अति लघुत्तरीय प्रश्न : -----
Q.1 लड़की की कुड़माई होने की बात सुनकर लड़के पर क्या प्रभाव पड़ा? (M.P.2019)
उत्तर : जैसे ही लड़की की कुड़माई होने की बात लड़के ने सुनी उसे बहुत बुरा लगा। उसने रास्ते में एक लड़के को नाली में धकेला, एक ठेलेवाले ने दिनभर की कमाई खोई. एक कुत्ते को पत्थर मारा, एक गोभीवाले के ठेले में दूध उड़ेल दिया और किसी वैष्णवी से टकराकर अंधे की उपाधि पाई।
Q.2. हजारा सिंह अपने रेजिमेंट में किस पद पर थे ? (M.P. 2019)
उत्तर: सूबेदार के पद पर ।
Q.3. किस घटना को याद कर सूबेदारनी रोने लगी?(M.P.2018)
उत्तर: सूबेदारनी ने बोधा सिंह के अलावा चार और पुत्रों को जन्म दिया था लेकिन उनमें से कोई नहीं बचा। उसी घटना को याद कर सूबेदारनी रोने लगी।
Q.4. वजीरा सिंह कौन है ?(M.P.2018)
उत्तर : वजीरा सिंह नं० 77 सिख राइफल्स में सैनिक था। वह अपनी पलटन का विदूषक भी था क्योंकि सबको अपनी बातों से हँसाता रहता था।
Q.5. कीरत कौन है?(M.P.2018)
उत्तर : कीरत सिंह लहना का भाई है।
Q.6.'मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी' ——जरसी की कथा क्या थी ?.——स्पष्ट कीजिए। (M.P. 2017)
उत्तर : लहना नहीं चाहता था कि बोधा को मानसिक कष्ट पहुँचे इसलिए वह एक काल्पनिक कथा गढ़ता है जिसमें बोधा को आश्वस्त करते हुए कहता है कि अंग्रेज मेमें जर्सी बुनकर मोर्चे पर सैनिकों के लिए भेज रही हैं, वही जर्सी मेरे पास है।
Q.7. वैष्णवी से टकराने पर लड़के को क्या उपाधि मिली?
उत्तर : अन्धे की उपाधि मिली।
Q.8. कैसे पता चलता था लड़का और लड़की दोनों सिख हैं?
उत्तर : लड़के के बालों से तथा लड़की के ढीले (सुथने) पाजामे से यह जान पड़ता था कि दोनों सिख हैं।
Q.9. जर्मनों के हमले में कितने सिक्खों के प्राण गए ?
उत्तर : पंद्रह ।
Q.10.'देखते नहीं, रेशम से कढ़ा हुआ सालू' किसने किससे कहा था ?
उत्तर : लड़की ने लहना सिंह को कहा था। ने
Q.11. बचपन में मिली लड़की लहना सिंह के सामने किस रूप में आई ?
उत्तर : सूबेदारनी के रूप में।
Q.12. नकली लपटन साहब को लहना सिंह ने कैसे फँसाया ?
उत्तर : अपनी लच्छेदार बातों से।
Q.13. तेरी कुड़माई हो गई यह किसका कथन है ?
उत्तर : बालक लहना सिंह का कथन है।
Q.14. लहना सिंह के गाँव के डाक बाबू का नाम क्या था ?
उत्तर : लहना सिंह के गाँव के डाक बाबू का नाम पोल्लूराम था।
Q.15. लहना सिंह ने तुर्की मौलवी के साथ क्या किया ?
उत्तर :लहना सिंह ने तुर्की मौलवी की दाढ़ी मुँह दी थी और फिर गाँव में पाँव न रखने की शर्त पर उसे भगा दिया था।
Q.16. हजारा सिंह अपने रेजिमेंट में किस पद पर हैं ?
उत्तर : हजारा सिंह अपने रेजिमेंट में सूबेदार के पद पर हैं।
Q.17. क्या देखकर लहना सिंह का माथा ठनका ?
उत्तर : जब लहना सिंह ने लपटन साहब के चेहरे तथा बाल को देखा तो उसका माथा ठनका।
Q.18. "कलों के घोड़े" किसे कहा गया है ?
उत्तर : यह जर्मन सैनिकों के लिए कहा गया है।
Q.19. बोचा सिंह किसका पुत्र था ?
उत्तर : बोधा सिंह सूबेदार हजारा सिंह का पुत्र था।
Q.20. लहना सिंह ने लपटन की तलाशी लेते समय किसकी तलाशी नहीं ली थी ?
उत्तर : पतलून के जेबों की।
Q.21. पोलिश लोक-विश्वास के अनुसार छत पर पपीहे का बोलना क्या माना जाता है ?
उत्तर : पोलिश लोक विश्वास के अनुसार छत पर पपीहे का बोलना शुभ शकुन माना जाता है।
Q.22. संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ का अवतार किसे बताया गया है?
उत्तर : इक्के गाड़ीवालों को संसार भर की ग्लानि, निराशा और क्षोभ का अवतार बताया गया है।
Q.23. 'हाँ देश क्या है, स्वर्ग है' किस देश के बारे में कहा गया है ?
उत्तर : फ्रांस के बारे में कहा गया है।
Q.24. हमले के बाद फील्ड अस्पताल से कितनी गाड़ियाँ आयीं ?
उत्तर : दो गाड़ियाँ ।
Q.25. लेखक ने बड़े शहरों के इक्के गाड़ीवालों की जबान की तुलना किससे की है।
उत्तर :लेखक ने बड़े शहरों के इक्के गाड़ीवालों की जबान की तुलना कोड़ों की चोट से की है।
Q.26. जबान के कोड़ों से घायल व्यक्ति से लेखक ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर :ऐसे व्यक्ति अमृतसर के बम्बूकार्टवालों की बोली का मरहम लगाएं।
Q.27. अस्पताल की गाड़ी पर लेटे बोधा सिंह से लहना सिंह ने क्या कहा ?
उत्तर : लहना सिंह ने बोधा सिंह से कहा कि मुझसे जो उन्होंने कहा था, वह मैंने कर दिया।
Q.28. 'मरें जर्मन और तुरक'- बक्ता कौन है ?
उत्तर : वक्ता बजीरा सिंह है।
Q.29. तुर्की मौलवी क्या करता था ?
उत्तर : तुर्की मौलवी गाँव की औरतों को बच्चे होने की ताबीज़ बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था ।
संक्षिप्त एवं व्याख्यामूलक प्रश्न ---
Q.1."जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो कहा था, यह मैने कर दिया है ।''(M.P. 2020)
प्रश्न: उक्त अंश किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर : उक्त अंश 'उसने कहा था।' पाठ से लिया गया है।
प्रश्न: उक्त अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : सुबेदारनी ने लगना सिंह से कहा था कि, "तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाए थे। ....... ऐसे ही इन दोनों को बचाना, यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे मैं आँचल पतारती हूँ।” लहनासिंह ने अपने प्राण देकर भी सूबेदार हजारा सिंह और बोधा सिंह के प्राण बचाकर अपना वचन पूरा किया।
Q.2. यह बात नहीं कि उनकी जीम चलती ही नहीं, चलती है,पर मीठी छुरी की तरह महीन वार करती है। (M. P. 2019)
प्रश्न पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : पंक्ति के रचनाकार पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं।
प्रश्न: कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : गुलेरी जी ने कहना चाहा है कि ऐसी बात नहीं कि अन्य बड़े शहरों के तांगेवालों की तरह अमृतसर के तांगेवाले की जबान नहीं चलती। उनकी जबान भी चलती है और खूब चलती है। फर्क केवल इतना है कि उनकी बातें सुनने वाले पर सीधे-सीधे प्रहार नहीं करती। इनकी बातें मीठी छुरी की तरह वार करती हैं कि सुनने वाला कुछ कहने की स्थिति में नहीं रहता।
Q.3. मेम की जरसी की कथा केवल कथा थी।
प्रश्न प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से ली गई है?(M.P.2017)
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति 'उसने कहा था' पाठ से ली गई है।
प्रश्न वक्ता कौन है ?
उत्तर : दक्ता लहना सिंह है।
प्रश्न पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : सूबेदारनी ने लहना सिंह से अपने पति और पुत्र बोधा सिंह के प्राणों की रक्षा करने की भिक्षा माँगी थी। लहना सिंह इसीलिए अपनी परवाह न कर बोधा सिंह का विशेष ध्यान रखता है। वह अपनी गरम जरसी भी बोधा सिंह को पहना देता है। मना करने पर वह बोधा सिंह को झूठी कहानी सुना देता है कि उसके पास दूसरी गरम जरती है। विलायत से मेमें ये जरसी बुन-बुनकर भेज रही हैं। गुरुजी मेमों का भला करें।
Q.4. "भावों की टकराहट से मूर्च्छा खुली करवट बदली पसली का घाव बह निकला।' (M.P. 2017)
प्रश्न : किसको मूर्च्छा आ गई थी ?
उत्तर : लहनासिंह को मूर्च्छा आ गई थी।
प्रश्न : सूबेदारनी ने लहना सिंह से आँचल पसारकर क्या माँगा था ?
उत्तर : सूबेदारनी ने लहना सिंह से आँचल पसारकर यह माँगा था कि जिस तरह एकबार मेरी जान बचाने के लिए अपनी जान की परवाह न की थी उसी प्रकार मेरे पति और पुत्र के प्राणों की रक्षा करना।
Q.6.बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।
प्रश्न : बक्ता कौन है?
उत्तर: वक्ता लहना सिंह है।
प्रश्न पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : लहना सिंह चाहता है कि बीच-बीच में आक्रमण करने का मौका मिलता रहे युद्ध न होने से ऐसा लगता है कि मानो उसके शरीर में जंग-सी लग गई हो। उदाहरण के तौर पर वह कहता है कि बिना फेरे (खरहरा करना, ब्रश करना) घोड़ा बिगड़ जाता है और बिना लड़े सिपाही। यही कारण है कि वह बीच-बीच में धावा बोलने का अवसर चाहता है।
Q.7. मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है।
अथवा, सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं, समय की चुन्ध बिल्कुल उस पर से हट जाती है।
प्रश्न: प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' हैं।
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : लहना सिंह को दो-दो गोलियाँ लगी हैं। गोलियों के घाव के कारण यह अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। जैसे-जैसे वह मृत्यु के करीब आता जाता है, उसकी स्मृतियाँ साफ हो जाती हैं। बचपन के प्रेम से लेकर अब तक की सारी घटनाएँ उसकी आँखों के सामने चलचित्र (सिनेमा) की तरह गुजर जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु के पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। लहना सिंह भी समय के इसी दौर से गुज़र रहा है।
Q.8. कल, देखते नहीं, यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू
प्रश्न: बक्ता और श्रोता कौन हैं?
