सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' : जीवन परिचय:
• जन्म: 21 फरवरी 1896, महिषादल, पश्चिम बंगाल (वर्तमान में ओडिशा)
• मृत्यु: 30 अक्टूबर 1961, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
• उपनाम: 'निराला', 'महाकवि'
• शिक्षा: घर पर शिक्षा प्राप्त की, संस्कृत, बंगाली और अंग्रेजी भाषा में पारंगत
• कार्य: कवि, उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार, संस्मरणकार
साहित्यिक योगदान:
• छायावाद के प्रमुख स्तंभ: निराला जी को छायावाद युग के प्रमुख कवियों में गिना जाता है।
• बहुमुखी प्रतिभा: उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध और संस्मरण सहित विभिन्न विधाओं में रचनाएँ कीं।
• प्रमुख रचनाएँ:
◦ काव्य: परिमल, गीतिका, अनामिका, अपरा, तुलसीदास, अर्चना, सरोज स्मृति, आराधना आदि
◦ गद्य: कुल्ली भट्ट, अणिमा, बेला, नये पत्ते, आत्मकथा आदि
• भाषा: परिमार्जित हिंदी खड़ी बोली का प्रयोग
• हिंदी साहित्य में स्थान: निराला जी हिंदी साहित्य के अग्रणी कवियों और लेखकों में से एक हैं।
उपलब्धियां:
• पद्म विभूषण: 1952 में भारत सरकार द्वारा सम्मानित
• महावीर प्रसाद वर्मा स्मारक पुरस्कार: 1955 में साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित
• निराला जी की रचनाओं का हिंदी साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा है। वे आज भी हिंदी साहित्य के प्रेमी पाठकों के बीच लोकप्रिय हैं।
कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ:
• कविता: "राम की शक्तिपूजा" , "गीतिका" , "अनामिका" , "तुलसीदास" ,"आराधना"
• गद्य: "अणिमा" ,"बेला" ,"नये पत्ते" ,"आत्मकथा"
प्रियतम
एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी,
पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक
भक्त तुम्हारा प्रधान?"
विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है
प्राणों से भी प्रियतम।"
"उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह,
कहा कि, "ले सकते हो।"
नारद जी चल दिए
पहुँचे भक्त के यहॉं
देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को,
दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया,
स्नान-भोजन करके
फिर चला गया काम पर।
शाम को आया दरवाजे पर
फिर नाम लिया राम का,
प्रात: काल चलते समय
एक बार फिर उसने
मधुर नाम स्मरण किया।
"बस केवल तीन बार?"
नारद चकरा गए-
किन्तु भगवान को किसान ही क्यों याद आया?
गए विष्णुलोक, बोले भगवान से
"देखा किसान को
दिन भर में तीन बार
नाम उसने लिया है राम का।"
बोले विष्णु, "नारद जी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह।
बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए।”
"तेल-पूर्ण पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की
ध्यान रहे सविशेष
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।"
लेकर चले नारद जी
आज्ञा पर धृत-लक्ष्य
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।
योगीराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके
लौटे बैकुंठ को
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं
उल्लास मन में भरा था।
यह सोचकर तेल का रहस्य एक
अवगत होगा नया।
नारद को देखकर विष्णु भगवान ने
बैठाया स्नेह से
कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया?"
"एक बार भी नहीं।"
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से --
"काम तुम्हारा ही था
ध्यान उसी से लगा रहा
नाम फिर क्या लेता और?"
