(i) नीचे दी गयी कथनों के साथ नीचे की कौन-सी व्याख्या सटीक बैठती है, खोजकर लिखो :
(क) कथन : गाँधी पारवात्य आदर्श के विरोधी थे।
व्याख्या : गाँधी पुरातनी मनुष्य थे।
व्याख्या 2 : गाँधी का मानना था कि पाश्चात्य आदर्श भारत के सहज स्वराज अर्जन करने में बाधक था।
व्याख्या 3: गांधीजी चाहते थे कि भारत के सारे लोग सरल जीवन यापन करें।
उत्तर : व्याख्या 3 गांधीजी चाहते थे कि भारत के सारे लोग सरल जीवन यापन करें।
(ख) कथन : 1919 ई० में लेिट कानून तैयार किया गया था।
व्याख्या1: भारतीय राजनीति में गाँधी का प्रभाव कम करने के लिए।
व्याख्या 2: ब्रिटिश विरोधी सोच और क्रांतिकारी आंदोलन को कम करने के लिए।
व्याख्या 3 : भारतीयों को सांविधानिक सुविधा और अवसर प्रदान करने लिए।
उत्तर: व्याख्या 2: ब्रिटिश विरोधी सोच और क्रांतिकारी आंदोलन को कम करने के लिए।
(ग) कथन: गांधी ने खिलाफ आन्दोलन का समर्थन किया था।
व्याख्या1 : भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में मुसलमानी के समर्थन और सहयोगिता प्राप्त करने।
व्याख्या 2 : तुरस्क के सुल्तान के प्रति सहानुभूति दशनि के लिए।
व्याख्या 3 : मुस्लिम समाज को जन्मति को मांग जोरदार करने के लिए।
उत्तर : व्याख्या 2 : तुरस्क के सुल्तान के प्रति सहानुभूति दर्शाने के लिए।।
(घ) कथन : भारतीयों ने साइमन कमीशन का त्याग किया था।
व्याख्या1: भारतीय सर जॉन साइमन को पसन्द नहीं करते थे।
व्याख्या 2: सर जॉन साइमन भारतीयों के विरोधी थे।
व्याख्या 3 : साइमन कमीशन में कोई भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं था।
उत्तर: व्याख्या 3 साइमन कमीशन में कोई भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं था।
(ङ) कथन सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का दायित्व लिया।
व्याख्या1: रासबिहारी बसु का अनुरोध रखने के लिए।
व्याख्या 2 : आजाद हिन्द फौज की मदद से ब्रिटिश अधिकृत भारतीय भू-खण्ड पर आक्रमण चलाने के लिए।
व्याख्या 3: जापान सरकार को मदद करने के लिए।
उत्तर : व्याख्या1 रासबिहारी बसु का अनुरोध रखने के लिए।
2। क - स्तम्भ के साथ ख - स्तम्भ का मिलान करो :
क - स्तम्भ ----------------- ख - स्तम्भ
बिहार का चम्पारन ------- कृषक आन्दोलन
स्वराज दल ------------- चित्तरंजन दास
विनय-बादल-दिनेश ----- अलिन्द युद्ध
भगत सिंह -------------- लाहौर षड्यंत्र मामला
पट्टाभिसीतारमैया ------ हरिपुरा काग्रेस
3. संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न :
क. दक्षिण अफ्रीका का आन्दोलन महात्मा गाँधीजी के राजनेतिक जीवन पर कितना प्रभाव डाला था ?
उत्तर : भारत में चल रहे आन्दोलन को नेतृत्व देने से पहले गांधी दक्षिण अफ्रीका में वर्ण विरोधी आन्दोलन कर चुके थे। उसी आन्दोलन से धीरे-धीरे गांधीवादी सत्याग्रह की धारणा तैयार हुई थी। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने विभिन्न धर्म भाषा अंचलों के लोगों को साथ लेकर लड़ाई किया था। उस आन्दोलन के व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार ने गांधी को विख्यात कर दिया। उस समय भारत के राजनैतिक नेता मूलतः एक-एक अंचल के नेता हुआ करते थे।
ख. गाँधीजी के सत्याग्रह आदर्श की मूल भावना क्या थी ?
