +ऊ = यू, नि + ऊन = न्यून , वि + ऊह = व्यूह
इ + ए = ये , प्रति + एक = प्रत्येक, अधि + एषणा = अध्येषणा
ई + आ = या, देवी +आगमन = देव्यागमन
इ + ऐ = ये , सखी + ऐश्वर्य =
उ + अ = व , सु + अच्छ = स्वच्छ , अनु + अन्य = अन्वय
उ + आ = व, सु़ +आगत = स्वागत
उ + इ = वि, अनु + इति = अन्विति
उ + ए = वे, अनु + एषण = अन्वेषण
ऊ + आ = वा, वधू + आगमन = वध्वागमन
ऋ + अ = र, पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा, मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
ऋ + इ = रि मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
यदि ए, ऐ, ओ, औ, स्वरों का मेल दूसरे स्वरों से हो तो ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव और औ का आव हो जाता है
ए + अ =अय ने़ + अन =नयन,
शे + अन = शयन गै + अन = गायन
ऐ + अ =आय नै + अक = नायक
ऐ + इ = आयि गै + इका = गायिका
ओ + अ = अव पो+ अन = पवन,
भो + अन = भवन सौ + अन = सावन
औ + अ = आव पौ + अन = पावन,
ओ + इ = अवि पो + इत्र = पवित्र
औ + इ =आवि नौ + इक = नाविक
औ + इ =आवु भौ + उक = भावुक
व्यंजन के बाद स्वर या व्यंजन आये तो उनके मिलने से जो विकार होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते है।
व्यंजन सन्धि के नियम- वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट्; त, प,) का मेल किसी स्वर अथवा प्रत्येक वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण अथवा अंतःस्थ व्यंजन से होने पर वर्ग का पहला वर्ण तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
क का ग होना- दिक् + गज = दिग्गज
च् का ज् होना – अच् + अन्त = अजन्त
दिक् + अन्त = दिगन्त
अच् + आदि = अजादि
दिक् + विजय = दिग्विजय
वाक् + ईश = वागीश
ट का ड़ होना- षट + आनन = षडानन
त का द् होना- भगवत् + भजन = भगवद् भजन प का थ् होना-
अप् + ज = अब्ज
उत् + योग = उद्योग
सुप् + अन्त = सुवन्त
सत् + भावना = सद्भावना
सत् + गुण = सदगुण
वर्ग के पहले वर्ण का पाँचवें वर्ग में परिवर्तन – यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल किसी अनुनासिक वर्ण (केवल न, म) से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है जैसे-
क् का ड् होना – वाक् + मय = वाङ्मय
ट का ण होना – षट् + मुख = षण्मुख
त का न होना – उत् + मत्त = उन्मत्त
तत् + मय = तन्मय
चित् + मय = चिन्मय
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
‘छ’ सम्बन्धी नियम – किसी भी हस्व स्वर या ‘आ’ का मेल ’छ’ से होने पर, ’छ’ से पहले च् जोड़ दिया जाता है जैसे –
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
परि + छेद = परिच्छेद
अनु + छेद = अनुच्छेद
वि + छेद = विच्छेद
त् सम्बन्धी नियम —
(i) त् के बाद यदि च, छ हो तो त् का च् हो जाता है।
उत् + चारण = उच्चारण
उत् + चरित = उच्चरित
जगत् + छाया = जगच्छाया
सत् + चरित्र = सच्चरित्र
(ii) त् का मेल→ ज/झ हो, तो त् ज् में बदल जाता है जैसे –
सत् + जन = सज्जन, जगत् + जननी = जगज्जननी
उत् + झटिका = उज्झटिका, उत् + ज्वल = उज्ज्वल
(iii) ‘त’ के बाद यदि ट, ड हो तो त् क्रमशः ट, ड में बदल जाता है, जैसे–
उत् + डयन = उड्डयन
वृहत् + टीका = बृहट्टीका
(iv) ‘त’ के बाद यदि ‘ल’ हो तो त्, ल् में बदल जाता है –
उत् + लास = उल्लास
तत् + लीन = तल्लीन
उत् + लेख = उल्लेख
(v) त के बाद यदि श् हो तो त् का च् और श् का ‘छ’ हो जाता है –
उत् + श्वास = उच्छ्वास
सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
(vi) त् के बाद यदि ‘ह‘ हो तो ‘त’, द में और ह, ध में बदल जाता है
उत् + हार = उद्धार
उत् + हत = उद्धत