विष्णु ने कहा, "नारद
उस किसान का भी काम
मेरा दिया हुआ है।
उत्तरदायित्व कई लादे हैं,
एक साथ सबको निभाता और
काम करता हुआ
नाम भी वह लेता है
इसी से है प्रियतम।"
नारद लज्जित हुए
कहा, "यह सत्य है।"
कविता का उदेश्य :
1. भक्ति की सच्ची भावना:
कविता में, भगवान विष्णु नारद को एक सच्चे भक्त की परीक्षा लेते हैं। नारद एक किसान के पास जाते हैं जो दिन में केवल तीन बार भगवान का नाम लेता है। नारद को यह कम लगता है, लेकिन भगवान विष्णु उन्हें समझाते हैं कि सच्ची भक्ति नाम जपने की संख्या में नहीं, बल्कि कर्मों में निहित होती है। किसान, भले ही कम बार नाम लेता है, लेकिन वह अपना पूरा दिन भगवान के काम में लगा देता है, जो कि भक्ति का सच्चा रूप है।
2. कर्म और भक्ति का समन्वय:
कविता कर्म और भक्ति के बीच तालमेल का महत्व भी बताती है। किसान सिर्फ भगवान का नाम जपने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह अपना काम भी पूरी लगन से करता है। भगवान विष्णु भी नारद को यही सिखाते हैं कि केवल ध्यान या पूजा में लीन रहने से भक्ति नहीं होती, बल्कि कर्मों के माध्यम से भगवान की सेवा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
3. ईश्वर की सर्वव्यापकता:
कविता में ईश्वर की सर्वव्यापकता का भी संदेश दिया गया है। भगवान विष्णु नारद को एक साधारण किसान में भी अपनी भक्ति देखने में सक्षम बनाते हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद हैं और वे हर कर्म में, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, अपनी भक्ति देखते हैं।
4. विनम्रता और आत्म-अवलोकन:
कविता में नारद को अपनी गलती का एहसास होता है। जब उन्हें पता चलता है कि किसान भगवान का प्रिय भक्त है, तो वे लज्जित होते हैं। यह हमें सिखाता है कि हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए और अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
शब्दार्थ:
प्रियतम: सबसे प्रिय, सबसे प्यारा, स्मरण: याद, स्मृति, पुण्यश्लोक: यशस्वी, जिसकी प्रशंसा हो ,प्रदक्षिणा: परिक्रमा, किसी वस्तु या स्थान के चारों ओर घूमना, मृत्युलोक: पृथ्वी, मानव जगत, सविशेष: विशेष प्रकार से, खास तौर पर, साधारण: मामूली, सामान्य, घृत: तेल, घी ,विवाद: वार्ता, बहस, झगड़ा ,पर्यटन: भ्रमण, यात्रा ,पात्र: बर्तन, थाली , योगिराज: श्रेष्ठ योगी, योगियों का राजा, नारदजी, उल्लास: खुशी, उत्साह ,रहस्य: भेद, गुप्त बात, अवगत: मालूम, जानकारी प्राप्त , उत्तरदायित्व: जिम्मेदारी, कर्तव्य, धृत लक्ष्य: एकाग्र, ध्यान केंद्रित, इष्ट: आराध्य, देवता, भगवान
प्रियतम कविता की व्याख्या:
पंक्तियां:
एक दिन विष्णुजी के पास गए नारद जी,
पूछा, "मृत्युलोक में कौन है पुण्यश्यलोक
भक्त तुम्हारा प्रधान?"