उत्तर: वक्ता लड़की है और श्रोता चालक लहना सिंह है।
प्रश्न : वक्ता का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : बालक लहना सिंह लड़की को बार-बार 'तेरी कुड़माई हो गई' कहकर छेड़ता था। लड़की धत् कहकर भाग जाती थी। लेकिन आशा के विपरीत एक दिन लड़की ने उत्तर में यह कहा, गई। प्रमाण के तौर पर उसने रेशम से कढ़ा हुआ सालू दिखाया।
Q.9. सुनते ही लहना सिंह को दुःख हुआ। क्रोच हुआ ! क्यों हुआ ?
प्रश्न : रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचनाकार चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' हैं।
प्रश्न: क्या सुनते ही लहना सिंह को दुःख हुआ, क्रोच हुआ ?
उत्तर : जब लहना सिंह ने अपने प्रश्न- क्या तेरी कुड़माई हो गई" के उत्तर में संभावना के विरुद्ध यह सुना कि, "हाँ, हो गई। देखते नहीं यह रेशम के फूलोंवाला सालू ?" तो उसे काफी दुःख हुआ। दुःख के साथ ही साथ उसे उस लड़की पर अपने आप पर काफी गुस्सा भी आया क्योंकि वह मन ही मन उस लड़की से प्यार करने लगा था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ----
Q.1.उसने कहा था' कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण फीजिए।
अथवा, 'उसने कहा था' कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा, 'उसने कहा था' लहना सिंह के प्रेम के बलिदान की कहानी - समीक्षा करें। [M. P. 2019]
उत्तर : लहना सिंह 'उसने कहा था' के प्रमुख पात्र होने के साथ-साथ इस कहानी का नायक भी है। कहानी के प्रारंभ से अंत तक उसकी उपस्थिति अत्यंत प्रभावशाली है - यही कारण है कि में लहना सिंह के चरित्र मे सबसे ज्यादा प्रभावित हूँ। सहना सिंह आम प्रेम कहानी के नायकों से बिल्कुल भिन्न है। भिन्न इस अर्थ में कि यह एकसाथ व्यक्तिगत प्रेम और कर्तव्य प्रेम को बखूबी निभाता है। लहना सिंह के चरित्र की जितनी भी खूबियों को गिनाया जाय कम है। फिर भी उसके चरित्र की कुछ खास विशेषताओं को हम इन शीर्षकों के अंतर्गत देख सकते हैं -
(क) चंचल व शरारती बालक जब बारह वर्षीय लहना सिंह आठ वर्षीया लड़की से दुकान में मिलता है तो अनायास ही उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। बाल-सुलभ चपलता से यह उसे यह कहकर - "तेरी कुड़माई हो गई ?"- छेड़ता है और लड़की 'धत्' कहकर आँखें चढ़ाकर भाग जाती है। एक दिन जब वह जवाब में कहती है- "हाँ, हो गई।" -तब इसकी जो प्रतिक्रिया लहना सिंह पर होती है उससे यह पता चलता है कि वह मन ही मन चाहने लगा था "लड़के ने घर की राह सी। रास्ते में एक लड़के को मोरी में डकेल दिया, एक छावड़ी वाले की दिनभर की कमाई खोई, एक कुत्ते पर पत्थर मारा - किसी वैष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधि पाई...
(ख) सच्चा सिख फौज में रहने तथा लड़ाई के मैदान में रहने पर भी लहना सिंह धर्म से विमुख नहीं होता। इस बात का पता फिरंगी मैम के प्रसंग से चलता है, जब वह कहता है- "आज तक मैं उसे समझा न सका कि सिख तम्बाकू नहीं पीते। यह सिगरेट पीने की हठ करती है, ओठों में लगाना चाहती है, और में पीछे हटता हूँ, तो समझती है कि राजा बुरा मान गया..........
(ग) वीर और कुशाग्र बुद्धि लहना सिंह बीर है। यह युद्ध से छुटकारा नहीं चाहता बल्कि चाहता है कि बीच-बीच में मार्च करने का हुक्म मिलता रहे क्योंकि "बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही ।" यह लहनासिंह की कुशाग्र-बुद्धि का ही फल है कि यह नकली लपटन साहब को पहचान कर अपने साथी सैनिकों की जान बचाता है अन्यथा सब के सब मारे जाते।
(घ) मानवीय संवेदना से भरपूर: लहना सिंह कठोर सैनिक होने के साथ-साथ मानवीय संवेदना से भी भरपूर है। यही कारण है कि वह बुखार में तप रहे बोधा सिंह को अपनी जर्सी तक पहना देता है तथा उसके बदले पहरा भी देता है। इतना ही नहीं यह अपने घाव की परवाह न कर पहले बोधा सिंह को उपचार के लिए अस्पताल की गाड़ी में भेज देता है।
(ङ) आदर्श त्यागी प्रेमी लहना सिंह न केवल आदर्श प्रेमी है बल्कि प्रेम के लिए यह अपने प्राणों तक को न्योछावर कर देता है। सूबेदारनी बचपन के प्रेम की याद दिलाते हुए उससे पति तथा पुत्र के प्राणों की रक्षा का जो वचन लेती है, वह उसे अपनी जान देकर चुकाता है
"फ्रांस और बेलजियम 68 वीं सूची मैदान में घावों से मरा नं. 77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।
" इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लहना सिंह 'उसने कहा था' का आदर्श चरित्र है। पूरी की पूरी कहानी उसके स्याग और प्रेम में बलिदान होने की कहानी है। लहना सिंह अपनी इन्हीं चारित्रिक विशेषताओं के कारण हिन्दी कहानी का अमर पात्र बन गया है।
अति लघुत्तरीय प्रश्न : -----
Q.1. जेन्को (जेन्को) कैसा बालक था?
उत्तर : जेन्को दुबला पतला लेकिन होनहार बालक था ।
Q.2. जेन किस चीज़ को पाने के लिए कुछ भी कर सकता था ?
उत्तर :जेन वायलिन को पाने के लिए कुछ भी कर सकता था।
Q.3.किसकी साँसें नाजुक डोर से लटकी हुई थीं
उत्तर : जैन की साँसे नाजुक डोर से लटकी हुई थीं।
Q.4.'यह मुहब्बत ही उसका जुनून थी।' रेखांकित शब्द किसकी ओर संकेतित है। पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।(M.P.2017)
उत्तर : संगीत के प्रति बेइंतहा प्रेम ही जेन का जुनून था। प्रकृति की हर आवाज़ में उसे संगीत ही सुनाई देता था। यह खूबी केवल जेन में ही थी क्योंकि दूसरे बच्चों को यह संगीत कहीं नहीं सुनाई देता था। जहाँ कहीं भी संगीत सुनाई देता जेन उसमें पूरी तरह डूब जाता था। चाहे वह शराबखाने में बजनेवाला संगीत हो या फिर फसल कटने या शादी-ब्याह के मौके पर बजाया जाने वाला संगीत हो ।
Q.5. जेन्को ललचाई नजरों से किसको ताक रहा था और क्यों? (M.P. 2017)
उत्तर :जेन्को ललचाई नजरों से पायलिन को देख रहा था क्योंकि वह भी अपने लिए एक वायलिन चाहता था ।
Q.6.जेन को किस अपराध में सजा दी गई थी ?
उत्तर :वायलिन चुराने के आरोप में।
Q.7. जेन की किस्मत में क्या लिखा था ?
उत्तर : जेन की किस्मत में केवल वायलिन की धुन सुनना लिखा था, उसे बजाना नहीं।
Q.8. जेन ने अपने लिए खुद से क्या बनाया ?
उत्तर :जेन ने अपने लिए खुद से काठ के टुकड़े से एक सारंगी बनाई।
Q.9, जेन कब आनंद की अनुभूति से भर उठता था ?
उत्तर : रात में जब मेढक टर्राते, चारागाहों पर कुक्कुट चीत्कार करते, दलदल में तितलीचे धमा चौकड़ी मचाते और पीछे मुर्गे बाँग देते थे तब जेन आनंद की अनुभूति से भर उठता था।
Q.10. लुहार की पत्नी ने जेन की माँ से क्या कहा ?
उत्तर : लहार की पत्नी ने जेन की माँ से कहा- "तुम चुपचाप लेटी रहो, मैं पवित्र मोमबत्ती जलाती हूँ, तुम्हारे पास ज्यादा वक्त नहीं है, दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी करो।
Q.11. जेन को न्यायाधीश ने जेल क्यों नहीं भेजा ? .
उत्तर :न्यायाधीश ने देखा कि जेन अत्यंत छोटा, भयभीत एवं कमजोर है इसलिए उसे जेल नहीं भेजा।
Q.12. जेन को किसकी आबाज में संगीत सुनाई देता था ?
उत्तर : जेन को हर तरह की आवाज में संगीत सुनाई देता था।
Q.13. एक दूसरी औरत ने नवजात जेन के बारे में क्या कहा ?
उत्तर : एक दूसरी औरत ने जेन के बारे में कहा कि, "मेरे ख्याल से तो यह पादरी के आने तक भी नहीं बचेगा।"
Q.14. जेन ने अपनी माँ से आखिरी कौन-सा सवाल किया ?
उत्तर : माँ, भगवान मुझे स्वर्ग में असली वायलिन देगा ?
Q.15. 'नहीं जेन नहीं किसने कहा था ?
उत्तर :कौए ने कहा था ।
Q.16. 'माँ भगवान मुझे स्वर्ग में असली वायलिन देगा' यह किसका कथन है ?
उत्तर : जैन का कथन है ।
Q.17. काठ के फलक से किसने सारंगी बनायी
उत्तर :जैन ने काठ के फलक से सारंगी बनायी।
Q.18. लूहार की पत्नी ने नवजात जेन के लिए क्या प्रार्थना की ?
उत्तर: लुहार की पत्नी ने नवजात जेन के लिए यह प्रार्थना की "हे ईसाई आत्मा - ! इस दुनिया से अब विदा लें और जहाँ से जन्म लिया है वहीं शरण लें, आमीन !"
Q.19. पड़ोसी जेन के बारे में क्या भविष्यवाणी किया करते थे ?
उत्तर: पड़ोसी जेन के बारे में यह भविष्यवाणी किया करते थे कि यह ज्यादा दिन जी नहीं पाएगा। अगर जीवित भी रहा तो माँ को सुख नहीं दे पाएगा क्योंकि उसका शरीर कड़ी मेहनत के लायक नहीं है।
Q.20. जेन में कौन-सी अनोखी खूबी थी ?
उत्तर: जेन में यह अनोखी खूबी थी कि उसे संगीत से जुनून था।
Q.21. जेन का नामकरण 'जेन' किसने किया ?
उत्तर : सुहार की पत्नी ने।
Q.22. जेन की बनायी सारंगी की आवाज कैसी थी ?
उत्तर : जेन की बनायी सारंगी की आवाज बेहद महीन थी। इतनी महीन मानो मक्खियाँ या कीड़े
मकोड़े मिन-मिन कर रहे हों।
Q.23. किन मौकों पर जेन को खूब आनंद आता था ?
