Q.1. 'दीपदान' एकांकी के आधार पर कीरत बारी का चरित्र-चित्रण कीजिए। (M.P.2020)
उत्तर: कीरत बारी 'दीपदान' एकांकी का गौण पात्र है लेकिन अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा, साहस तथा राजमक्ति से वह पाठकों का दिल जीत लेता है।
कीरत बारी यद्यपि राजमहल में जूठी पत्तलें उठाता है लेकिन वह पक्का राजभक्त है। यह सच्चाई उसके इस कथन से झलकती है - "अन्नदाता ! प्यार कहने में जबान पर कैसे आवे ? वो तो दिल की बात है। मौके पे ही देखा जाता है और कहने को तो मैं कह चुका हूँ कि उनके लिए अपनी जान तक हाजिर कर सकता हूँ।”
'जब कीरत बारी को पन्ना धाय से यह पता चलता है कि कुंवर जी की जान को खतरा है तो वह पन्ना धाय के कहने के अनुसार उसे जूठी पत्तलों की टोकरी में छिपाकर बाहर निकालने को तैयार हो जाता है। उसे यह पता है कि पकड़े जाने पर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा पर वह अपनी जान की परवाह नहीं करता।
इस प्रकार हम पाते हैं कि कीरत बारी एक अत्यंत ही छोटा आदमी है लेकिन अपने कार्य से वह आसमान की ऊँचाइयों को छूता है। पन्ना धाय भी उसके इस उपकार तथा राजभक्ति के बारे में कहती है- “तो जाओ कीरत! आज तुम जैसे एक छोटे आदमी ने चित्तौड के मुकट को संभाला है। एक तिनके ने राज-सिंहासन को सहारा दिया है। तुम धन्य हो!"
इस प्रकार हम पाते हैं कि कीरत बारी 'दीपदान' एकांकी का आदर्श पात्र है।
Q.2. “बनवीर की महत्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बना दिया है" - इस कथन की पुष्टि अपने शब्दों में। कीजिए। (M.P. 2020)
उत्तर : बनवीर ‘दीपदान' एकांकी का खलनायक है। वह महाराज साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासपुत्र है लेकिन उसमें राजसिंहासन पाने की महत्वाकांक्षा बुरी तरह घर कर चुकी है। अपने इस महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए वह बड़े से बड़े जघन्य तथा अनैतिक काम कर सकता है। उसकी इस प्रवृत्ति ने उसे प्रकृति से क्रूर तथा विलासी बना दिया है।
राजसिंहासन पाने के लिए वह मौका देखकर राजदरबारियों तथा सैनिकों को अपनी ओर मिला लेता है ताकि वह महाराजा के उत्तराधिकारी कुंवर सिंह की हत्या कर रातों-रात राजा बन जाय। लेकिन पन्नाधाय तथा कीरत बारी के बलिदान से वह कुंवर की हत्या के बदले पन्ना धाय के पुत्र की हत्या कर देता है।
बनवीर का यह कार्य इस बात को सिद्ध करता है कि वह स्वार्थलोलुप, विश्वासघाती तथा हत्यारा है। उसकी महत्वाकांक्षा ने ही उसे हत्यारा बना दिया है।
Q.3. 'दीपदान' एकांकी के शीर्षक के औचित्य पर अपना विचार प्रस्तुत कीजिए। [M.P. 2017]