विष्णु जी ने कहा, "एक सज्जन किसान है
प्राणों से भी प्रियतम।"
"उसकी परीक्षा लूँगा", हँसे विष्णु सुनकर यह,
कहा कि, "ले सकते हो।"
सन्दर्भ:
यह पंक्तियाँ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित कविता "प्रियतम" से ली गई हैं। यह कविता एक पौराणिक प्रसंग पर आधारित है जिसमें भगवान विष्णु और नारदजी के बीच किसान की भक्ति को लेकर चर्चा होती है।
व्याख्या:
• नारदजी का प्रश्न: नारदजी, भगवान विष्णु के एक प्रिय भक्त, पृथ्वी पर कौन सा व्यक्ति सबसे अधिक पुण्यात्मा और भक्तिपूर्ण है, यह जानने के लिए उनके पास जाते हैं।
• विष्णुजी का उत्तर: विष्णुजी नारदजी को बताते हैं कि उनका सबसे प्रिय भक्त एक साधारण किसान है, जो उन्हें प्राणों से भी अधिक प्रिय है।
• नारदजी का आश्चर्य: नारदजी को यह सुनकर आश्चर्य होता है क्योंकि वे एक साधारण किसान को भगवान का प्रिय भक्त नहीं मानते थे।
• परीक्षा का विचार: नारदजी किसान की भक्ति की परीक्षा लेने का फैसला करते हैं।
• विष्णुजी की स्वीकृति: विष्णुजी नारदजी को किसान की परीक्षा लेने की अनुमति देते हैं।
विश्लेषण:
• भक्ति का सच्चा रूप: इस प्रसंग से पता चलता है कि भक्ति का सच्चा रूप केवल पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं होता, बल्कि कर्मों में निहित होता है।
• कर्म का महत्व: किसान, भले ही कम बार भगवान का नाम लेता है, लेकिन वह अपना पूरा दिन ईमानदारी से काम करते हुए बिताता है।
• ईश्वर की सर्वव्यापकता: भगवान विष्णु नारदजी को एक साधारण किसान में भी अपनी भक्ति देखने में सक्षम बनाते हैं।
• नारदजी का अहंकार: नारदजी का आश्चर्य और परीक्षा लेने का विचार उनके अहंकार को दर्शाता है।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि भक्ति का सच्चा रूप केवल नाम जपने या धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में निहित होता है। हमें अपनी भक्ति में विनम्र और ईमानदार रहना चाहिए, और दूसरों को उनकी भक्ति के आधार पर नहीं आंकना चाहिए।
पंक्तियां:
नारद जी चल दिए
पहुँचे भक्त के यहॉं
देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर को,
दरवाज़े पहुँचकर रामजी का नाम लिया,
स्नान-भोजन करके
फिर चला गया काम पर।
शाम को आया दरवाजे पर
फिर नाम लिया राम का,
प्रात: काल चलते समय
एक बार फिर उसने
मधुर नाम स्मरण किया।
व्याख्या:
• नारदजी का आगमन: नारदजी, भगवान विष्णु से किसान के बारे में जानने के बाद, पृथ्वी पर उसके घर पहुंचते हैं।
• किसान का दिनचर्या:
◦ दोपहर: किसान खेतों में काम करके दोपहर को घर लौटता है।
◦ भगवान का स्मरण: वह दरवाजे पर पहुंचकर भगवान राम का नाम लेता है।
◦ दैनिक कार्य: स्नान और भोजन करने के बाद वह फिर से काम पर चला जाता है।
◦ शाम: शाम को घर लौटने पर वह फिर से भगवान राम का नाम लेता है।
◦ सुबह: सुबह काम पर जाने से पहले वह एक बार फिर भगवान राम का मधुर नाम स्मरण करता है।
विश्लेषण:
• सरल जीवन: किसान का जीवन सरल और अनुशासित है।
• भक्ति का समावेश: वह अपने दैनिक कार्यों में भगवान का स्मरण करना नहीं भूलता।
• नाम-स्मरण का महत्व: भगवान का नाम लेना उसके लिए केवल एक रस्म नहीं, बल्कि भक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
• नारदजी की दृष्टि: नारदजी किसान की भक्ति और अनुशासन से प्रभावित होते हैं।
यह प्रसंग एक आदर्श भक्त की छवि प्रस्तुत करता है। किसान अपने कर्मों के साथ-साथ भक्ति का भी समन्वय करता है, जो हमें सच्ची भक्ति का मार्ग दिखाता है।
पंक्तियां:
"बस केवल तीन बार?"
नारद चकरा गए-
किन्तु भगवान को किसान ही क्यों याद आया?