उत्तर : गाँव में जब फसल कटने या शादी-विवाह के मौके पर बाजे और सारंगी बजती तो इन मौकों पर
जैन को खूब आनंद आता था।
संक्षिप्त एवं व्याख्यामूलक प्रश्न ---
Q.1. “मगर अफसोस उसकी इस चाहत ने उस बदनसीब की जान ही ले ली।" (M.P. 2020)
प्रश्न: उक्त अंश के पाठ तथा रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर: प्रस्तुत अंश हेनरी सेंकेविच की कहानी 'नन्हा संगीतकार' नामक पाठ से लिया गया है।
प्रश्न: वह बदनसीब कौन था उसकी जान कैसे चली गई ?
उत्तर : वायलिन पाने की चाहत ने बदनसीब जेन की जान ले ली। जेन बंगले के सिपाही के वायलिन को केवल स्पर्श और महसूस करना चाहता था, लेकिन सिपाही को ऐसा लगा कि वह वायलिन चुराने आया था। इसी जुर्म में मजिस्ट्रेट ने उसे बेतों से मार की सजा सुनाई। जेन इतना कमजोर था कि बेतों की सजा नहीं सह पाया। बेतों की सजा पाने के तीसरे दिन ही वह वायलिन की चाहत लिए हुए दुनिया से चल बसा।
Q.2. “उसका मन तो जंगल में ही बसता था। वह सोचता रहता था कि वहाँ कितने मधुर जो गूँजते और बजते रहते हैं।" (M.P. 2020)
प्रश्न: उक्त अंश किस पाठ से लिया गया है ?
उत्तर : प्रस्तुत अंश 'नन्हा संगीतकार' नामक पाठ से लिया गया है।
प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : जेन पूरी तरह संगीत के प्रति समर्पित था। जंगल से खाली हाथ लौटने पर माँ कलछी से उसकी पिटाई करती थी। पिटाई के समय वह दुबारा संगीत न सुनने तथा संगीत के बारे में कोई बात न करने की कसम खाता था, लेकिन फिर उसका हाल वही हो जाता था। जंगल का संगीत उसे अपनी ओर खींचता और वह खिंचता चला जाता। कारण तो केवल एक ही था कि उसका मन जंगल में ही बसता था।
Q.3. उसमें एक अनोखी खूबी थी।(M.P. 2010)
प्रश्न : रचना का नाम लिखें।
उत्तर: रचना का नाम 'नन्हा संगीतकार' है।
प्रश्न : पंक्ति में निहित आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : जेन में ईश्वर ने एक ऐसी खूबी दी थी जो दूसरों में नहीं थी। संगीत-प्रेस उसका जुनून था। प्रकृति की हर आवाज में उसे संगीत सुनाई देता था। यहाँ तक कि हवा की सरसराहट और पक्षियों की कंपकंपा में भी उसे संगीत सुनाई देता था। जब वह जंगल में भेड़-बकरियाँ चराने जाता या जंगली बेर चुनने तो भी यहाँ के संगीत में वह पूरी तरह डूब जाता और कई बार खाली हाथ ही घर लौट आता ।
Q.4. माँ, भगवान मुझे स्वर्ग में असली वायलिन देगा? (M.P. 2010)
प्रश्न: यहाँ वक्ता कौन है ?
उत्तर: वक्ता नन्हा संगीतकार मेन है।
प्रश्न : इस कथन का संदर्भ एवं भाव लिखिए।
उत्तर : बेंत की सजा पाने के बाद बेचारा दुर्बल जेन अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। इस समय भी उसके अंदर से संगीत की चाहत खत्म नहीं हुई थी। वह यह भी जानता था कि इस संसार में वह कुछ ही समय का मेहमान है। वह जल्द ही ईश्वर के पास जाने वाला है। इसलिए जेन अपनी माँ से यह प्रश्न करता है कि क्या भगवान उसे स्वर्ग में असली वायलिन देंगे ?
Q.5. गनीमत थी कि माँ उसे गिरजाघर नहीं ले जाती थी।
प्रश्न : रचना का नाम लिखें।
उत्तर : रचना का नाम है- 'नन्हा संगीतकार' ।
प्रश्न : माँ किसे गिरजाघर नहीं ले जाती थी और क्यों ?
उत्तर : माँ जेन को गिरजाघर नहीं ले जाती थी। जब जेन गिरजाघर जाता था तो वहाँ के वाद्ययंत्रों तथा घंटियों की झनकार सुनकर उसकी आँखें धुंधली और नम हो उठती थीं। उसकी आँखें ऐसे चमकने लगती थीं मानो वह किसी दूसरी दुनिया की रोशनी से आभायुक्त हो उठी हों। जेन की माँ उसे संगीत और इसके प्रभाव से दूर ही रखना चाहती थी, इसीलिए वह शेन को गिरजाघर नहीं ले जाती थी।
Q.6. हालाँकि वह बालक कभी-कभी शराबखाने तक चला जाता था।
प्रश्न : 'वह बालक' कौन था ?
उत्तर: 'यह बालक' जेन था।
प्रश्न: आखिरकार वह वहाँ क्यों जाता था ?
उत्तर : संगीत सुनने की चाहत जेन को शराबखाने तक खींच ले जाती थी। हालांकि यह शराबखाने के अंदर नहीं जाता था, बाहर दीवार से सटकर ही बैठ जाता था तथा अंदर से वायलिन की धुन, थिरकते पैरों की बाप और मस्ती भरे स्वरों का आनंद उठाता था। कभी-कभी तो रात हो जाने पर चौकीदार के कहने पर ही यह यहाँ से घर के लिए रवाना होता था।
Q.7. यह उसकी फितरत में था।
प्रश्न : रचना का नाम लिखें।
उत्तर : रचना 'नन्हा संगीतकार' है।
प्रश्न : यहाँ किसकी किस फितरत के बारे में कहा गया है ?
उत्तर : यहाँ जेन के संगीत-प्रेम के फितरत के बारे में कहा गया है। जब जेन कहीं से बाय लिन नहीं पा
उसका तो उसने काठ के एक टुकड़े से अपने लिए वायलिन ही बना डाला। उसमें उसने तार की जगह घोड़े के बाल का इस्तेमाल किया। उस पायलिन से मक्खी की तरह मिन-मिन आवाज निकलती थी। उठकर देर तक उसे बजाता रहता था तथा इस आदत के लिए उसे माँ से मार भी खानी पड़ती थी। फिर भी यह अपने संगीत प्रेम को नहीं छोड़ पाता था क्योंकि यह संगीत प्रेम तो जेन की फितरत में था। इसे छोड़ पाना उसके वश में नहीं था।
Q.8. तुम्हारे पास ज्यादा वक्त नहीं है, दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी करो।
प्रश्न : वक्ता कौन है?
उत्तर :वक्ता लुहार की पत्नी है।
प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : जब जेन इस संसार में आया तो वह बहुत ही दुर्बल था। उसे जन्म देनेवाली माँ की हालत भी उससे अच्छी नहीं थी। ऐसा लग रहा था कि दोनों कुछ ही देर के मेहमान हैं। दोनों की ऐसी स्थिति देखकर पड़ोसन लुहार की पत्नी अपने ही तरीके से जेन की माँ को दिलासा देने लगी। उसने जेन की माँ से कहा कि अब उसके पास ज्यादा समय नहीं है। बस अब इस दुनिया से विदा होने ही वाला है। उसे चाहिए कि वह दूसरी दुनिया में जाने की तैयारी करे।
Q.9.यह मुहब्बत ही उसका जुनून था।
प्रश्न: रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर: रचना 'नन्हा संगीतकार' है तथा इसके रचनाकार हेनरिक सेकेविच हैं।
प्रश्न : यहाँ किसकी किस मुहब्बत के जुनून के बारे में कहा गया है ?
उत्तर : संगीत के प्रति बेइंतहा प्रेम ही जेन का जुनून था। प्रकृति की हर आवाज़ में उसे संगीत ही सुनाई देता था। यह खूबी केवल जेन में ही थी क्योंकि दूसरे बच्चों को यह संगीत कहीं नहीं सुनाई देता था। जहाँ कहीं भी संगीत सुनाई देता जेन उसमें पूरी तरह डूब जाता था। चाहे वह शराबखाने में बजने वाला संगीत हो या फिर फसल कटने वा शादी-ब्याह के मौके पर बजाया जाने वाला संगीत हो।
Q.10. तीसरे रोज उसने आखिरी सांस ली।
प्रश्न : रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचना 'नन्हा संगीतकार' है तथा रचनाकार हेनरिक सेकेविच हैं।
प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर: वायलिन की चोरी के जुर्म में न्यायाधीश ने न चाहते हुए भी जेन को बेतों की सजा सुनाई। लेकिन जैन इतना दुर्बल था कि वह इस सजा को भी नहीं सह पाया। कठोर, निर्दय चौकीदार ने बड़ी बेरहमी से जेन को बेतों से पीटा था। सजा पाने के बाद उसकी हालत इतनी बिगड़ गयी कि उसकी कि माँ उसे अपनी गोद में उठाकर घर ले गयी। सजा पाने के तीसरे ही दिन जेन ने इस निर्दयी संसार से हमेशा के लिए विदा ले लिया।
Q.11. हर किस्म की आवाज़ में उसे संगीत सुनाई देता
प्रश्न : रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचनाकार पोलैंड के हेनरिक सेकेविच है। प्रश्न : किसकी आवाज में किसे संगीत सुनाई देता था ?