(i) म का मेल ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक किसी भी व्यंजन से हो तो म अनुस्वार हो जाता है।
सम् + कलन = संकलन, सम् + गति = संगति
सम् + चय = संचय, परम् + तु = परंतु
सम् + पूर्ण = संपूर्ण, सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षण = संरक्षण, सम् + लाप = संलाप
सम् + विधान = संविधान, सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
(ii) म् के बाद यदि म् आये तो म् में कोई परिवर्तन नही होता है
सम् + मान = सम्मान,
सम् + मति = सम्मति
‘स्’ सम्बंधी नियम — ‘स’ से पहले अ, आ से भिन्न स्वर हो तो ’स’ का ‘ष’ हो जाता है
सु + समा = सुषमा,
वि + सम = विषम
वि + साद = विषाद
विसर्ग–सन्धि – विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग सन्धि कहते है।
विसर्ग का ‘ओ’ हो जाना– यदि विसर्ग के पहले अ और बाद में अ अथवा तीसरा वर्ण, चौथा वर्ण, पाँचवा वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल,
तपः + बल = तपोबल
अधः + गति = अधोगति,
तपः + भूमि = तपोभूमि
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध,
पयः + द = पयोद
मनः + रथ = मनोरथ,
मनः + योग = मनोयोग
मनः + हर = मनोहर
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म,
अंतः + धान = अंतर्धान
विसर्ग का र हो जाना– यदि विसर्ग से पहले अ, आ को छोडकर कोई दूसरा स्वर हो और बाद में आ, उ, ऊ, तीसरा वर्ण, चौथा वर्ण, पाँचवा वर्ण या य, र, ल, व में से कोई हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
निः + आशा = निराशा,
निः + धन = निर्धन
निः + बल = निर्बल,
आशीः + बाद = आशीर्वाद
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
विसर्ग का ‘श’ हो जाता है– यदि विसर्ग के पहले कोई, स्वर हो और बाद में च, छ, या श हो तो विसर्ग का श् हो जाता है
निः + चिन्त =निश्चिन्त
निः+ छल = निश्छल
दुः + शासन = दुश्शासन
दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
विसर्ग का ब् हो जाता है– विसर्ग के पहले इ, उ, और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ मे से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ष’ हो जाता है–
निः + कपट = निष्कपट,
धनु + टकांर = धनुष्टंकार
निः + ठुर = निष्ठुर
निः + प्राण = निष्प्राण
निः + फल = निष्फल
विसर्ग का ‘स’ हो जाना – विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग का स् हो जाता है
निः + तेज = निस्तेज,
निः + सार = निस्सार
मनः + ताप = मनस्ताप
नमः + ते = नमस्ते
दुः + तर = दुस्तर
दुः + साहस = दुस्साहस
विसर्ग का लोप हो जाना–
(i) यदि विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है और उससे पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है–
निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस
(ii) यदि विसर्ग से पहले अ या आ हो तो और विसर्ग के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है
अतः + एव = अतएव
विसर्ग में परिवर्तन ने होना– यदि विसर्ग के पूर्व ‘अ’ हो तथा बाद में ‘क’ या ‘प’ हो तो विसर्ग में परिवर्तन नही होता
प्रातः + काल = प्रातः काल
अन्तः + पुर = अन्तः पुर
अधः + पतन = अधः पतन
शब्द विचार – शब्द विचार व्याकरण का वह भाग है, जिसमे शब्दों के भेद, अवस्था और व्युत्पत्ति का वर्णन किया जाता हैं।
ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण-समुदाय को शब्द कहा जाता हैं।
हिंदी व्याकरण में शब्द के चार प्रकार होते हैं –
1 . अर्थ की दृस्टि से
2 . उत्पति की दृस्टि से
3 . व्युत्पत्ति की दृस्टि से (बनावट या रचना की दृस्टि से)
4 . प्रयोग की दृस्टि से