अथवा, 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : डॉ. रामकुमार वर्मा प्रणीत 'दीपदान' एक महत्वपूर्ण एकांकी है। शीर्षक के औचित्य पर यदि हम विचार करें तो उसकी उपयुक्तता को लेकर हमारे सामने एक प्रश्नवाचक चिह्न खड़ा हो जायेगा। वास्तव में किसी भी रचना का शीर्षक विषयवस्तु के आन्तरिक मर्म को उभारने वाला होना चाहिए। लेखक के कथ्य की सांकेतिक सूचना शीर्षक से सम्बद्ध हो, जिसे पढ़कर जिज्ञासा भाव जागरूक हो जाय। प्रस्तुत एकांकी में दीपदान शीर्षक का अभिप्राय एक नहीं बल्कि दो है। प्रथम बाध्य और दूसरा आंतरिक बाध्य अभिप्राय स्थूल है, जो आलोकपर्व से सम्बद्ध है। चित्तौड़ के इस आलोक पर्व के सम्पादन में किशोरियाँ दीप सजाकर रात्रि के समय मयूरकुण्ड में दीपदान करती हैं और नृत्य में लीन हो जाती है। कुंवर उदय सिंह अपनी संरक्षिका धाय माँ पन्ना से उत्सव की चर्चा करते हुए कहता है - "वे नामनेवाली लड़कियाँ तुलजा भवानी की पूजा में दीपदान करके ही नाच रही हैं। वे छोटे से कुण्ड में कैसे नाचती है चाय माँ चलो न भाय माँ, तुम उनका दीपदान देख लो।" इसके विपरीत 'दीपदान' का आन्तरिक आशय रहस्यात्मक एवं सांकेतिक है। समूचा चित्तौड़ जहाँ उमंग के आवेग में भरा तुलजा भवानी के सामने दीपदान कर रहा है, वहीं धाव माँ त्याग की अपूर्व देवी अपने पुत्र चन्दन के ही प्राण-प्रदीप को मातृभूमि पर समर्पित कर कहती है- "आज मैंने भी दीपदान किया है, दीपदान! अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" इस प्रकार इन दोनों अभिप्रायों से सम्बन्धित दीपदान की सार्थकता सिद्ध होती है दीपदान केवल मिट्टी के दीपक का दान नहीं, अपितु जीवन के दीप का भी दान है।
Q.4 'दीपदान एकाकी के आधार पर सोना का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर: सोना 'दीपदान' एकांकी के प्रमुख पात्रों में से एक है। यद्यपि वह बहुत कम समय के लिए एकांकी में आती है लेकिन इतने समय में ही अपना प्रभाव छोड़ जाती है। सोना का चरित्र-चित्रण निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है
(क) रावल की पुत्री सोना चित्तौड़ के महाराजा के अधीन रावल (सरदार) की पुत्री है। राजदरबार से जुड़े होने के कारण वहाँ के सभी लोगों से उसका संबंध परिवार की तरह हो गया है। इस बात का पता उसकी बातचीत से चलता है
“उनको (बनवीर) हमारा नाच बहुत अच्छा लगा। ओहो बनवीर ! उन्हें श्री महाराजा बनवीर कहो।''
(ख) रूपवती एवं नटखट - सोना की उम्र सोलह वर्ष है। वह जितनी रूपवती है उतनी ही नटखट भी है। जितनी देर तक वह एकांकी में उपस्थित रहती है उसके नटखटपन का अंदाजा हमें लगता रहता है । वह थोड़ी देर के लिए भी चुप रहना नहीं जानती
“धाय माँ, पागलपन कहीं कम होता है? पहाड़ बढ़कर कभी छोटे हुए हैं ? नदियाँ आगे बढ़कर कभी लौटी हैं ? फूल खिलने के बाद कभी कली बने हैं ? "
