जीवन परिचय:
• जन्म: 20 मई 1900, कौसानी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
• मृत्यु: 28 दिसंबर 1977, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
• प्रमुख रचनाएं: पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा, चिदम्बरा
• पुरस्कार: ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968), पद्म भूषण (1957)
पंतजी का साहित्यिक योगदान:
• छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ
• प्रकृति चित्रण में अद्वितीय
• भाषा की मधुरता और कोमलता
• प्रगतिवादी काव्यधारा के सूत्रधार
• विविध विषयों पर रचनाएं: प्रेम, सौंदर्य, रहस्यवाद, दर्शन, राष्ट्रवाद
प्रमुख विशेषताएं:
• कल्पनाशीलता और भावुकता
• प्रतीकात्मकता का कुशल प्रयोग
• छंदों की विविधता
• भाषा का नवीन प्रयोग
पंतजी का महत्व:
• हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान
• छायावादी कविता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया
• प्रगतिवादी काव्यधारा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका
• हिंदी भाषा के विकास में योगदान
उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएं:
• कविताएं: वीणा, ग्राम्या, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण किरण, चिदम्बरा
• कहानियां: बूढ़ा शिकारी, विपिन-विहारिणी, तिरस्कृत
• नाटक: ज्योत्सना
शब्दार्थ:
निशान: अर्थ: विल, लक्षण, ध्वजा। विहान: सुबह। विनाश: ध्वंस, संकट। विषाद: दुःख। अभिन्न: एक रूप, घनिष्ठ, जो भिन्न न हो। निशा: रात। श्रेय: श्रेष्ठ, मंगलदायक धर्म, राश। प्रयाण: गमन, प्रस्थान, युद्ध यात्रा। उफान: उबाल, जोश। अभय: निडर, निर्भय। शोषित: जिसका शोषण किया गया हो। शिल्पी: कलाकार। मुक्त: स्वतंत्र। व्यथित : दु:खी। किरीट: सिर पर बाँधे जाने वाला एक आभुषण।
जन-गीत
जीवन में फिर नया विहान हो,
एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा,
दिखने लगी प्रयाण की दिशा,
गगन चूमता अभय निशान हो !
हम विभिन्न हो गये विनाश में,
हम अभिन्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे,
लोक-कर्म में महान सब लगें,
रक्त मे उफान हो, उठान हो।
शोषित कोई कहीं न जन रहें,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहे
जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो।
मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो,
गुण ही जन-मन किरीट ताज हो,
नव-युग का अब नया विधान हो।
"जन-गीत": सुमित्रानंदन पंत की एक प्रेरणादायक रचना
परिचय:
"जन-गीत" सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। यह कविता नवीन युग के आगमन का स्वागत करती है और एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और खुशहाल समाज के निर्माण का आह्वान करती है।
कविता का भाव:
यह कविता एक ऐसे युग की कल्पना करती है जहाँ:
• विषाद की रात बीत चुकी है और नई सुबह आ चुकी है।
• लोग अब एकजुट होकर, निर्भय होकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेंगे।
• किसी का शोषण नहीं होगा, सभी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
• सद्गुणों का सम्मान होगा और नैतिक मूल्यों का पालन किया जाएगा।
• नए युग के लिए नए नियम बनाए जाएंगे।
कविता का विश्लेषण:
पहला खंड:
• "जीवन में फिर नया विहान हो, एक प्राण, एक कंठ गान हो!"
यह पंक्ति दर्शाती है कि पुराने दुःख और निराशा की रात बीत चुकी है और अब जीवन में एक नयी सुबह आ रही है। सभी लोगों में एक ही भावना होनी चाहिए और उनका एक ही लक्ष्य होना चाहिए।
• "बीत अब रही विषाद की निशा, दिखने लगी प्रयाण की दिशा, गगन चूमता अभय निशान हो!"