उत्तर: प्रकृति की हर आवाज़ में जेन (जेन्को) को संगीत सुनाई देता था। काम के समय भी वह खेतों में हवा की सरसराहट में खो जाता था। देहात की हर एक आवाज़ में उसे संगीत सुनाई देता था। यहाँ तक कि मेढ़क की टर्राहट, चारागाहों के कुक्कुट के चीत्कार और मुर्गे के बाँग में भी उसे संगीत सुनाई देता था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ----
Q.1. 'संगीतकार' बानी की मार्मिकता पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर : 'नन्हा संगीतकार' पोलैंड के नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार हेनरिक सेकविध की एक हृदयाशी कहानी है। इस कहानी का नायक जेन नामक एक बालक है, जिसे अपने संगीत प्रेम के कारण मात्र दस वर्ष की आयु में ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
जैन जब पैदा हुआ तो इतना दुर्बल था कि पड़ोस के लोगों ने यह तय कर लिया कि यह कुछ ही देर मेहमान है। पड़ोस में रहने वाले मुहार की स्त्री ने आनन-फानन में उसका नामकरण जेन कर दिया ताकि उस बेनाम आत्मा को भटकना न पड़े, लेकिन जेन जिंदा रहा। चार वर्ष का होने पर उसकी कुटिया की छत पर एक पपीहे ने कुछ-कुछ की तान छेड़ी और उसके बाद जैन की हालत सुधरने लगी। पोलिश लोक कथा के अनुसार यह एक शुभ शकुन था।
जैन जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उसका संगीत के प्रति प्रेम भी बढ़ता ही गया। प्रकृति की हर चीज में इसे संगीत ही सुनाई पड़ता था। अपनी इस प्रवृत्ति के कारण उसे माँ से मार भी खानी पड़ती थी। वायलिन की मधुर आपान उसे अपनी ओर विशेष आकर्षित करती थी। अभाव ग्रस्त जीवन में भी उसका यह संगीत प्रेम क्रमशः म होने के बजाय बढ़ता ही गया। अक्सर यह वायलिन की मधुर धुन सुनने के लिए देर रात तक शराबखाने की बाहरी दीवार से सटकर बैठा रहता था।
जैन के घर के पास ही एक बंगले में वर्दीधारी सिपाही के पास एक वायलिन थी। अक्सर वह अपनी प्रेमिका या नौकरों को बुरा करने के लिए उसे बजाया करता था। एक दिन जेन अकेले मे दीवार से टंगी वायलिन को छूने तथा महसूस करने की कोशिश की। तभी सिपाही आ पहुँचा तथा चोरी के जुर्म में उसकी पिटाई कर न्यायाधीश के सामने पेश किया। न्यायाधीश ने उसकी उम्र तथा दुर्बलता पर दया दिखाते हुए बेंत की सना सुनाई, लेकिन जेन इतना दुर्बल था कि इस सजा को नहीं सह पाया और तीसरे दिन ही इस दुनिया से चल बत्ता ।
दूसरी ओर बंगले के परिवार वाले इटली से लौट कर प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि वाकई इटली कलाकारों का देश है। उनकी कला दर्शनीय और प्रोत्साहित करने योग्य हैं, लेकिन अपने ही स्थान के जेन की मृत्यु से सर्वथा अनभिज्ञ हैं कि उन लोगों के कारण ही असमय एक कलाकार की मृत्यु हो गई।
कहानी का अंत यह संदेश देता है कि हम स्थापित हो चुके, प्रसिद्धि पा चुके कलाकार की तो प्रशंसा करते हैं लेकिन जिनके अंदर कलाकार बनने की प्रतिमा है, उसकी कद्र नहीं करते। कद्र करना तो दूर उलटे हम उसकी उपेक्षा करते हैं जिसके कारण ऐसी प्रतिमाएं खिलने से पहले ही मुरझा जाती हैं। यही बताना लेखक का उद्देश्य है। उद्देश्य तथा कथावस्तु के आधार पर इसका शीर्षक 'नन्हा संगीतकार' सर्वथा उपयुक्त है तथा लेखक को अपने उद्देश्य में पूरी-पूरी सफलता मिली है।
Q.2. 'नन्हा संगीतकार' कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण करें।
अथवा 'नन्हा संगीतकार' के शेन की कहानी भाषी प्रतिभाओं की उपेक्षा से अपनी कहानी है के आधार पर जेन का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर: 'नन्हा संगीतकार' हेनरिक सैकेविच की एक हृदयस्पर्शी कहानी है। जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही पता चलता है कि नन्हा संगीतकार, अर्थात् जेन ही इस कहानी का नायक है। उसके जन्म के साथ ही इस कहानी का जन्म होता है और उसकी मृत्यु के साथ ही कहानी का अंत भी हो जाता है। जैन की चारित्रिक विशेषताओं को निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत देखा जा सकता है
1. अत्यंत दुर्बल जेन जन्म से ही अत्यंत दुर्बल था इतना दुर्बल कि उसे देखते ही आस-पड़ोस की स्त्रियों को यह विश्वास हो गया कि यह कुछ ही घंटे का मेहमान है। इसीलिए एक पड़ोसन लुहार की स्त्री ने पादरी का इंतजार न कर उसका नामकरण भी कर दिया ताकि मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को मटकना न पड़े।
2. अनाकर्षक व्यक्तित्व : अत्यंत दुर्बल होने के कारण जेन का व्यक्तित्व जरा-सा भी आकर्षक नहीं था झुकी देह और पिचके गाल बाल धूसर रंग के थे और हमेशा उसकी चमकदार आँखों पर गिरे रहते। उसकी आँखें ऐसी थी मानो वह दूर कहीं खोई हुई हो।
3. भूख से संघर्ष : शेन का संघर्ष सबसे अधिक भूख से था क्योंकि उसके पिता नहीं थे और माँ किसी तरह घर का बोझ उठा पाती थी। जब घर में खाने को कुछ नहीं होता तो वह भूख से बिलखने लगता। जब वह आठ वर्ष का हो गया तब अपनी भूख मिटाने के लिए मशरूम की खोज में जंगल जाना शुरू कर दिया।फसलों की कटाई के समय उसे अक्सर भूखा ही रहना पड़ता था। थोड़े-बहुत कन्ये शलजम खाकर वह अपने-आपको जीवित रखता था।
4. संगीत का दीवाना : होश संभालने के समय से ही जेन संगीत का दीवाना हो गया था। प्रकृति की एक एक आवाज में उसे संगीत सुनाई देता था। वायलिन की धुन उसे विशेष रूप से अपनी ओर आकर्षित करती थी। शराबखाने के अंदर से आती वायलिन की मधुर ध्वनि सुनने के लिए वह घंटों शराबखाने की दीवार से चिपक कर बैठा रहता था।
5. जिंदगी की निर्ममता से अनभिज्ञ : जेन इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ था कि यह जिंदगी कितनी निर्ममता से भरी है। यही कारण था कि वह माँ की मदद करने के बजाय या अन्य लड़कों की तरह कुछ काम करने के बजाय संगीत की दुनिया में ही खोया रहता था।
6. प्रतिभावान जेन की प्रतिभा का इसी से पता चलता है कि जब वह वायलिन प्राप्त करने में असफल रहा तो उसने लकड़ी के एक टुकड़े से अपने लिए एक वायलिन बना ली। हलांकि इसकी आवाज बहुत धीमी थी तथा इसकी आवाज भी उतनी मधुर न थी ।
7. बदनसीब : यह जेन की बदनसीबी ही कही जाएगी कि केवल वायलिन को छूने, उसके स्पर्श को महसूस करने की चाहत ने उसे चोरी के जुर्म में फंसा दिया। सजा के तौर पर बेंत की मार न सह पाने से ही वह इस दुनिया से चल बसा। संगीत के जुनून ने उसे मौत के मुँह में पहुँचा दिया।
8. उपेक्षा का शिकार : जेन समाज की उपेक्षा का शिकार होकर ही मर जाता है। यदि लोगों ने, बर्दीधारी सिपाही ने तथा न्यायाधीश ने जेन की वास्तविकता को समझा होता तो वह मारा नहीं जाता। यह समाज की कैसी मानसिकता है कि वह प्रतिष्ठित कलाकारों का तो सम्मान करता है लेकिन छुपी हुई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित न कर उसकी उपेक्षा करता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जेन के अंदर छिपी प्रतिभा को अगर समाज ने पहचाना होता है तो वह
असमय ही मौत की नींद न सोता। उसका चरित्र हमें इस बात की सीख देता है कि जब तक बच्चों के अन्दर छिपी प्रतिभा को विकसित, प्रोत्साहित नहीं करेंगे वे ऐसे ही असमय कुम्हलाते रहेंगे।
अति लघूत्तरीय प्रश्न —--
1. रंगय्या के मन में गुरुजी के प्रति कैसा भाव प्रकट हुआ ?
उत्तर : रंगय्या के मन में गुरुजी के प्रति आदर का भाव प्रकट हुआ।
2. रंगय्या की बस्ती में क्या दुर्घटना हो गई थी ?
उत्तर : रंगय्या की बस्ती में दुर्घटना घटी कि न जाने कैसे उसकी पल्ली (बस्ती) में भीषण रूप में:आग
लग गयी थी।
3.रंगय्या ने चप्पल को कैसे बचाया ?
उत्तर : रंगय्या ने आग में कूद कर मास्टर साहब की चप्पल को बचाया ।
4. रंगय्या की सारी आशाएँ किस पर टिकी हुई थीं ?'
उत्तर : रंगय्या की सारी आशाएँ बेटे रमण पर थीं।
5. मास्टर साहब का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर : मास्टर साहब का व्यक्तित्व दूसरों को प्रभावित करने वाला था गोरा शरीर, सिर पर छोटी-सी चोटी, ललाट पर भस्म की रेखाएँ, चंदन का तिलक, धोबी की घुली हुई धोती तथा कंधे पर खादी की दुशाला।
6. रंगव्या ने भगवान वेंकटेश्वर से क्या पार्थना की?
उत्तर :"हे भगवान ! मेरे बच्चे का उद्धार करो। उसको खूब पढ़ना-लिखना आ जाए। उसको तुम्हारी शरण में ले आऊंगा। उसके बाल तुम अर्पित करूंगा...... अपने भी ।"
7. रंगय्या के कदम स्कूल की ओर क्यों चल पड़े?
उत्तर :रंगच्या अपने बेटे रमण को पढ़ते देखना चाहता था तथा मास्टर साहब के दर्शन भी करना चाहता था इसलिए उसके कदम स्कूल की ओर चल पड़े।
8. किसके भाग्य में पढ़ना-लिखना नहीं बढ़ा था ?
उत्तर :रंगव्या के भाग्य में पढ़ना-लिखना नहीं बढ़ा था।
9. रंगय्या ने बेटे के बारे में क्या सोचा ?
उतर : रंगय्या ने बेटे के बारे में यह सोचा कि वह बड़ा भाग्यवान है।
10. किसके भोलेपन पर अध्यापक को हँसी आ गई ?
उतर : रंगय्या के भोलेपन पर अध्यापक को हँसी आ गई।
11. क्या देखकर रंगय्या की खुशी का ठिकाना न रहा ?
उत्तर : जेब में छः रुपये बीस पैसे देखकर रंगय्या की खुशी का ठिकाना न रहा।
12. रमण का स्कूल कैसे मकान में था ?
उत्तर : रमण का स्कूल छोटे-से खपरैल मकान में था।
13. 'पेद बाल शिक्षा' क्या है ?
उत्तर : तेलुगू बच्चों की प्रथम पुस्तक ।
14. रंगय्या क्या काम करता था ?
उत्तर : रंगय्या चप्पल सिलने तथा मरम्मत करने का काम करता था।
15. आग लगने पर रंगय्या ने क्या किया ?
उतर : आग लगने पर रंगव्या ने जलती हुई झोपड़ी से मास्टर साहब की चप्पल निकालने की कोशिश की।
16. रंगय्या के बारे में कौन-सी बात सबको मालूम है ?
उतर : रंगय्या नई चप्पलें बनाने का या पुरानी को नया बनाने में माहिर है।
संक्षिप्त एवं व्याख्यामूलक प्रश्न —-
1."चलता हूँ बेटे।"
प्रश्न: वक्ता कौन है ?
उत्तर : वक्ता रंगय्या है ।
प्रश्न: वक्ता के कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : जब रंगय्या अपने बेटे रमण के स्कूल में गया था वहाँ मास्टर साहब के द्वारा को सुनकर वह अत्यन्त खुश हुआ और वह अपने बेटे से कहा कि चलता हूँ बेटे ।
2."उनका ऋण किसी भी रूप में चुकाया नहीं जा सकता।"
प्रश्न: अंश किस पाठ से उद्धृत है?