(ग) अपनी किस्मत पर इठलाने वाली - सोना एक साधारण सरदार की पुत्री होकर भी जिस तरह वह बनवीर की कृपापात्र बनी है उसे वह अपनी किस्मत ही मानती है। उसकी सोच है कि यह उसका भाग्य ही है जिसके कारण वह इतना कुछ पा रही है
“भाग्य तो सबके होता है धाय माँ ! ये नूपुर मेरे पैरों में पड़े हैं, तो यह भी इनका भाग्य है। मेरे आगमन का संदेश पहले ही पहुँचा देते हैं, तो यह भी इनका भाग्य है।"
(घ) बनवीर के प्रेम में पागल सोना बनवीर के प्रेम में पागल है। वह बनवीर की कूटनीति को समझ नहीं पाती तथा उसके प्रेम को सच्चा मानती है जबकि पन्ना उसे सावधान करते हुए कहती है
'आँधी में आग की लपट तेज ही होती है, सोना ! तुम भी उसी आँधी में लड़खड़ाकर गिरोगी । तुम्हारे ये सारे नूपुर बिखर जाएंगे । न जाने किस हवा का झोंका तुम्हारे इन गीतों की लहरों को निगल जाएगा।"
(ङ) सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाली सोना का यह विश्वास है कि आगे चलकर शायद उसकी किस्मत भी खुल जाएगी। वह आने वाले उन दिनों को याद करती हुई पन्ना से कहती है -
‘“मैं रावल की बेटी हूँ, शायद सामंत की बेटी हूँ, शायद महाराज की बेटी बनूँ ! कुछ बढ़कर ही बनूँगी। और तुम धाय माँ ? सिर्फ चाय माँ ही रहोगी।"
इस प्रकार हम पाते हैं कि सोना का चरित्र इस एकांकी में बनवीर के चरित्र का प्रतिबिंब बनकर आया है। उसकी बातों से बनवीर के दुश्चक्र की गंध आती है। इन्हीं कारणों से वह एकांकी के प्रमुख पात्रों में अपना स्थान बनाती है।
Q.5. 'दीपदान' एकांकी के आधार पर बनवीर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |(M.P.2018)
उत्तर : बनवीर 'दीपदान' एकांकी का दूसरा प्रमुख पात्र है। वह महाराजा साँगा के भाई पृथ्वीराज का दासपुत्र है। प्रकृति से वह क्रूर तथा विलासी है। उसके रक्त में विश्वासघात का ज़हर भरा हुआ है। ऐसे ही चरित्र के कारण भारत का मध्यकालीन इतिहास का पन्ना काले अक्षरों में लिखा गया है।
बनवीर के चरित्र को निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है
(क) विलासी प्रकृति बनवीर की विलासी प्रकृति का पता इसी से चलता है कि उसने रावल सरूप सिंह की रूपवती, नटखट बेटी सोना को अपने प्रेम जाल में फांस लिया है। वह बनवीर की प्रकृति से बेखबर उसके झूठे प्रेम में पागल हो चुकी है। बनवीर के प्रेम को वह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि मानती है।
(ख) राजसत्ता का लालची बनवीर के अंदर राजसत्ता का लालच इतना भर चुका है कि वह अपना विवेक खो बैठता है। राजसिंहासन पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है मौका देखकर वह राजदरबारियों तथा सैनिकों को भी लालच देकर अपनी ओर मिला लेता है।
(ग) असभ्य बनवीर असभ्य है। सत्ता-लालच में वह यह भी भूल गया है कि जिस पन्ना को पूरा महल धाई
माँ कहकर पुकारता है, वह उसके साथ अत्यंत क्रूर तथा असभ्यता से पेश आता है।
"महाराज बनवीर नहीं कहा ?"