गए विष्णुलोक, बोले भगवान से
"देखा किसान को
दिन भर में तीन बार
नाम उसने लिया है राम का।"
व्याख्या:
• नारदजी का आश्चर्य: नारदजी किसान को केवल तीन बार भगवान का नाम लेते हुए देखकर चकित रह जाते हैं।
• प्रश्न: उन्हें समझ नहीं आता कि भगवान ने किसान को ही अपना प्रिय भक्त क्यों बताया, जब वह दिन भर में केवल तीन बार ही भगवान का नाम लेता है।
• विष्णु लोक वापसी: नारदजी अपने मन में इस प्रश्न के साथ विष्णु लोक लौटते हैं।
• उत्तर की प्राप्ति: वे भगवान विष्णु से मिलकर किसान के बारे में अपनी देखी हुई बात बताते हैं।
विश्लेषण:
• भक्ति की सच्ची कसौटी: इस प्रसंग से पता चलता है कि भक्ति की सच्ची कसौटी केवल नाम जपने की संख्या नहीं है, बल्कि कर्मों और भक्तिभाव में निहित होती है।
• किसान की भक्ति: किसान भले ही दिन भर में केवल तीन बार ही भगवान का नाम लेता है, लेकिन वह अपना पूरा दिन ईमानदारी से काम करते हुए बिताता है।
• कर्मों का महत्व: भगवान विष्णु नारदजी को समझाते हैं कि किसान के कर्म भी उसकी भक्ति का हिस्सा हैं।
• नारदजी की गलतफहमी: नारदजी केवल नाम जपने को ही भक्ति मानते थे, इसलिए उन्हें किसान की भक्ति समझ नहीं आई।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि भक्ति का सच्चा रूप केवल नाम जपने में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में निहित होता है। हमें अपनी भक्ति में विनम्र और ईमानदार रहना चाहिए, और दूसरों को उनकी भक्ति के आधार पर नहीं आंकना चाहिए।
पंक्तियां:
बोले विष्णु, "नारद जी,
आवश्यक दूसरा
एक काम आया है
तुम्हें छोड़कर कोई
और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह।
बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिए।”
"तेल-पूर्ण पात्र यह
लेकर प्रदक्षिणा कर आइए भूमंडल की
ध्यान रहे सविशेष
एक बूँद भी इससे
तेल न गिरने पाए।"
लेकर चले नारद जी
आज्ञा पर धृत-लक्ष्य
एक बूँद तेल उस पात्र से गिरे नहीं।
व्याख्या:
• नया कार्य: भगवान विष्णु नारदजी को एक और महत्वपूर्ण कार्य सौंपते हैं।
• विशिष्टता: यह कार्य केवल नारदजी ही कर सकते हैं, और यह कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है।
• भूमंडल की परिक्रमा: नारदजी को तेल से भरे हुए एक बर्तन को लेकर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करनी है।
• सावधानी: उन्हें विशेष ध्यान रखना होगा कि बर्तन से तेल की एक बूंद भी गिरने न पाए।
• नारदजी का प्रस्थान: नारदजी भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करने के लिए तत्परता से कार्य पर निकल पड़ते हैं।
विश्लेषण:
• भक्ति का कठिन परीक्षण: यह कार्य नारदजी के लिए भक्ति का एक कठिन परीक्षण है।
• एकाग्रता और धैर्य: इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए उन्हें अत्यधिक एकाग्रता और धैर्य की आवश्यकता होगी।
• भक्ति की गहराई: यदि वे इस कार्य में सफल होते हैं, तो यह उनकी भक्ति की गहराई और समर्पण का प्रमाण होगा।
• विश्वास: भगवान विष्णु नारदजी पर पूरा भरोसा करते हैं कि वे यह कार्य सफलतापूर्वक कर लेंगे।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि भक्ति केवल सरल कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कठिन परिश्रम, एकाग्रता और धैर्य भी शामिल होता है। सच्चा भक्त वह होता है जो हर परिस्थिति में भगवान की आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार रहता है।
पंक्तियां:
योगीराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके
लौटे बैकुंठ को
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं
उल्लास मन में भरा था।
यह सोचकर तेल का रहस्य एक
अवगत होगा नया।
व्याख्या:
• विश्व-पर्यटन: नारदजी, योगिराज होने के नाते, बहुत जल्दी ही पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस वैकुंठ लौट आते हैं।
• सफलता: वे भगवान विष्णु द्वारा सौंपे गए कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करते हैं, और बर्तन से तेल की एक बूंद भी नहीं गिरने देते।
• उल्लास: इस सफलता से उनके मन में उल्लास और प्रसन्नता का भाव होता है।
• रहस्य: उन्हें उत्सुकता है कि इस तेल का क्या रहस्य है, और उन्हें इस परीक्षा से क्या सीख मिली है।
विश्लेषण:
• भक्ति की शक्ति: नारदजी का यह कार्य उनकी भक्ति और समर्पण की शक्ति का प्रमाण है।
• एकाग्रता और धैर्य: इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए उन्हें अत्यधिक एकाग्रता और धैर्य की आवश्यकता थी।
• आत्मविश्वास: उनमें यह आत्मविश्वास था कि वे भगवान द्वारा सौंपे गए किसी भी कार्य को पूरा कर सकते हैं।
• रहस्य की जिज्ञासा: नारदजी केवल इस कार्य को पूरा करने तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि वे इसके रहस्य को जानने के लिए भी उत्सुक हैं।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति केवल कर्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जिज्ञासा, आत्मविश्वास और आत्मविश्लेषण भी शामिल होता है। सच्चा भक्त वह होता है जो न केवल अपने कर्मों को पूरी तन्मयता से करता है, बल्कि उनसे सीखने और उनका गहराई से आत्मविश्लेषण करने का भी प्रयास करता है।
पंक्तियां:
नारद को देखकर विष्णु भगवान ने
बैठाया स्नेह से
कहा, "यह उत्तर तुम्हारा यही आ गया
बतलाओ, पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया?"
"एक बार भी नहीं।"
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से --
"काम तुम्हारा ही था
ध्यान उसी से लगा रहा
नाम फिर क्या लेता और?"
व्याख्या:
• विष्णु का स्नेह: नारदजी को देखकर भगवान विष्णु उन्हें स्नेह से अपने पास बैठाते हैं।
• प्रश्न का उत्तर: वे नारदजी को बताते हैं कि उनके प्रश्न का उत्तर उनके कार्यों में ही छुपा हुआ है।
• नारदजी का उत्तर: नारदजी थोड़े शंकित भाव से बताते हैं कि उन्होंने तेल का पात्र ले जाते समय भगवान का नाम एक बार भी नहीं लिया, क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल सौंपे गए कार्य को पूरा करने में था।
• विचार: नारदजी का यह उत्तर दर्शाता है कि वे भक्ति और कर्म को एक दूसरे से अलग मानते हैं।
विश्लेषण:
• भक्ति और कर्म का समन्वय: भगवान विष्णु नारदजी को समझाते हैं कि सच्ची भक्ति केवल नाम जपने या धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में निहित होती है।
• नारदजी की गलतफहमी: नारदजी भक्ति को केवल नाम जपने तक सीमित मानते थे, इसलिए उन्हें किसान की भक्ति समझ नहीं आई थी।
• विष्णु का शिक्षण: भगवान विष्णु नारदजी को सिखाते हैं कि भक्त को अपना पूरा ध्यान ईश्वर की सेवा और अपने कर्मों पर केंद्रित करना चाहिए।
• नाम का महत्व: नाम जपना भी भक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, लेकिन यह केवल एक शुरुआत है, भक्ति का सच्चा रूप कर्मों में निहित होता है।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि भक्ति का सच्चा रूप केवल नाम जपने या धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में निहित होता है। हमें अपनी भक्ति में विनम्र और ईमानदार रहना चाहिए, और दूसरों को उनकी भक्ति के आधार पर नहीं आंकना चाहिए।