उत्तर : प्रस्तुत अंश 'चप्पल' पाठ से उद्धृत है।
प्रश्न : अंश में कौन से ऋण की बात कही गई है? उसे क्यों नहीं चुकाया जा सकता ?
उत्तर : इस अंश में 'मास्टर साहब' के ऋण की बात की गई है। ज्ञान-दान सबसे बड़ा है तथा इसका ऋण किसी भी रूप में नहीं चुकाया जा सकता ।
3. 'क्या वह दिन मैं देख सकूँगा ?”
प्रश्न: प्रस्तुत अंश के रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर : इसके रचनाकार कावुटूरि वेंकट नारायण राव हैं।
प्रश्न : अंश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
उत्तर : रंगय्या बेटे रमण के मास्टर साहब से मिलता है तो उनके पैर छूकर प्रणाम करता है। इस पर मास्टर साहब कहते हैं कि रमण पढ़-लिखकर एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा और तुम्हें मोटर में बिठाकर घुमाएगा। मास्टर साहब की इस बात पर वह मास्टर साहब से सवाल करता है कि क्या वह सचमुच वह दिन देख सकेगा ? ऐसा होना तो उसके लिए एक सपना ही है।
4. उसे वह एक स्वर्गधाम- सा लगा।
प्रश्न : 'उसे' तथा से कौन संकेतित है?
उत्तर : 'उसे' से रंगय्या तथा 'वह' से रमण का स्कूल संकेतित है।
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : रंगय्या अपने बेटे रमण को पढ़ते देख तथा मास्टर साहब को साष्टांग प्रणाम कर बाहर आया। बाहर आकर वह कुछ देर तक खड़ा होकर स्कूल को निहारता रहा। उसे लगा कि ऐसे पवित्र स्थान में स्थान पाना बड़े ही भाग्य की बात है। विद्यालय उसे स्वर्ग के समान भव्य-सा लग रहा था।
5. इस घटना की खबर भी आग की तरह फैल गई।
प्रश्न: प्रस्तुत पंक्ति किस पाठ से उद्धृत है ?
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति 'चप्पल' पाठ से उद्धृत है।
प्रश्न: किस घटना की ख़बर आग की तरह फैल गई ?
उत्तर : रंगय्या मास्टर साहब की चप्पलों को बचाने की कोशिश में बुरी तरह झुलस गया था। उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे। रंगय्या के आग में झुलसकर मर जाने की खबर आग की तरह फैल गयी क्योंकि रंगव्या को सब उसके हुनर के कारण जानते पहचानते थे।
6. उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।
प्रश्न : यह पंक्ति किस पाठ से उद्धृत है?
उत्तर : यह पंक्ति 'चप्पल' पाठ से उद्धृत है।
प्रश्न : संदर्भित पात्र की मनोदशा का वर्णन करें।
उत्तर : रंगय्या जब रमण के स्कूल से लौट रहा था तब वह काफी खुश था। उसे लग रहा था कि उ जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी होने वाली है। अब उसका बेटा रमण भी पढ़-लिख सकेगा तथा अनपढ़ नहीं जाएगा।
7. चिल्लर ही चिल्लर हाथ लगा।
अथवा, उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
प्रश्न: किसके हाथ चिल्लर ही चिल्लर लगा ?
उत्तर : रंगव्या के हाथ चिल्लर ही चिल्लर लगा।
प्रश्न: किसकी खुशी का ठिकाना न रहा ?
उत्तर : रंगय्या की खुशी का ठिकाना न रहा।
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : रंगय्या ने रमण को देखने के लिए स्कूल जाने के पहले अपने जेब को टटोला तो उसमें से केवल चिल्लर ही चिल्लर निकले। ये चिल्लर भी उसकी उम्मीद से ज्यादा निकले। पिछले दिनों उसने जितना परिश्रम किया था यह उसी का नतीजा था। यह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा कि कुल मिलाकर छः रुपये बीस पैसे थे।
8. मैं अपना चमड़ा उतार कर चप्पल बना के दूँगा
अथवा, आपका ऋण नहीं चुका सकूँगा सा'ब
प्रश्न : वक्ता कौन है ?
उत्तर: वक्ता 'चप्पल' कहानी का प्रमुख पात्र रंगय्या है।
प्रश्न: आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : मास्टर साहब रमण को जितना स्नेह देकर तथा उसकी देखभाल करके पढ़ा रहे थे वह रंगय्या के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। मास्टर साहब के उपकार का बदला किसी भी रूप में नहीं चुका सकता था। वह कोई एक मौका चाहता था जिससे मास्टर साहब का कोई काम करके उनके उपकार का बदला चुका सके। चाहे इसके लिए उसे कितना ही बड़ा त्याग क्यों न करना पड़े। इसलिए उसने कहा कि यदि वह अपना चमड़ा उतरवा कर भी उनका चप्पल बना दे तो भी उनके उपकार का बदला नहीं चुका पाएगा।
दिर्घ उत्तरीय प्रश्न —-
1. 'चप्पल' कहानी के आधार पर मास्टर साहब की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा, 'चप्पल' कहानी के किस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है? उसकी चारित्रिक विशेषताओं को लिखें।
उत्तर: 'चप्पल' कहानी में मास्टर साहब का चरित्र एक प्रभावशाली चरित्र है। उनमें एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण हैं। यही कारण है कि उनके चरित्र ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। मास्टर साहब की चारित्रिक विशेषताओं को इन शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है-
(क) प्रभावशाली व्यक्तित्व : मास्टर साहब का प्रभावशाली व्यक्तित्व किसी को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है- गोरा गोरा शरीर, सिर पर एक छोटी-सी चोटी, मस्तक पर भस्म की रेखाएँ, चन्दन का तिलक, धोबी की धुली हुई धोती और कंधे पर खादी की दुशाला।
(ख) जाति-पांति के भेदभाव से ऊपर : मास्टर साहब के वर्णन से प्रतीत होता है कि वे ब्राह्मण हैं। उच्च जाति के होने के बावजूद उनमें जाति-पांति के आधार पर भेदभाव की कोई भावना नहीं है। जाति से चर्मकार रमण को वे अपने बेटे की तरह मानते ही नहीं है, अपनी रसोई में खाना खिलाते व साथ बिठाकर पढ़ाते-लिखते भी हैं। वे अपना सारा ज्ञान रमण को दे डालना चाहते हैं। ऐसे ही गुरु एवं रमण के जैसे शिष्य के बारे में कबीर ने लिखा है।
गुरू तो ऐसा चाहिए सिख से कछु नहिं से।
सिस तो ऐसा चाहिए गुरु को सब कुछ देय।।
(ग) कर्त्तव्यनिष्ठा व समर्पण : मास्टर साहब में अपने कर्त्तव्य के प्रति पूरी-पूरी निष्ठा व समर्पण का भाव है। दे बच्चों की शिक्षा के पीछे काफी परिश्रम करते हैं तथा अपने कर्त्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। एक आदर्श शिक्षक की तरह वे अपने छात्रों से मधुर संबंध रखते हैं, उन्हें प्रोत्साहित करते हैं तथा पिता की तरह स्नेह करते हैं। इस गुण का पता उनके निम्नलिखित कथन से लग जाता है -
"तुम उसकी चिन्ता न करो ! उसका सारा भार मुझ पर छोड़ दो! ….. बहुत बड़ा आदमी बन जाएगा।
(घ) आदर्श शिक्षक : आशावादी दृष्टिकोण, प्रशासनिक योग्यता, मनोविज्ञान का ज्ञान, समाज आवश्यकताओं का ज्ञान विनोदी स्वभाव, दूरदर्शिता, मिलनसार प्रवृत्ति अपने कार्य के प्रति आस्था प्रभा व्यक्तित्व आदि एक आदर्श शिक्षक के गुण होते हैं। मास्टर साहब में ये सारे गुण है तथा आदर्श शिक्षक श्रेणी में आते हैं।
(5) गुरु-शिष्य की प्राचीन परंपरा : प्राचीन काल में गुरु और शिष्य का संबंध पिता-पुत्र के संबंध में बढ़कर होता था। आज शिक्षा एक व्यवसाय का रूप लेती जा रही है इसलिए शिक्षकों के व्यवहार में भी परि देखने को मिलता है। ऐसे परिवर्तन के दौर में भी मास्टर साहब इन सबसे अछूते हैं तथा वे अपनी भूमिका निर्वाह अच्छी तरह से कर रहे हैं। विश्व के वैज्ञानिक "विद्यार्थियों में सृजनात्मक भाव और महान अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था- आनंद जमाना ही एक शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण गुण है।" और इस कथन के आधार पर मास्टर साह में ये सारे महत्वपूर्ण गुण हैं, इसलिए उनके व्यक्तित्व ने पूरी कहानी में मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
Q.5. 'चप्पल' कहानी का मूल भाव अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर : 'कावुटूरि वेंकट नारायणराव की कहानी 'चप्पल' गुरु तथा शिष्य के संबंधों पर आधारित प आदर्शवादी कहानी है। यह हमें प्राचीन भारत की गुरु-शिष्य के संबंधों की दुनिया में ले जाती है।
प्रस्तुत कहानी में मास्टर साहब उच्च जाति के हैं लेकिन रमण जाति से चर्मकार है जिसे अछूत माना जा है। फिर भी मास्टर साहब बिना किसी भेदभाव के उसे पढ़ाते- लिखाते हैं, उसके भोजन तथा पुस्तकों की व्यवस्था करते हैं। वह रमण को अपने पुत्र की तरह ही प्रेम देते हैं। वह रमण के पिता रंगय्या जो चप्पलें मरम्मत का काम करता है उसे कहते हैं …….
"रमण तुम्हारा बच्चा नहीं, मैं उसे अपना बच्चा समझता हूँ। तुम उसकी चिंता न करो। उसका सारा भार मुझ पर छोड़ दो।"
अपने इस उपकार के बदले वे रंगय्या से कुछ लेना भी नहीं चाहते। इतना ही नहीं, वह रंगय्या द्वारा पैर छून पर उसे इस काम के लिए मना भी करते हैं ….. "तुम यह क्या कर रहे हो रंगय्या? कोई देखेगा तो अच्छा होगा...।
रंगय्या को मास्टर साहब पर इतना विश्वास है कि यह अपनी कमाई के बचाए हुए रुपये भी उनके पास जमा करता है।
रंगय्या मास्टर साहब की टूटी चप्पलों को बड़ी हसरत से ठीक करता है, उन्हें फिर से नई बना देता है। वह अपने हाथों से उन्हें पहनाना चाहता है लेकिन वह इस हसरत को लिए हुए ही दुनिया से विदा हो जाता है। झप में लगी आग से तो चप्पलों को बचा लेता है लेकिन स्वयं झुलस कर मर जाता है। रमण की सारी जिम्मेवारी मास्टर साहब पर आ जाती है।
इस प्रकार हम पाते हैं कि इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक सच्चे गुरु-शिष्य की आदर्शवादी परंपरा को हमारे सामने रखना चाहा है। वह परंपरा जिसके अंतर्गत कबीर, तुलसी, चन्द्रगुप्त, स्वामी विवेकानंद जैसी महान विभूतियों को उनके गुरु ने सजाया-संवारा था। गुरु और शिष्य के इस भेद-भाव रहित रिश्ते को दर्शान ही लेखक का उद्देश्य है। उन्होंने जो संदेश देना चाहा है अगर उसे कबीर के शब्दों में कहें तो —-
"कबीर गुर गरबा मिल्या, रलि गया आटै लूंण।"
अर्थात् मुझे गौरवमय गुरुदेव मिल गए, उन्होंने अपने ज्ञान स्वरूप में मुझे इसी प्रकार एक कर लिया, अपने में मिला लिया जैसे आटे में नमक मिल जाता है। इस कहानी की शुरुआत चप्पलों से होकर चप्पलों पर ही खत्म होती है, इसलिए इसका शीर्षक भी बिल्कु सार्थक एवं उपयुक्त है।
अति लघूत्तरीय प्रश्न —-
1. सफ़िया का भाई क्या था ?