"पन्ना ! हत्यारा बनवीर कहने वाली की जीभ काट दी जाएगी।"
“यदि मेरा नाम लेना है तो जयकार के साथ नाम लो।"
(घ) विश्वासघाती बनवीर को महाराणा विक्रमादित्य काफी प्रेम करते हैं। इतना कि उनकी आत्मीयता में वह पागल है। इतना ही नहीं, अंतःपुर की रानियाँ भी उनसे काफी स्नेह करती हैं इसलिए वह अंतःपुर में बेरोक-टोक आ-जा सकता है। अपने स्वार्थ के लिए वह इतने सारे लोगों के साथ विश्वासघात करता है।
(ङ) हत्यारा बनवीर की सत्ता लोलुपता इतनी बढ़ जाती है कि वह रातों-रात ही राजा बन जाना चाहता है। इसके लिए वह षडयंत्र रचकर नगर में दीप दान का उत्सव कराता है। उसी शोर-शराबे के बीच वह महाराणा के कक्ष में जाकर उनकी हत्या कर देता है। महाराणा का उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह है। इसलिए यह उसे भी अपने रास्ते से हटाने के लिए उसकी हत्या करने का निश्चय कर लेता है। इसकी आशंका महल की परिचारिका सामली को पहले ही हो जाती है। वह पन्ना से कहती है
"सर्प की तरह उसकी भी दो जीमें हैं जो एक से नहीं बुझेंगी। उसे दूसरा रक्त भी चाहिए।"
अंततः वह कुँवर उदय सिंह के धोखे में पता धाय के पुत्र चंदन की हत्या कर देता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बनवीर का चरित्र एक स्वार्थलोलुप, विश्वासघाती तथा हत्यारे का चरित्र है, लेकिन उसके चरित्र का यह काला पहलू ही पन्ना धाय के चरित्र को और भी उज्ज्वल बना देता है।
Q.6. 'दीपदान' एकांकी के आधार पर पन्ना धाय की प्रमुख विशेषताओं को लिखें।
अथवा, सिद्ध कीजिए कि पन्ना के चरित्र में माँ की ममता, राजपूतानी का रक्त, राजभक्ति और आत्मत्याग की भावना है। (M.P. 2017)
उत्तर : पन्ना धाय 'दीपदान' एकांकी की प्रतिनिधि पात्र है। सच कहा जाय तो वही इस एकांकी की नायिका है तथा एकांकी की संपूर्ण कथा उसके इर्द-गिर्द ही घूमती है। इस एकांकी में उसका चरित्र एक वीरांगना के रूप में प्रस्तुत हुआ है। यह वह भारतीय नारी नहीं है जिसके बारे में प्रसाद जी ने कहा था
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग-पग तल में ।
पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।"
पन्ना धाय में हमें एक साथ पृथ्वी की सी क्षमता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की-सी गंभीरता, चन्द्रमा की सी शीतलता तथा पर्वतों के समान मानसिक उच्चता दिखाई पड़ती है। पन्ना धाय केवल एक आदर्श घाय ही नहीं है बल्कि उसमें सच्ची देशभक्ति तथा कर्त्तव्य परायणता भी कूट कूट कर भरी है। इन्हीं गुणों के कारण वह चित्तौड़ के उत्तराधिकारी कुंवर उदय सिंह की रक्षा बनवीर से करने के लिए अपने पुत्र को बलिदान करने से भी नहीं हिचकती। यद्यपि बनवीर उसे धन का लालच देकर खरीदना चाहता है लेकिन पन्ना उसे दो टूक जवाब देती है
"राजपूतानी व्यापार नहीं करती, महाराज ! वह या तो रणभूमि पर चढ़ती है या चिता पर।" इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पन्ना धाय 'दीपदान' एकांकी की प्रमुख पात्र होने के साथ-साथ एक आदर्श
भारतीय नारी का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करती है।