पंक्तियां:
विष्णु ने कहा, "नारद
उस किसान का भी काम
मेरा दिया हुआ है।
उत्तरदायित्व कई लादे हैं,
एक साथ सबको निभाता और
काम करता हुआ
नाम भी वह लेता है
इसी से है प्रियतम।"
नारद लज्जित हुए
कहा, "यह सत्य है।"
व्याख्या:
• किसान का कार्य: भगवान विष्णु नारदजी को समझाते हैं कि किसान का कार्य भी उन्हीं का दिया हुआ है।
• उत्तरदायित्व: किसान के ऊपर न केवल खेतों में काम करने का, बल्कि घर-परिवार की देखभाल करने का भी उत्तरदायित्व है।
• कर्मों का महत्व: इन सभी कार्यों को करते हुए भी वह भगवान राम का नाम लेता है।
• भक्ति का सच्चा रूप: भगवान विष्णु बताते हैं कि यही किसान की भक्ति का सच्चा रूप है, और यही कारण है कि वह उनका सबसे प्रिय भक्त है।
• नारदजी की लज्जा: नारदजी यह सुनकर लज्जित होते हैं क्योंकि उन्हें अपनी गलतफहमी का एहसास हो जाता है।
• सत्य का स्वीकार: वे भगवान विष्णु की बातों को स्वीकार करते हैं और किसान की भक्ति की महिमा को समझते हैं।
विश्लेषण:
• कर्म और भक्ति का तालमेल: इस प्रसंग से पता चलता है कि भक्ति केवल नाम जपने या धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण भी शामिल होता है।
• नारदजी का परिवर्तन: नारदजी इस घटना से भक्ति के सच्चे रूप को समझते हैं और अपनी गलतफहमी से मुक्त होते हैं।
• सच्चे भक्त की विशेषताएं: सच्चा भक्त वह होता है जो अपने कर्मों को पूरी तन्मयता से करता है और ईश्वर का नाम स्मरण करना नहीं भूलता।
• भक्ति का विस्तृत आयाम: भक्ति का कोई एक निश्चित रूप नहीं है, यह हर व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग तरीकों से प्रकट होता है।
यह प्रसंग हमें सिखाता है कि भक्ति का सच्चा रूप केवल नाम जपने या धार्मिक अनुष्ठानों में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में निहित होता है। हमें अपनी भक्ति में विनम्र और ईमानदार रहना चाहिए, और दूसरों को उनकी भक्ति के आधार पर नहीं आंकना चाहिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. विष्णु ने नारद को किसे अपना प्रधान भक्त बताया?
(क) लक्ष्मी को (ख) राम को (ग) सज्जन किसान को (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर : (ग) सज्जन किसान को।
2. 'प्रियतम' कविता के रचयिता का उपनाम है ?
(क) नीरज (ख) निराला (ग) पंत (घ) अज्ञेय
उत्तर : (ख) निराला।
3. सज्जन किसान ने दिन भर में कितनी बार ईश्वर का नाम लिया ?
(क) छह बार (ख) पाँच बार (ग) चार बार (घ) तीन बार
उत्तर : (घ) तीन बार
4. नारद का दूसरा नाम है - (क) भक्त राज (ख) देवराज (ग) योगिराज (घ) मुनिराज
उत्तर : (ग) योगिराज
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. नारद क्या पूछने विष्णु के पास गए?
उत्तर: नारदजी विष्णु जी के पास यह जानने के लिए गए कि पृथ्वी पर उनका सबसे प्रिय भक्त कौन है। वे यह जानना चाहते थे कि भगवान किस व्यक्ति की भक्ति स्वीकार करते हैं।
2. नारद जी किसकी परीक्षा लेने उसके पास गए?
उत्तर: नारदजी विष्णु जी के निर्देशानुसार, उस सज्जन किसान की परीक्षा लेने उसके पास गए जिन्हें भगवान ने अपना प्रिय भक्त बताया था। वे यह जानना चाहते थे कि किसान की भक्ति में क्या खास बात है।
3. नारदजी भक्त के पास पहुँचकर क्या देखा?