उमर : सफिया का भाई पुलिस अकसर था।
2. सिख बीबी को देख कर सफिया क्यों हैरान रह गई थी ?
उत्तर: सिख बीबी की शक्ल सूरत सफिया की माँ से बहुत मिलती-जुलती थी इसलिए वह उन्हें देखकर हैरान रह गई थी।
3. सफ़िया किस कहानी को याद कर रही थी ?
उत्तर: उस शहजादे की कहानी को जिसमें यह रान चीरकर, हीरा छिपाकर देवों, भूतों तथा राक्षसों की सरहदों को पार कर जाता था।
4. सफ़िया के बाप की कब्र कहाँ थी ?
उत्तर : पाकिस्तान के लाहौर में।
5. सफ़िया हिन्दुस्तान में कहाँ रहती थी?
उत्तर : लखनऊ में।
6. नमक ले जाने के बारे में सफ़िया के बड़े भाई ने क्या कहा ?
उत्तर : नमक ले जाना गैर-कानूनी है।
7. लाहौर से लौटते समय सफिया के सामने बड़ी समस्या क्या थी ?
उत्तर : लाहौरी नमक साथ लाने की।
8. 'नमक' कहानी में किन तीन कवियों का जिक्र है ?
उत्तर: इकबाल, रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा नजरूल इस्लाम।
9. सफ़िया ने सिख बीबी से धीमे से क्या पूछा ?
उतर : "आप आहौर से कोई सौगात मँगाना चाहें तो मुझे हुक्म किजिए।
10. लाहौर से लौटते समय सफ़िया के सामने बड़ी समस्या क्या थी ?
उत्तर:दामी कागज में लिपटे सेर भर लाहौरी नमक को छिपाने की।
11. सफ़िया को बचपन में सुनी कौन-सी कहानी याद आने लगी।
उत्तर: शहजादों की कहानी ।
12. सफिया लाहौर क्यों जा रही थी ?
उत्तर: सफिया अपने भाई-भतीजे तथा भतीजियों से मिलने लाहौर जा रही थी।
13. लाहौर से लौटते समय सफ़िया ने क्या निश्चय किया ?
उत्तर:मुहब्बत का तोहफा वह चोरी से नहीं ले जाएगी।
14. सफ़िया ने नमक को कहाँ छिपाने के बारे में सोचा ?
उत्तर : कीनुओं की टोकरी में ।
15.बहू ने सफ़िया के बारे में सिख बीबी को क्या बताया ?
उत्तर :बहू ने सफ़िया के बारे में सिख बीबी को बताया कि ये मुसलमान हैं और कल ही अपने भाइयों से मिलने पाकिस्तान जा रही हैं।
16. कौन-सी बात सफ़िया के बड़े भाई की समझ में नहीं आई और क्यों ?
उत्तर : जब नमक ले जाने के बारे में सफ़िया ने माँ का जिक्र किया तो यह बात सक्रिया के बड़े भाई की समझ में नहीं आई क्योंकि माँ तो बँटवारे के पहले ही मर चुकी थी।
17. अटारी क्या है ?
उत्तर : अटारी भारत-पाकिस्तान की सीमा पर का रेलवे स्टेशन है।
18. कानून कब हैरान रह जाता है ?
उत्तर : मुहब्बत के आगे जब कस्टमवाले भी हार जाते हैं तब कानून हैरान रह जाता है।
19. मशीन और शायर किस-किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर : 'मशीन' भावनाशून्य व्यक्ति का प्रतीक है। 'शायर' महान मानवीय भावनाओं का प्रतीक है।
20. हाँ मेरा वतन ढाका है- यह कौन, किससे कहता है ?
उत्तर : यह वाक्य सुनील दास गुप्त ने सफ़िया से कहा है।
संक्षिप्त व्याख्या मूलक प्रश्न —---
1. कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृत शुरू हो गया।
अथवा, एक ज़मीन थी, एक जबान थी।
अथवा, एक- सी सूरतें और लिवास एक-सा लबो- लहजा और अंदज थे।
अथवा, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिन्हें दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे।
अथवा, बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।
प्रश्न: रचना एवं रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर: रचना 'नमक है तथा इसके रचनाकार रज़िया सज्जा़द ज़हीर हैं।
प्रश्न: प्रस्तु गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर: लाहौर स्टेशन पर कस्टम ऑफिसर ने सफिया के साथ जो मुहब्बत भरा वहार किया था उसी के बारे में सोचती जा रही थी। सोचने के क्रम में लाहौर कहाँ खत्म हुआ और कहाँ से अमृतसर शुरू हुआ यह उसे पता ही न चला। आखिर पता भी कैसे चलता ? दोनों देशों के लोगों की जमीन एक भाषा -सी विमान एक-सी. सूरतें भी एक-सी थीं। यहाँ तक कि गालियाँ देने का अंदाज भी एक-सा वा जिसको बड़े प्रेम से एक-दूसरे को दे रहे थे। अंतर केवल इतना ही था कि हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी दोनों ही पुलिसवालों के हाथों में भरी हुई बंदूकें थीं। यही एक अंतर था जो दोनों देशों तथा देशवासियों को एक- दूसरे से अलग कर रहा था।
2. अरे, फिर वही कानून-कानून कहे जाते हो!
अथवा, क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं।
अथवा, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते।
अथवा, आखिर कस्टमवाले भी इंसान ही हैं, कोई मशीन तो नहीं होते।
प्रश्न : वक्ता और श्रोता कौन हैं?
उत्तर: वक्ता सफिया और श्रोता उसका पुलिस अफसर भाई है।
प्रश्न: वक्ता के कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : सफिया के पुलिस अफसर भाई ने जब उसे बार-बार यह समझाया कि यहाँ से नमक से जाना कानूनी जुर्म है तो वह झल्ला उठी। उसने भाई को झिड़कते हुए कहा कि क्या सारे कानून सरकार के ही बनाए होते हैं। इससे भी अलग कानून है जिसे मुहब्बत, मुरबत, आदमियत तथा इंसानियत बनाती है। वह कानून के सरकार या हुकूमत के बनाए कानून से भी ऊपर है। इस कानून को कस्टम ऑफिसर भी मानेंगे क्योंकि वे मी इंसान हैं, कोई मशीन नहीं। आखिर उनके सीने के अंदर भी दिल धड़कता है।
3. मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।
प्रश्न : रचना एवं रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर: रचना 'नमक' है तथा रचनाकार रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं।
प्रश्न: प्रस्तु पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : लाहौर में सफिया ने कस्टम ऑफिसर से अपने हैंडबैग में लाहौरी नमक होने की न केवल बात बह दी। उसने नमक का पुड़िया भी निकालकर उसके सामने टेबल पर रख दिया। सफ़िया यह जानती थी कि ऐसा करना जुर्म है फिर भी ऐसा करने की उसने वजह भी बता दी। पूरी कहानी सुनने के बाद नमक पापस उसके हैंडबैग में रख दिया और कहा कि मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है। कहने का भाव यह है कि जब दिल आपस में मिले हों, तो वहाँ कानून भी मुहब्बत से हार जाता है।
4. मैं तो दिखा के, जता के ले जाऊँगी।
अथवा, मैं क्या चोरी से ले जाऊँगी ?
अथवा, छुपा के ले जाऊँगी ?
प्रश्न : वक्ता कौन है ?
उत्तर: वक्ता सफ़िया है।
प्रश्न : वक्ता के कथन का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : सफ़िया को जब पुलिस अफसर भाई ने नमक ले जाने को जुर्म बताया तो सफिया ने कहा कि जूर्म तो तब होगा जब वह छिपा कर ले जाएगी। उसने कहा कि वह लाहौरी नमक चोरी से या छिपाकर नहीं ले जाएगी बल्कि कस्टम ऑफिसर को दिखाकर ले जाएगी। अगर यह कस्टम ऑफिसर को दिखा बताकर जाएगी तब तो यह जुर्म नहीं होगा।
5. उसने सोचा कि वह ठीक राय दे सकेगा।
प्रश्न : रचना का नाम लिखें।
उत्तर : रचना का नाम 'नमक है।
प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : सिख बीबी के लिए सफ़िया पाकिस्तान से लाहौरी नमक ले जाना चाहती थी। उसने सिख बीवी इसका वादा किया था। लेकिन उसे पता था कि ऐसा करना कानूनन जुर्म है। उसने सोचा कि इस बारे में बा अपने भाई से सलाह ले सकती है। वह पुलिस ऑफिसर तथा इस मामले में साफिया को सही राय दे सकता था।
इसिलए उसने भाई से चुपके से पूछा कि "क्यों भैया नमक ले जा सकते हैं?"
6. लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था?
प्रश्न : रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचना 'नमक' तथा रचनाकार रज़िया सज्जाद ज़हीर हैं।
प्रश्न: प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : सफिया ने पुलिस ऑफिसर भाई द्वारा समझाने पर कि पाकिस्तान से लाहौरी नमक ले जाना कानूनी जुर्म है कुछ सोचने पर विवश हो गई। अभी तक वह भावना में बहकर भाई की बातों को मानने से इंकार कर - रही थी लेकिन अब वह बुद्धि से काम लेने की सोच रही थी। एक बार उसने नमक ले जाने के अपने फैसले को रद्द करना चाहा लेकिन दूसरे ही पल उसे यह भी ध्यान आया कि सिख बीवी से किए गए वायदे का क्या होगा: सैयद और सैयद अपने वादे से नहीं फिरा करते, चाहे उसे पूरा करने के लिए जान की कीमत क्यों न चुकानी पड़े। वह सिख बीवी से किए गए वायदे को पूरा तो करना चाहती थी लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह यह कैसे करेगी?
7 ‘“उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं जाएगा।"
प्रश्न : किसने फैसला किया ?