Q7. दीपदान एकांकी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : दीपदान एकांकी के रचनाकार डॉ. रामकुमार वर्मा जी हैं। दीपदान ऐतिहासिक एकांकी परंपरा पर आधारित रचना है। इसमें त्याग,बलिदान, राजभक्ति, सीमित राष्ट्रभक्ति, कर्तव्य पालन और आत्मोत्सर्ग की उच्चतम भावना का चित्रण हुआ है। चित्तौड़ की धरती सदियों से ऐसी धरती रही है जहाँ पर एक से बढ़कर एक क्षत्रियों एवं क्षत्राणियों ने जन्म लिया। इसी धरती पर जन्म लेने वाली खींची जाति की राजपूतानी पन्ना धाय सर्वदा के लिए अपने त्याग एवं आत्मोत्सर्ग के बल पर अमर हो गई।
एकांकी का आरंभ चित्तौड़ में असमय आयोजित दीपदान महोत्सव से होता है। पूरा राज्य इस महोत्सव में सराबोर है। कुंवर उदय सिंह जो राज्य के उत्तराधिकारी हैं, वे भी इस समारोह में जाना चाहते हैं। पर पन्ना उन्हें मना कर देती है। मना करने से कुँवर उदय सिंह नाराज हो जाते हैं और न भोजन करने की बात करते हैं और न ही शैया पर सोने की बात कहते हैं। इसी बीच रावल सरूप सिंह की लड़की सोना का आगमन होता है, वह धाय माँ पन्ना से कुंवर सिंह को साथ भेजने की जिद्द करती है। तब धाय माँ मना कर देती है। इस पर सोना बनवीर सिंह की बड़ाई करती है तथा अपने भाग्य को सराहती है। आने वाले दिनों में बनवीर को महाराज के समान देखना चाहती है। वह चाहती है कि पन्ना भी महाराज बनवीर का साथ दे। पन्ना उसे चितौड़ की भूमि को जौहर की भूमि कहती है सोना के नाच को व्यर्थ करार देती है। वह कहती है कि चित्तौड़ की भूमि का गीत नूपुर का जन झून नहीं बल्कि मातृभूमि की बन्दना का गीत है। जाने को कहकर वह सोना से सवाल करते हुए पूछती है कि बनवीर के इस रास रंग का क्या अर्थ है। इस सवाल के उत्तर को अपनी समझ से परे सोना कहती है। रात गहरी होती जाती है। रास रंग धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। नगर में लोगों का जमाव बढ़ता जाता है और कुंवर उदयसिंह का बुलावा आता है।
पन्ना अपने प्रकोष्ठ में बैठी है तभी उसके पुत्र चंदन का प्रवेश होता है। वह सोना को उदास जाते देखकर हैरान होता है। अपनी माँ से वह उसके उदासी का कारण पूछता है तब पन्ना है उसे कुँवर के साथ न जाने देने की प्रमुख वजह बतलाती है। चंदन अपनी माँ पन्ना से कुँवर द्वारा उनके साथ न खेलने का जिक्र करता है तथा उनके द्वारा लगातार सोना की तरफ देखते रहने का वर्णन करता है। इस पर पन्ना उससे पूछती है कि वह किस ओर देखता है। तब वह पहाड़ी खरगोश का जिक्र करता है। वह उसी के समान दौड़ लगाना चाहता है। पन्ना उसे भोजन कर लेने के लिए कहती है। चंदन अकेले भोजन नहीं करना चाहता है। चंदन का यहीं से प्रस्थान होता है। एकाएक घर की कुछ चीजों के गिरने की धमक सुनाई पड़ती है और अन्तःपुर की परिचारिका सामली का आगमन होता है। वह आते ही बर उदयसिंह की कुशलक्षेम पूछ है और महाराणा विक्रमादित्य की बनवीर द्वारा हत्या कर दिए। जाने की खबर पत्रा से कहती है। पन्ना चीखती है और कहती है कि वह पहले से यह जानती है। सामली पन्ना से षडयंत्र के बारे में कहती है कि नगर में नाच-गान का त्योहार इसलिए मनाया गया कि मौका देखकर बनवीर महाराणा विक्रमादित्य की हत्या कर सके। सामली बनवीर को लालसा की तुलना साँप की जीभ से करती है। वह कहती है कि जिस प्रकार साँप की जीभ दो भागों में बंटी है उसी प्रकार बनवीर की प्यास एक हत्या से नहीं मानेगी बल्कि वह कुँवर के रक्त से ही बुझेगी। पन्ना अत्यंत चिन्तित हो उठती है। वह आँखें बंद कर चित्तौड़ की कुलदेवी तुलजा भवानी की मार्चना करती है।