उत्तर: नारदजी ने भक्त के पास पहुँचकर देखा कि वह किसान दोपहर को हल जोतकर आने पर, शाम को दरवाजे पर आकर, और सुबह काम पर जाने से पहले भगवान राम का नाम लेता था। इस प्रकार, वह दिन भर में केवल तीन बार ही भगवान राम का नाम लेता था।
4. नारदजी भगवान विष्णु के पास जाकर क्या बोले?
उत्तर: नारदजी भगवान विष्णु के पास जाकर यह बताने के लिए गए कि उन्होंने जिस किसान को भगवान का सबसे प्रिय भक्त बताया था, वह दिन भर में केवल तीन बार ही भगवान का नाम लेता है। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि भगवान ने किसान को अपना प्रिय भक्त क्यों बताया है।
5. नारद ने लज्जित होकर क्या कहा?
उत्तर: जब भगवान विष्णु ने नारदजी को समझाया कि किसान भले ही दिन भर में कम बार नाम लेता है, परंतु वह अपने कर्मों में निष्ठावान और ईश्वर के प्रति समर्पित है, तब नारदजी को अपनी गलतफहमी का एहसास हुआ और वे लज्जित होकर बोले कि "यह सत्य है।" उन्होंने स्वीकार कर लिया कि भक्ति का सच्चा रूप केवल नाम जपने में नहीं, बल्कि कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण में भी होता है।
बोधमूलक प्रश्न:
1. नारदजी क्यों परेशान थे? उनकी परेशानी का समाधान किस प्रकार हुआ?
उत्तर : नारदजी इस बात को लेकर परेशान थे कि किसान दिनभर में केवल तीन बार राम का नाम लेता है, फिर भी वह विष्णु भगवान का सबसे प्रधान भक्त क्यों है।
भगवान विष्णु ने उनकी परेशानी का समाधान करने के लिए उन्हें एक तेल से भरा पात्र देकर पृथ्वी की परिक्रमा कर आने के लिए कहा। नारदजी परिक्रमा करके सानंद सफल होकर लौट आए विष्णु के पूछने पर उन्होंने बतलाया कि इस परिक्रमा के समय उन्होंने एक बार भी ईश्वर का नाम नहीं लिया, क्योंकि वे उनके द्वारा दिए गए काम में पूरा ध्यान लगाए रहे। विष्णुजी ने समाधान करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह किसान भी मेरे द्वारा दिए गए काम तथा जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए भी दिनभर में तीन बार राम का नाम लेता है। इसी कारण वह प्रधान भक्त है। इस प्रकार नारदजी की परेशानी का समाधान हो गया।
2. निरालाजी ने कर्म और भक्ति का सामंजस्य किस प्रकार दर्शाया है, स्पष्ट करें?