उत्तर : फैसला सफिया ने लिया।
प्रश्न: प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : भाई के मना करने पर सफिया ने यह तय किया था कि वह लाहौरी नमक को कीन ओं की टोकरी में छिपाकर ले जाएगी, पर अंतिम समय में उसके दिल ने कहा कि मुहब्बत के इस तोहफे को वह चोरी-छिपे हिन्दुस्तान नहीं ले जाएगी। मुहब्बत तो जताने की चीज है न कि छिपाकर रखने की इसलिए मुहब्बत के तोहफे को चोरी से ले जाना तो इंसानियत, आदमियत के नजरिये से हुकूमत के कानून के जुर्म से भी बड़ा है। अंत में उसने अपना पक्का निश्चय कर लिया कि वह इसे छिपाकर, चोरी से नहीं ले जाने वाली है।
8. " आप अदीब (लेखिका) ठहरीं और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर घूमा हुआ होता है। "
प्रश्न: यह किसका कथन है ?
उत्तर : यह कथन सफ़िया के पुलिस अफसर भाई का है। (नमक पाठ से लिया गया है।)
प्रश्न: प्रस्तुत पंक्ति की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर : जब सफ़िया कानून की बात दरकिनार कर अपने भाई से कहती है कि "क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते ?" तो इसी के जवाब में भाई कहता है कि आप अदीब (लेखिका) ठहरीं और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर घूमा हुआ होता है। कारण यह है कि अदीब दिमाग के बजाय दिल से ज्यादा काम लेते हैं।
दिर्घउत्तरीय प्रश्न —--
1. 'नमक' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
अथवा, "मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है"- के आधार पर 'नमक' कहानी की विशेषताओं तथा उद्देश्य को लिखें।
अथवा, “क्या सब हुकूमत के ही होते हैं"- के आधार पर 'नमक' कहानी में व्यक्त लेखिका के विचारों को लिखें।
अथवा, 'नमक' कहानी की मार्मिकता पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर: रज़िया सज्जाद ज़हीर की कहानी 'नमक' भारत-पाकिस्तान के आम लोगों के संबंधों पर आधारित मर्मस्पर्शी कहानी है।
कहानी के प्रारंभ में सफिया सिख बीवी से एक कीर्तन में मिलती है। वह उसकी ओर सहज ही आकर्षित हो जाती है क्योंकि उसका चेहरा बिल्कुल सफिया की माँ से मिलता है। वह भारत-विभाजन के पहले ही इस दुनिया से विदा हो चुकी है। सफिया के मुसलमान होने तथा उसके लाहौर जाने के बारे में घर की बहू से पता चलता है। सिख बीबी का वतन भी बँटवारे के पहले लाहौर ही था लेकिन वे आज भी उसे बतन मानती है। लाहौर की वह जी भर प्रशंसा करती है। सफिया के यह पूछने पर कि क्या वह लाहौर से कुछ सौगात मँगवाना चाहेगी, लिख बीवी उसे लाहौरी नमक लाने को कहती है।
पंद्रह दिन लाहौर में अपने भाइयों तथा अपने पुरानों अजीजों के साथ रहने के बाद वह हिन्दुस्तान आने ही तैयारी करती है। समस्या एक ही है कि लाहौरी नमक को कैसे ले जाया जाय क्योंकि उसे पाकिस्तान से हिन्दुस्तान ले जाना कानूनन जुर्म है। वह तय करती है कि कीनुओं की टोकरी में उसे छिपाकर ले जएगी। लेकिन अंत में यह निश्चय करती है कि मुहब्बत के इस सौगात को छिपाकर नहीं कस्टम ऑफिसर को बताकर ने जाएगी।
लाहौर तथा अमृतसर- दोनों के ही कस्टम ऑफिसर सारी बातें जानने के बाद सफ़िया के साथ नरमी से पेश आते हैं तथा नमक ले जाने की इजाजत दे देते हैं। लाहौर के कस्टम ऑफिसर ने चलते वक्त कहा भी. “मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।" बहुत कुछ यही हाल अमृतसर कस्टम ऑफिसर सुनील दास गुप्त का भी है।
सफ़िया अमृतसर के रेलवे प्लेटफार्म के पुल पर चढ़ती हुई सोचती है कि हमारे रहनुमाओं ने भले ही हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और बांग्लादेश को सरहदों में बाँद रखा हो लेकिन लोगों के दिल नहीं बँटे। लोगों के दिलों के बीच कोई सरहद नहीं है।
यह सही है कि बँटवारे के बाद पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। आज भी अच्छे नहीं है लेकिन आम लोगों के दिलों में कहीं कोई भेदभाव नहीं है। लोग आज भी अपने वतन की यादों की खुशबू में खोए रहते हैं। हमारा हिन्दुस्तान कभी भी धर्म या मजहब के खाने में नहीं बँटा था। भक्तिकाल के कवि तुलसीदास, जो वर्ण-व्यवस्था को मानने वाले तथा परम्परा के अनुयायी थे, ने भी कहा था-
"माँगी के खाइबो, मसीत (मस्जिद): में सोइबो ।"
जहाँ तक दोनों देशों के आपसी संबंधों के रफ्ता रफ्ता सुधरने की बात है, उसके आसार नजर नहीं आते। शिक्षा में भी सांप्रदायिक घुसपैठ शुरू कर दी गई है। पाकिस्तान में इतिहास को भी तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। आए दिन उसकी आतंकवादी गतिविधियों के कारण हमें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में चाहे वह हिंदुस्तान हो या पाकिस्तान या फिर बांग्लादेश विभाजन का दर्द उन्हें ही झेलना पड़ रहा है क्योंकि आम आदमी आज़ाद होकर भी सरहदों का गुलाम है-
सत्ता – परिवर्तन में सौदा करने पर कत्लेआम हुआ।
हिंसा – नफरत पर रखी गई आज़ादी की आधारशिला
आज़ाद हुआ बस लाल किला ।
लेखिका सफ़िया का इस कहानी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता का संदेश देना ही मुख्य उद्देश्य है। उन्हें अपने उद्देश्य में पूरी-पूरी सफलता मिली। कहानी का शीर्षक 'नमक' भी अपने-आप में सार्थक है क्योंकि कहानी के केंद्रबिंदु में नमक ही है।
अति लघूत्तरीय प्रश्न —
1. भम्बल दा अपनी विधवा बहन को कैसे सहायता देते थे ?
उत्तर :भम्बल दा अपनी विधवा बहन को 50 रू० (पचास रुपये) प्रतिमाह भेजकर उसकी सहायता। किया करते थे।
2. स्पोर्ट्स का मैदान कैसा था ?
उत्तर : स्पोर्ट्स का मैदान ज्यामितिक अल्पना से अलंकृत था।
3. औरतों से भम्बल दा को विरक्ति क्यों हो गई थी ?
उत्तर :अपनी भाभी अर्थात् अशोक दा की पत्नी के उपेक्षापूर्ण व्यवहार के कारण भंबल दा को औरतों से विरक्ति हो गई थी।
4. भंबल दा की जीवन के प्रति क्या धारणा थी ?
उत्तर :भंबल दा की जीवन के प्रति यह धारणा थी कि जिंदगी शान की नहीं बल्कि सम्मान की होनी चाहिए।
5. लोग भंबल दा की किस बात पर आश्वस्त थे ?
उत्तर :लोग भम्बल दा की इस बात पर आश्वस्त थे कि खेल में दूसरे भले ही बेईमानी कर बैठें लेकिन भंबल दा कभी बेईमानी नहीं कर सकते।
6. लेखक भंबल दा की किस बात से कुढ़ते थे ?
उत्तर : अक्सर जब दौड़ समाप्त हो चुकी होती और धावक अपने प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान पर खड़े होकर दर्शकों का अभिवादन कर रहे होते उस समय भी मंडल दा अपनी दौड़ पूरी करने के लिए ट्रैक पर दौड़ रहे होते थे।
7. माँ के बारे में भंबल दा के क्या विचार थे ?
उतर: भंबल दा ने माँ के बारे में कहा कि माँ के लिए बेटा-बेटा ही होता है।
8 :भंबल दा को सोया जानकर माँ क्या करती थीं ?
उत्तर :अंबल दा को सोया जानकर माँ अपने दिल के दरवाजे-खिड़कियाँ बंद कर तन्हाइयों में डूब जाती थी।
9. परिवार का शुभचिंतक होने के नाते लेखक के सामने कौन-सा रास्ता बच रहा था ?
उत्तर :परिवार का शुभचिंतक होने के नाते लेखक के सामने एक ही रास्ता बच रहा था। वह रास्ता था – भंबल दा तथा अशोक दा के बीच की कड़ी को जोड़ देना।
10. स्पोट्र्स अधिकारी से भंबल दा ने क्या पूछा ?
उत्तर :स्पोर्ट्स अधिकारी से भंबल ने पूछा, क्या सभी खिलाड़ियों को समान सुविधा देने का कोई कानून नहीं है ?
11.भंबल दा को लोग क्या कहकर ललकार रहे थे ?
उत्तर : भंबल दा को लोग "बड़े चलिए बम भोले भैया" कहकर ललकार रहे थे।
12.भंबल दा किसलिए दौड़ते थे ?
उत्तर :भंबल दा पुरस्कारों के लिए नहीं बल्कि अपने को तौलने के लिए दौड़ते थे।
13. भंबल दा की साइकिल के बारे में क्या प्रसिद्ध था ?
उत्तर : उसकी घंटी छोड़कर सबकुछ बजता है।
14. खेल स्पर्धाओं से भंबल दा का नाम क्यों कटने लगा था ?
उत्तर :उम्र सीमा के कारण।
15. भम्बल दा का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर : भवरंजन चटर्जी।
संक्षिप्त व्याख्यामूलक प्रश्न —
1. "दौड़ में जीत उसी की होती है जो सबसे आगे निकल जाता है, चाहे लंगी मारकर हो या गलत ट्रैक हथिया कर।"
प्रश्न: प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से उद्धृत है?
उत्तर : प्रस्तुत गद्यांश 'घावक' पाठ से उद्धृत है।
प्रश्न : उक्त अंश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वह लड़का जो लेखक तथा अशोक दा को भंबल दा के घर तक छोड़ आया था उसने एक चिठ्ठी दी। यह चिट्टी मंबल दा ने अशोक दा के लिए लिखी थी। चिट्ठी में भंबल दा ने लिखा था कि आजकल दौड़ में वही जीत पाता है जो सही-गलत की परवाह किए बिना आगे निकल जाता है। जब पुरस्कार पाने का जुनून सिर पर सवार हो तो फिर सही-गलत की किसे परवाह रह जाती है।
2. "आदमी को शान से जीना चाहिए या तो इस दुनिया से कूच कर जाना चाहिए।"
प्रश्न : प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ?