इस पर सामली कुंवर की रक्षा के लिए पना से कोई युक्ति काम में लाने के लिए कहती है। दरवाजे पर आहट होती है. पन्ना जोर से पूछती है - दरवाजे पर कौन है? कीरत बारी का प्रवेश होता है और वह आते ही पत्रा को प्रणाम करता है। कोरत बाहर सिपाहियों का डेरा लगे होने की बात करता है। पत्रा सही-सही जानकारी लेने के लिए सामली को कहती है। कौरत बारी को पन्ना उसको राजभक्ति सिद्ध करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे समय में कौरत अपने प्राणों की बाजी लगाने के लिए तैयार हो जाता है। सामली आकर पन्ना को बताती है कि महल के तीनों दिशाओं में बीस-बीस सिपाही पहरा दे रहे है, सिर्फ उत्तर की तरफ सात सिपाही हैं। पन्ना उन्हें वहीं खड़ा रहने का हुक्म दे खुद निरीक्षण करने जाती है। पुनः लौटकर कीरत से उदयसिंह को उसको टोकरी में सुलाकर महल से बाहर ले जाने की बात करती है। सामली भी प्रसन्न हो जाती है। इस पर कीरत उनसे पूछता है कि बनवीर के आने और है। पूछने पर कि कुँवर उदयसिंह कहाँ है तो वे क्या जबाव देंगी। इस पर पन्नाधाय उससे माफी मांगने की बातें करती है। उनके बीच वार्तालाप हो रहा होता है तभी चंदन का प्रवेश होता है। उसके पैर में चोट लगने से रक्त निकल रहा होता है। पत्रा उसका रक्त बंद करने के लिए अपनी साड़ी के कपड़े का एक टुकड़ा फाड़ती है। उससे चोट लगने का कारण पूछती है। इस पर वह सिपाहियों को महल के चारों ओर घिरे देखने के लिए जब दीवाल पर चढ़ता है तब उतरते समय शीशे से कट है जाता है। चंदन द्वारा पूछे जाने पर कि कुँवर कहाँ है तब वह उनके रूठ कर कहीं चले जाने को कहती है। वह अपने पुत्र को भर पेट खाना खिला देना चाहती हैं. परन्तु चंदन खाना खाने की बजाय अगले दिन कुंवर के साथ बैठकर खाना खाने की बातें करता है। सोने से पहले वह शय्या ठीक न होने की बात कहता है, तब पन्ना उसे कुंवर सिंह के शय्या पर सुला देती है। उसे नींद नहीं आती है, तब वह एक गीत गाती है जो अति करुण है। चन्दन सो जाता है पर पन्ना की आँखों से नींद गायब हो जाती है। वह अपने लाल के बारे में सोचती है। बनवीर मद्यपान किए हुए हाथ में रक्त से सनी तलवार लेकर कमरे में दाखिल होता है। वह कुंवर सिंह के बारे में पन्ना से जानना चाहता है। वह पन्ना को धन का लालच देता है परन्तु स्थाभिमानी पन्ना उसका उत्कोच स्वीकार नहीं करती है। वह अपनी कटार से बनवीर पर आक्रमण करती है जिसे बनवीर अपनी ढाल पर रोक लेता है। राजसी पलंग पर सोये हुए चंदन को कुँवर समझ एक ही बार में उसका काम तमाम कर देता है। पन्ना यह हृदयविदारक घटना देखती है और चीखकर मूर्छित हो जाती है।
इस प्रकार 'दीपदान' एकाकी में एक दीप की रक्षा के लिए अपने प्राणों के दीपक को दान कर दिया जाता है। पन्नाधाय का यह त्याग सादियों के लिए माँ के ममत्व, राष्ट्रप्रेम, स्वामिभक्तिः के गुण को सदा के लिए सबके मन मस्तिष्क को स्पंदित करने में सफल रहेगा।