यह पंक्ति दर्शाती है कि लोगों के जीवन में जो दुःख, पीड़ा और निराशा थी, वह अब धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। अब लोगों को अपनी मंजिल का रास्ता दिखाई देने लगा है। वे जानते हैं कि उन्हें किस दिशा में जाना है और वे अपना जीवन किस तरह से सफल बना सकते हैं। अब लोग निर्भय होकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं।
दूसरा खंड:
• "हम विभिन्न हो गये विनाश में, हम अभिन्न हो रहे विकास में, एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।"
यह पंक्ति दर्शाती है कि पहले लोग आपसी फूट और संघर्ष के कारण बिखर गए थे, जिसके परिणामस्वरूप विनाश हुआ। लेकिन अब वे विकास के मार्ग पर चलकर एकजुट हो रहे हैं। अब सभी के लिए समान सम्मान और समान प्रेम होगा।
• "शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे, लोक-कर्म में महान सब लगें, रक्त मे उफान हो, उठान हो।"
यह पंक्ति दर्शाती है कि लोगों को अब केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं सोचना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। सभी लोगों को मिलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।
• "शोषित कोई कहीं न जन रहें, पीड़न-अन्याय अब न मन सहे जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो।"
यह पंक्ति दर्शाती है कि अब समाज में किसी का शोषण नहीं होगा। सभी लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। लोगों को अब किसी भी प्रकार के पीड़ा और अन्याय को सहन नहीं करना पड़ेगा। जीवन-शिल्पी, यानी वे लोग जो समाज के निर्माण में योगदान देते हैं, उन्हें सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाएगा।
तीसरा खंड:
• "मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो, गुण ही जन-मन किरीट ताज हो, नव-युग का अब नया विधान हो।"
यह पंक्ति दर्शाती है कि अब समाज में सभी लोग मुक्त और खुश रहेंगे। समाज संगठित होगा और सभी लोग मिलकर काम करेंगे। लोगों को उनके गुणों के आधार पर सम्मान दिया जाएगा। नवयुग के लिए नए नियम बनाए जाएंगे जो न्यायपूर्ण और सभी के लिए समान होंगे।
कविता की व्याख्या :
1.जीवन में फिर नया विहान हो,
एक प्राण, एक कंठ गान हो!
बीत अब रही विषाद की निशा,
दिखने लगी प्रयाण की दिशा,
गगन चूमता अभय निशान हो !
सन्दर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'साहित्य मेला' के जन-गीत कविता से उद्धृत हैं। इस कविता के कवि श्री सुमित्रानंदन पंत है।
प्रसंग - इन पंक्तियों में पंतजी ने स्पष्ट किया है कि अब नव युग नई समृद्धि तथा खुशहाली के साथ हमारे जीवन में आ रहा है।
व्याख्या - कवि जन मानस में जोश तथा उत्साह का भाव भर रहा है। कवि का कथन है कि अब फिर जीवन में नया सबेरा आएं। सभी में एक प्राण शक्ति हो, सभी अपने कंठ से एक ही स्वर, एक ही गीत गाएँ। उनके दुःख की रात समाप्त हो रही है। लोगों के जीवन का अभाव पीड़ा, निराशा अब समाप्त हो रही है। सामने बढ़ने प्रगति पंथ पर अग्रसर होने की दिशा दिखाई पड़ रही है। निर्भय होकर जनता आकाश की ओर प्रगति के निशान को स्पर्श कर रही है।
2.हम विभिन्न हो गये विनाश में,
हम अभिन्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे,
लोक-कर्म में महान सब लगें,
रक्त मे उफान हो, उठान हो।
व्याख्या - हम भारतवासियों में धर्म, जाति संप्रदाय को लेकर आपस में नरफरत की भावना हो गई थी। हमारी फूट का परिणाम हुआ कि हम विनाश के गर्त में पड़ गए। हमारे जीवन में गहरे संकट आ गए। पर एकता तथा एकरूपता के कारण अर्थ हम प्रगति और उत्थान की ओर अग्रसर हो रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हमारा अब एक श्रेय अर्थात् मंगलदायक धर्म हो। सब में समान प्रेम की भावना हो। हम स्वार्थ और अपनेपन की नोंद से जागें। स्वार्थ को छोड़ कर सब के साथ हमदर्दी दिखलाएँ सभी लोग लोक कल्याण के कर्म में अपने को समर्पित कर दें। सभी के रक्त में नया जोश तथा उबाल हो। इस प्रकार शक्ति तथा उत्साह के साथ लोग लोक सेवा तथा लोक निर्माण के कार्य में जुट जाएँ।
3. शोषित कोई कहीं न जन रहें,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहे
जीवन-शिल्पी प्रथम, प्रधान हो।
मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो,
गुण ही जन-मन किरीट ताज हो,
नव-युग का अब नया विधान हो।
व्याख्या - कवि लोगों को यह प्रेरणा दे रहा है कि अब समाज में, देश में आमूल परिवर्तन हो रहा है। इसलिए अब हमारे बीच कोई व्यक्ति शोषण का शिकार न हो। किसी भी व्यक्ति का कहीं दमन न हो। पीड़ा तथा अत्याचार अब किसी को भी सहना न पड़े। जो लोग जीवन निर्माता है, जीवन का समाज का न्याय पूर्वक गठन करने वाले हैं, उन्हें महत्व मिले। समाज में उनकी प्रधानता हो। जिससे उनका मनोबल बढ़े। एक ऐसा सुव्यवस्थित सुसंगठित समाज बने, जिसमें कोई पीड़ित न हो। सभी मुक्त जीवन बिताएँ, सद्गुण, सत्य, न्याय, परोपकार ही जनमानस का मूर्धन्य बने। समाज में सद्गुणों की ही प्रतिष्ठा हो। अब नया जमाना आ गया। अतः हमारा नया विधान नये नियम है। पुराने दकियानूसी विचारों तथा विधि विधानों को किनारा कर देने की जरूरत है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. जन-गीत के रचनाकार है-
(क) जयशंकर प्रसाद (ख) मैथिलीशरण गुप्त (ग) महादेवी वर्मा (घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर : (घ) सुमित्रानंदन पंत
2. "विषाद की निशा" क्यूँ बीत रही है?