उत्तर : प्रस्तुत कथन का बक्ता भम्बल दा के भाई अशोक दा हैं।
प्रश्न: कथन की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
उत्तर : भम्बल दा काफी संघर्ष करके केवल अप्रेंटिसशिप पा सके थे। बड़े ऑफिसर थे और भंबल दा उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं थे यह बात अशोक दा को नागवार गुज़रती थी इसलिए वे अक्सर कहा करते थे कि आदमी को शान से जीना चाहिए या तो इस दुनिया से कूच कर जाना चाहिए।
3.'इसे मेरी ओर से तुम्हीं रख लो।
अथवा, अपनी करनी का पुरस्कार ले जाओ।
अथवा, खानदान में एक जोकर तो निकला।
प्रश्न: वक्ता तथा श्रोता का नाम लिखें।
उत्तर : वक्ता अशोक दा तथा श्रोता भम्बल दा हैं।
प्रश्न : पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर : मंबल दा कभी किसी प्रतियोगिता में पुरस्कार नहीं पा सके। खेल के आयोजकों ने उन्हें विशेष र देने के बारे में सोचा क्योंकि उन्होंने कम से कम लोगों का मनोरंजन तो किया था। पुरस्कार देने का भार पुरस्कार भम्बल दा के बड़े भाई अशोक दा को सौंपा। जब भम्बल दा ने पुरस्कार लेने से इनकार किया तो अशोक दा का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने भम्बल दा पर व्यंग्य करते हुए कहा- "अपनी करनी का पुरस्कार ले जाओ शर्म काहे की? खानदान में एक जोकर तो निकला।" तब भम्बल दा ने कहा कि गलत पुरस्कार मैं नहीं लेता दादा, तुम्हारी पुरस्कार लिप्सा तुम्हीं को मुबारक हो। इसे मेरी ओर से तुम रख लो ।
4. इस तुच्छ पुरस्कार के लिए माँ को दाँव पर नहीं लगाते मेरे भाई ।
प्रश्न : रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचनाकार संजीव हैं।
प्रश्न : वक्ता के कथन का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : एक बार भम्बल दा बाधा दौड़ में दूसरे स्थान पर आए लेकिन दूसरे प्रतियोगी ने उन्हें गलत बताया था। कहा कि वह दूसरे स्थान पर आया है। इतना ही नहीं, उसने कहा कि अगर भम्बल दा, माँ की कसम खाकर बोलें कि वे दूसरे स्थान पर आए हैं तो वे मान लेंगे। माँ की कसम की बात सुनते ही भम्बल दा भावुक हो आए। उन्होंने कहा कि शायद तुम्हारी माँ नहीं है वरना इस तुच्छ पुरस्कार के लिए तुम माँ को दाँव पर नहीं लगाते। इस तुच्छ पुरस्कार का मूल्य माँ से बढ़कर नहीं हो सकता।
5. आज दोनों की उपलब्धियों में वर्षों का नहीं, युगों का फासला था।
प्रश्न : रचना एवं रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचना 'धावक' है तथा इसके रचनाकार संजीव हैं।
प्रश्न : 'दोनों' से कौन संकेतित है ?
उत्तर : दोनों से भम्बल दा तथा अशोक दा संकेतित हैं।
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : भम्बल दा तथा अशोक दा सगे भाई थे। लेकिन दोनों की उपलब्धियों में काफी अंतर था। अशोक दा सही-गलत तरीके को अपना कर चीफ पर्सनल ऑफिसर के पद तक पहुँच गए थे। जीवन की सारी सुख-सुविधाओं के साथ-साथ रुतबा भी था। इसके विपरीत भम्बल दा के जीवन की उपलब्धि केवल किरानी के पद तक सिमट कर रह गयी थी। पारिवारिक बोझ का वहन करने में ही वे जिंदगी की दौड़ में पीछे रह गए।
7. मानो सब कुछ एकाएक उसी दिन हो गया था।
प्रश्न : रचना का नाम लिखें।
उत्तर: रचना का नाम धावक' है।
प्रश्न : पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : लेखक के यह याद दिलाने पर कि भम्बल दा का खिलाड़ी जीवन पच्चीस वर्षों का हो गया है- उन अपनी उम्र के बीत जाने का अहसास हुआ। आईने में चेहरा देखने पर उन्हें लगा कि आज अचानक ही चेहरे पर झुड़ियाँ आ गई है, बाल पकने शुरू हो गए हैं। आज तक उन्होंने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया था कि इतनी उम्र बीत चुकी है और उसका अन्तर चेहरे पर दिखाई पड़ने लगा है।
8. अजीब खब्ती आदमी है।
अथवा,सूची में तो उनका नाम था।
अथवा, आज उन्हीं की कमी यूँ अखर रही थी मानो सारा मैदान सूना है।
प्रश्न: रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर: रचनाकार संजीव हैं।
प्रश्न : अजीब खब्ती आदमी' किसे कहा गया है?
उत्तर: भम्बल दा को अजीब खब्ती आदमी कहा गया है।
प्रश्न: प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर: भम्बल दा को उनके भोलेपन के कारण लोग बमभोले भैया भी कहा करते थे। एक बार लेखक स्पोर्ट्स मैदान में एक मील की दौड़ को शुरू करने वाले थे। सारे धावक मैदान में आ चुके थे। स्टेडियम में लाउडस्पीकर से धावकों के नाम पुकारे जा रहे थे, दौड़ से संबंधित सारे निर्देश दुहराये जा रहे थे, लेकिन भम्बल दा का कोई अता-पता नहीं था। उनके बगैर मैदान सूना लग रहा था क्योंकि वे लोगों के हीरो थे। लेखक भी परेशान वा क्योंकि धावकों की सूची में उनका नाम तो था लेकिन अभी तक ये मैदान में नजर नहीं आ रहे थे। लेख झुंझलाहट में उन्हें खब्ती आदमी तक कह डालते हैं। कारण यह है कि उनका कोई ठिकाना नहीं। हो सकता है कि निकले हो स्पोर्ट्स के मैदान के लिए और कहीं समाज सेवा के काम में लग गए हों। भम्बल दा के इस रवैये पर कबीर की यह उक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है-
“आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।"
9. इसका अंजाम अच्छा होगा या बुरा, इतना सोचने का भी वक्त नहीं था मेरे लिए।
अथवा, बात पानी में फेंके गए मुरदे की तरह उतरा आई।
अथवा, तुम्हें दूसरे के काम में दखल नहीं देना चाहिए।
अथवा, क्यों क्या किया है मैंने?
अथवा मुझे जो भुगतना पड़ा। उसे बताना मुनासिब नहीं ।
अथवा, मैने उनके मामले में रुचि लेना छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझी।
प्रश्न रचना तथा रचनाकार का नाम लिखें।
उत्तर : रचना 'धावक है तथा रचनाकार संजीव हैं।
प्रश्न: प्रस्तुत पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर : लेखक ने सोचा कि किसी तरह भम्बल दा का प्रमोशन कराकर ऑफिस सुपरिटेंडेंट बना दिया जाय। चाहे इसके लिए अच्छा या बुरा जो भी झेलना पड़े, लेकिन यह छिपी नहीं रह गई और उसी तरह उजागर हो गई। जैसे मुर्दा पानी में उतरा जाता है। भम्बल दा ने इसके बारे में अशोक दा को फटकारते हुए कहा कि जैसे वे दूसरों के काम में दखल नहीं देते उसी प्रकार उन्हें भी नहीं देना चाहिए। इन सबके कारण लेखक को काफी कुछ भुगतना पड़ा क्योंकि यह सोच उन्हीं की थी। इतना सब कुछ भुगत लेने के बाद लेखक ने मन ही मन यह त कर लिया कि अब वे कभी भम्बल दा के किसी मामले में टांग नहीं अड़ाएँगे।
दीर्घउत्तरीय प्रश्न —-
1. 'धावक' कहानी के आधार पर भम्बल दा का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर : भम्बल दा 'धावक' कहानी के मुख्य पात्र हैं। पूरी कहानी में उनके चरित्र का ताना-बाना लेखक संजीव ने कुछ इस तरह से चुना है कि पाठक चाहकर भी उनके व्यक्तित्व से अपने आपको अलग नहीं कर पाता। '
भम्बल दा का चरित्र-चित्रण निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-
(क) आदतन खिलाड़ी — भम्बल दा की पहचान धावक के रूप में है। कोई भी दौड़ प्रतियोगिता हो, वह उनके बिना अधूरी लगती है। भले ही वे कभी अञ्चल नहीं आ पाते लेकिन प्रतियोगिता में भाग लेना मानो उनकी आदत में शामिल थी। दौड़ में सबसे पीछे रह जाने पर भी वे अपनी दौड़ पूरा करके ही दम लेते। इतना ही नहीं, याधा दौड़ और साइकिल रेस में भी वे अवश्य माग लेते थे।
(ख) भावुक एवं माँ से अत्यंत प्रेम करने वाले — भम्बल दा भावुक होने के साथ-साथ माँ से अत्यंत प्रेम करने वाले हैं। एक बार बाधा दौड़ में बेईमानी होने पर किसी ने विश्वास दिलाने के लिए मम्बल दा को माँ की कसम खाने को कहा। जवाब में उन्होंने जो कहा, वह उनके मातृप्रेम को दर्शाता है- "तुम्हारी माँ नहीं है शायद चरना तुम इस तुच्छ पुरस्कार के लिए माँ को दाँव पर नहीं लगाते मेरे भाई।"
(ग) समाज-सेवक — आर्थिक स्थिति से विपन्न होने के बावजूद भम्बल दा सबके दुःख-सुख में शरीक होते थे। अगर किसी को अस्पताल पहुँचाना है तो उनके कंधे एंबुलेंस की तरह हाजिर, श्मशान जाना हो तो उनके कंधे अर्थी के लिए हाजिर, कब्रिस्तान जाना हो या फिर किसी के लिए सामान का जुगाड़ करना हो भम्बल दा हर जगह मौजूद रहते थे।
(घ) पारिवारिक जिम्मेवारियों को उठाने वाले — यद्यपि भम्बल दा की स्वयं की आर्थिक स्थिति काफी नाजुक है फिर भी वे शक्ति भर पारिवारिक जिम्मेवारियों को निभाने की कोशिश करते हैं। भाई अशोक से किसी प्रकार की सहायता न पाने पर भी वे बहन की शादी करते हैं। जब वह विधवा हो जाती है और उसे बड़े भाई के यहाँ भी शरण नहीं मिलती, तब वे उसे प्रतिमाह पचास रुपये मदद के तौर पर भेजते हैं।
(ङ) स्वाभिमानी — भम्बल दा किसी भी स्थिति में अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करते। यदि वे चाहते तो अपनी भावी पत्नी से आर्थिक सहायता ले सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इतना ही नहीं, मरने के पहले उन्होंने अपने स्वार्थी भाई के लिए एक संदेश भी छोड़ दिया, “जिस जुनून में जिया, उसकी तासीर का एक क्षण भी तुम्हारे तमाम ताम-झाम के सालों से उम्दा है। हो सके तो चखकर कभी देखना।" इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि मम्बल दा का चरित्र एक स्वाभिमानी आदमी का चरित्र है जो टूटकर बिखर जाता है लेकिन पंगु व्यवस्था के सामने घुटने नहीं टेकता।