उत्तर : प्रियतम कविता में निराला जी ने कर्म और भक्ति के बीच एक अद्भुत सामंजस्य दर्शाया है। वे यह स्पष्ट करते हैं कि सच्ची भक्ति केवल नाम जपने या पूजा-पाठ करने तक सीमित नहीं है, बल्कि कर्मों में भी निहित होती है।
कविता में प्रस्तुत किसान का चरित्र इसका एक उत्तम उदाहरण है। वह दिन भर कड़ी मेहनत करता है, अपने परिवार का भरण-पोषण करता है, और अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करता है। साथ ही, वह समय-समय पर भगवान का नाम भी स्मरण करता है। निराला जी का मानना है कि जो व्यक्ति अपने कर्मों को पूरी तन्मयता से करता है और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है, वही सच्चा भक्त होता है। कविता में निराला जी कर्म को भक्ति का आधार मानते हैं। उनका कहना है कि जो व्यक्ति कर्म नहीं करता, वह भक्ति भी नहीं कर सकता। कर्म ही हमें जीवन में आगे बढ़ने और ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं।
3. नारद लज्जित हुए
कहा, 'यह सत्य है।'
उपरोक्त पंक्तियों का आशय सप्रसंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : भगवान विष्णु द्वारा सौपे हुए कार्य को संपन्न कर नारदजी प्रसन्न होकर विष्णु के पास आए। विष्णु ने नारद से पूछा कि पृथ्वी की परिक्रमा करते समय उन्होंने कितनी बार अपने इष्ट देव का नाम लिया। नारदजी ने कहा कि वह तो उन्हीं के द्वारा दिए हुए काम में ध्यान मग्न रहे, इसलिए एक बार भी नाम नहीं लिया। विष्णु ने कहा कि वह किसान भी मेरे द्वारा ही दिए गए काम करता है, फिर दिनभर में तीन बार राम का नाम लेता है। यह सुनकर नारदजी लज्जित हो गए। उन्होंने सत्य को स्वीकार कर लिया। यह मान लिया कि सचमुच वह किसान भगवान को सबसे प्रिय है, यह सर्वथा उचित और सत्य है।
भाषा बोध
1. निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
• मृत्युलोक - विग्रह: मृत्यु का लोक। समास: तत्पुरुष समास
• सज्जन - विग्रह: सत् है जो जन। समास: कर्मधारय समास
• दोपहर - विग्रह: दूसरा पहर। समास: द्विगु समास
• नाम स्मरण - विग्रह: नाम का स्मरण। समास: तत्पुरुष समास
2. निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद कर संधि का नाम लिखिए-
• उल्लास - विच्छेद: उल् + लास। संधि: व्यंजन संधि
• प्रातःकाल - विच्छेद: प्रातः + काल। संधि: विसर्ग संधि
3. निम्नलिखित शब्दों के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए-
• विष्णु - हरि, नारायण, श्रीपति
• परीक्षा - इम्तहान, समीक्षा, निरीक्षण
• प्रातःकाल - प्रभात, भोर, सबेरा
• इष्ट – प्रिय, अभीष्ट, वांछनीय
• विश्व - संसार, दुनिया, जगत्
अतिरिक्त प्रश्न:
• विष्णुजी ने नारद को किसे अपना प्रधान भक्त बताया?और क्योंं ?
उत्तर : कविता में, भगवान विष्णु नारदजी को बताते हैं कि सज्जन किसान उनका सबसे प्रिय भक्त है। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसान अपने कर्मों को पूरी लगन और ईमानदारी से करता है, और साथ ही वह भगवान का नाम भी स्मरण करता है।
• नारदजी को किसान की भक्ति में क्या खास बात दिखाई दी?
उत्तर : नारदजी को किसान की भक्ति में यह खास बात दिखाई दी कि वह अपने कर्मों को पूरी तन्मयता से करता था और साथ ही भगवान का नाम भी स्मरण करता था।
• किसान की भक्ति की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर : किसान की भक्ति की विशेषताएं हैं:
◦ कर्मों में निष्ठा
◦ ईश्वर के प्रति समर्पण
◦ सरलता और विनम्रता
◦ नाम जप
• नारदजी ने किसान की भक्ति से क्या सीख प्राप्त की? या, भगवान विष्णु ने नारदजी को क्या शिक्षा दी?
उत्तर : नारदजी ने किसान की भक्ति से सीखा कि सच्ची भक्ति केवल नाम जपने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कर्मों और ईश्वर के प्रति समर्पण भी शामिल होता है।
• भक्ति का सच्चा रूप क्या है?
उत्तर : भक्ति का सच्चा रूप वह है जो हृदय से निकले, जिसमें दिखावा और पाखंड न हो।
• 'प्रियतम' कविता का क्या संदेश है?
उत्तर : 'प्रियतम' कविता हमें सिखाती है कि भक्ति का मार्ग सरल और सहज है, हमें केवल अपने कर्मों को पूरी तन्मयता से करते हुए ईश्वर का स्मरण करना चाहिए।