(क) एक प्राण होने से (ख) नई सुबह होने से (ग) निशान उड़ने से (घ) गीत गाने से।
उत्तर : (ख) नई सुबह होने से
[ कविता में, "विषाद की निशा" को रात के अंधेरे और उदासी के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है। नई सुबह की रोशनी के आने से अंधेरे और उदासी का अंत होता है, इसलिए "विषाद की निशा" बीत रही है। ]
3. "शोषित" का अर्थ है-
(क) जो शोषण करता है (ख) जिसका शोषण किया गया हो (ग) जो रस खींचता हो (घ) उपरोक्त में कोई नहीं।
उत्तर : (ख) जिसका शोषण किया गया हो।
4. "नवयुग" में नया क्या हैं?
(क) नई सरकार (ख) नये नेता (ग) नये प्रशासक (घ) नये नियम
उत्तर : (घ) नये नियम
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. कवि पंत के अनुसार हम एकजुट कब होते हैं?
उत्तर : कवि पंत के अनुसार विषाद की निशा बीत जाने पर जीवन में नया सबेरा आने पर हम एकजुट होते हैं।
2. भारतवासी किस नींद से जगे हैं?
उत्तर : भारतवासी शुद्ध स्वार्थ और काम की नींद से जगे हैं।
3. कवि का मन अब क्या नहीं सहना चाहता?
उत्तर : कवि का मन अब किसी का भी शोषण, पीड़ा और अन्याय नहीं सहना चाहता। उनका मन अब यह सब सहन नहीं कर सकता है और वे चाहते हैं कि एक ऐसा समाज बने जहां सभी के साथ समानता और न्याय हो।
4. पंतजी समाज को किस रूप में देखना चाहते हैं?
उत्तर : पंतजी एक ऐसे समाज को देखना चाहते हैं जो संकट, पीड़ा और अभाव से मुक्त हो और जो सुसंगठित हो।
बोधमूलक प्रश्न
1. कवि कैसी निशा के बीत जाने की बात कह रहा है? और क्यों?
उत्तर : कवि विषाद (दुःख) की निशा बीत जाने की बात कह रहा है।कवि का मानना है कि पुराने युग का दुःख और निराशा अब समाप्त हो रहा है। एक नया युग आ रहा है, जिसमें लोग खुशहाल, एकजुट और प्रगतिशील होंगे।
2. जन-गीत कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : प्रस्तुत कविता में पंतजी नवीन युग के आगमन का स्वागत करते हैं और एक समृद्ध, खुशहाल और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का आह्वान करते हैं।
कविता के मुख्य भाव:
• नवीन युग का आगमन: कविता में "नया विहान", "एक प्राण, एक कंठ गान" और "गगन चूमता अभय निशान" जैसे वाक्यांशों के माध्यम से नवीन युग के आगमन का चित्रण किया गया है। यह युग पुराने दुःख और निराशा को समाप्त कर खुशी और समृद्धि लाएगा।
• एकता और भाईचारा: कवि "एक प्राण, एक कंठ गान" के माध्यम से एकता और भाईचारे का संदेश देते हैं। उनका मानना है कि सभी लोगों को मिलकर एकजुट होकर देश के निर्माण में योगदान देना चाहिए।
• निडरता और प्रगति: कवि "अभय निशान" के माध्यम से लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे निर्भय होकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ें। उनका मानना है कि डर और निराशा से कोई तरक्की नहीं होती।
• शोषण का अंत: कवि "शोषित" शब्द का प्रयोग करके शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उनका मानना है कि नवीन युग में किसी भी प्रकार का शोषण या अन्याय नहीं होगा।
• समानता और न्याय: कवि एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहाँ सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए और जहाँ न्याय की प्रबलता हो।
• नैतिक मूल्यों का महत्व: कवि "सद्गुणों का समादर" के माध्यम से नैतिक मूल्यों के महत्व पर बल देते हैं। उनका मानना है कि एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए नैतिक मूल्यों का पालन करना आवश्यक है।
• नए नियमों की आवश्यकता: कवि "नवयुग" के लिए "नये नियम" बनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। उनका मानना है कि पुराने नियम अब प्रासंगिक नहीं हैं और समाज को आगे बढ़ने के लिए नए नियमों की आवश्यकता है।
3. 'नवयुग का अब नया विधान हो' इस पंक्ति के आधार पर बताइए कि कवि नये युग को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर : कवि नये युग को एक न्यायपूर्ण, समृद्ध और प्रगतिशील समाज के रूप में देखना चाहता है।
"नवयुग का अब नया विधान हो" पंक्ति इस बात पर बल देती है कि पुराने नियमों और कानूनों को बदलने का समय आ गया है। नये युग के लिए नये नियम और कानून होने चाहिए जो न्यायसंगत और सभी के लिए समान हों।
कवि नये युग में निम्नलिखित बदलाव चाहता है:
• शोषण और अन्याय का अंत: कवि चाहता है कि नये युग में किसी भी प्रकार का शोषण या अन्याय न हो। सभी को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए।