1 . अर्थ की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
अर्थ की दृस्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं जो की निम्नलिखित हैं –
(क.) सार्थक शब्द – जिन शब्दों का स्वयं का कुछ अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – घर, स्कूल, मंदिर, आम इत्यादि।
(ख.) निरर्थक शब्द – जिन शब्दों का अलग कोई अर्थ नहीं होता है, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं।
जैसे – टप, मस, चत, मट इत्यादि।
2 . उत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
उत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के पाँच भेद होते हैं –
(क.) तत्सम – जो संस्कृत के शब्द ठीक उसी रूप से हिंदी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तत्सम शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – रिक्त, रात्रि, मध्य, छात्र इत्यादि।
(ख.) तदभव – कुछ शब्द संस्कृत से रूपांतरित होकर हिंदी में प्रचलित हो गए हैं ऐसे तत्सम शब्द के बिगरे रूप को तदभव शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – आग, हाथ, दूध, गाँव इत्यादि।
(ग.) देशज – कुछ शब्द देश के अंदर बोलचाल की भाषा से हिंदी में प्रचलित हो गए हैं। ऐसे शब्द को देशज शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – लोटा, पगड़ी, जूता, गाड़ी इत्यादि।
(घ.) विदेशज – कुछ शब्द विदेशी भाषाओ से हिंदी में मिला लिए गए हैं। ऐसे शब्दों को विदेशज शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – रेडियो, टेबुल, स्टेशन, सिगरेट इत्यादि।
(ड.) संकर – हिंदी में कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है, जो दो भाषाओं के शब्दों से मिलकर बनते हैं। इस तरह के मिश्रण से बने शब्द को संकर शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
रेल + गाड़ी – रेलगाड़ी (अंग्रेजी + हिंदी)
टिकट + घर – टिकटघर (अंग्रेजी + हिंदी)
पान + दान – पानदान (हिंदी + फारसी)
ऑपरेशन + कक्ष – ऑपरेशनकक्ष (अंग्रेजी + संस्कृत)
3 . व्युत्पत्ति (रचना) की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
व्युत्पत्ति की दृस्टि से शब्दों के तीन भेद होते हैं –
(क.) रूढ़ – जिन शब्दों के खण्डों का अलग-अलग कोई अर्थ नहीं होता हैं, उन्हें रूढ़ शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – घर, नल, मग, कप इत्यादि।
(ख.) यौगिक – जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों से बना हो और जिसके अलग-अलग खण्डों का कुछ आठ होता हो, उसे यौगिक शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
हिम +आलय = हिमालय
विद्या + आलय = विद्यालय
पाठ + शाला = पाठशाला
देव + दूत = देवदूत
(ग.) योगरूढ़ – ऐसे शब्द जो दो या दो से अधिक शब्दों के मूल से बने हो और जो सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ बतावें, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहा जाता हैं।
जैसे –
लम्बा + उदर = लम्बोदर (विशेष अर्थ = गणेशजी)
चंद्र + शेखर = चंद्रशेखर
पित + अम्बर = पीताम्बर
चक्र + पाणी = चक्रपाणि
4 . प्रयोग की दृस्टि से शब्दों के भेद :-
प्रयोग की दृस्टि से शब्दों के दो भेद होते हैं –
(क.) विकारी – जिन शब्दों के रूप लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार बदलते हैं, उन्हें विकारी शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – लड़का, लड़की, मैं, हमें इत्यादि।
(ख.) अविकारी – जिन शब्दों का रूप कभी नहीं बदलता और सदा एक समान ही रहता हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहा जाता हैं।
जैसे – यहाँ, वहाँ, प्रतिदिन, परन्तु इत्यादि।