• सद्गुणों का सम्मान: कवि चाहता है कि नये युग में सद्गुणों का सम्मान हो। दया, करुणा, ईमानदारी और सच्चाई जैसे गुणों को महत्व दिया जाना चाहिए।
• दुःख रहित समाज: कवि चाहता है कि नये युग में कोई दुःख न हो। सभी लोगों को खुशी और समृद्धि का जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए।
• संगठित समाज: कवि चाहता है कि नये युग में समाज सुसंगठित हो। सभी लोग मिलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान दें।
• नई परंपराएं: कवि चाहता है कि नये युग में पुरानी परंपराओं के स्थान पर नए विचारों और मूल्यों पर आधारित नई परंपराएं स्थापित हों।
• प्रगतिशील समाज: कवि चाहता है कि नया युग प्रगतिशील हो। सभी क्षेत्रों में विकास हो और देश आगे बढ़े।
भाषा बोध
1. निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
शब्दों का समास विग्रह और समास का नाम:
शब्द समास विग्रह समास का नाम
अभय अभय (न होने वाला) + भय नञ् समास
अभिन्न नहीं है भिन्न जो बहुव्रीहि समास
लोककर्म लोक (जनता) का कर्म तत्पुरुष समास
जीवन-शिल्पी जीवन (जीवन का) शिल्पी (शिल्पी) तत्पुरुष समास
नवयुग नया युग कर्मधारण समास
2. विशेषण और विशेष्य (संज्ञा) का मिलान कीजिए :-
विशेषण विशेष्य (संज्ञा)
अभय निशान
शुद्ध स्वार्थ
काम नींद
संगठित समाज
नव युग
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. 'जन-गीत' कविता में कवि ने क्या आशा व्यक्त की है ?
उत्तर : "जन-गीत" सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। यह कविता नवीन युग के आगमन का स्वागत करती है और एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और खुशहाल समाज के निर्माण का आह्वान करती है।
कविता में व्यक्त आशाएं:
• नवीन युग का आगमन: कविता की शुरुआती पंक्तियों में ही कवि एक ऐसे युग की कल्पना करते हैं जहाँ जीवन में नया सुप्रभात होगा, सभी का एक ही विचार होगा और सभी एक ही गीत गाएँगे। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ सभी लोग एकजुट होंगे और उनमें भाईचारे का भाव होगा।
• दुःख और निराशा का अंत: कविता में "विषाद की निशा" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि पुराने समय में लोगों को दुःख और निराशा का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब "प्रयाण की दिशा" दिखाई दे रही है, जो दर्शाता है कि कवि भविष्य में खुशी और समृद्धि की आशा करते हैं।
• निर्भयता और प्रगति: कविता में "गगन चूमता अभय निशान" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब लोग निर्भय होकर प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेंगे। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ लोगों में आत्मविश्वास और साहस होगा।
• समानता और न्याय: कविता में "एक श्रेय, प्रेम अब समान हो" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब सभी लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ सभी लोगों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त होंगे।
• सर्वहित में कार्य: कविता में "शुद्ध स्वार्थ काम-नींद से जगे, लोक-कर्म में महान सब लगें" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब लोगों को केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं सोचना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ सभी लोग मिलकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देंगे।
• शोषण का अंत: कविता में "शोषित कोई कहीं न जन रहें" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब समाज में किसी का शोषण नहीं होगा। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ सभी लोगों के साथ न्याय होगा और कोई भी गरीब या शोषित नहीं होगा।
• गुणों का सम्मान: कविता में "गुण ही जन-मन किरीट ताज हो" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब लोगों को उनके गुणों के आधार पर सम्मान दिया जाएगा। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार स्थान दिया जाएगा।
• नवीन व्यवस्था: कविता में "नव-युग का अब नया विधान हो" का उल्लेख है जो दर्शाता है कि अब समाज में नए नियम बनाए जाएंगे जो न्यायपूर्ण और सभी के लिए समान होंगे। यह दर्शाता है कि कवि एक ऐसे समाज की आशा करते हैं जहाँ सभी लोगों को स्वतंत्रता और समानता का अधिकार होगा।