उत्तर: गांधीजी के सत्याग्रह आदर्श की मूल भावना सरकार द्वारा किसानों पर बढ़ाया गया राजस्व के खिलाफ था। गुजरात के खेड़ा जिले में गांधीवादी सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हुआ था। वहाँ राजस्व की बढ़ी हुई आग के विरूद्ध किसानों की एकजुटता तैयार हुई थी। मगर राजस्व में नाममात्र की छूट दी गई थी। फलस्वरूप खेड़ा जिले का आन्दोलन विशेष सफल नहीं हो पाया था। इसके बाद गांधी ने अहमदाबाद के मिल मालिकों और श्रमिकों के बीच हो रही लड़ाई में हस्तक्षेप किया था। मगर रॉलेट कानून लागू करने को केन्द्र में रखकर गांधी ने अखि भारतीय स्तर पर आन्दोलन को परिकल्पना की।
ग. स्वराज पंथियों के आन्दोलन की मुख्य माँगें क्या-क्या थी?
उत्तर: कांग्रेस के बीच से ही पित्तरजन दास और मोतीलाल नेहरू आदि प्रमुख नेताओं ने गांधी के रास्ते से बाहर निकल आने की बात को थी। उनका मानना था कि सरकारी कानून व्यवस्था का बॉयकट न करके उसे मान हो उचित है। अन्यथा सरकारी नीति और काम में बाधा उत्पन्न होगी। दूसरी तरफ गांधी पथी पुराने रास्ते पर ही में उत्साही दिख रहे थे। फलस्वरूप 1922 ई० के अन्त में वित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर 'कांग्रेस- खिलाफत स्वराज दल तैयार किया। यह दल कांग्रेस के बीच हो एक अलग दल के रूप में काम करत रहा। मगर कुछ नीतियों में अलग होकर भी गांधी के परामर्श पर दोनों दल कांग्रेस के साथ ही रह गए थे।
घ. किसे क्यों 'सीमान्त गांधी' कहा जाता है?
अथवा, कौन सीमान्त गाँधी के नाम से परिचित हुए ? अथवा, किसे 'सीमान्त गाँधी' कहा जाता था और क्यों ?
उत्तर : खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमान्त गांधी कहा जाता था। खान अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के उस -पश्चिम सीमा धान्त के कबायली जन-जातियों को संगठित किया। इनके स्वयसेवक खुदाई खिदमतगार कुर्ता दल कहलाते थे। इन लड़ाकू जातियों को गांधी जी के मार्ग पर से चलने और उनसे शान्तिपूर्ण आन्द करवाने के कारण खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमान्त गांधी कहा जाता था।
ङ. भारत छोड़ो आन्दोलन में मातंगिनी हाजरा की भूमिका क्या थी? अथवा, मातंगिनी हाजरा की क्या भूमिका थी?
उत्तर : मातगिनी हाजरा उन वीरागनाओं में से थी जिन्होंने प्राणोत्सर्ग कर दिया इनका जन्म सन् 1870 ई मिदनापुर के होला ग्राम में हुआ था। उन्होंने सन् 1930 ई० में कानून भंग आन्दोलन में भाग लिया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें छह माह के लिए नजरबंद कर दिया था। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में अहम भूमिका निभाई थी।
4. विस्तृत उत्तर वाले प्रश्न :
क. गांधी के सत्याग्रह के आदर्श की व्याख्या करो। इन आदर्शों के साथ कांग्रेस की शुरूआती नरम पंथियों के आदर्श की तुलनात्मक चर्चा करो।
उत्तर : गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा' के आदर्श का पारस्परिक संबंध है। इन दोनों को एक साथ 'अहिंसा सत्याग्रह' भी कहा जाता है। गांधी का मानना था कि सत्य की खोज ही जीवन का परम लक्ष्य है। फलस्वरूप सत्य के प्रति आग्रह अथवा सत्य के प्रति निष्ठा राजनीतिक प्रतिवाद प्रतिरोध प्रदर्शन करने वालों के गांधी कटु आलोचक थे। गांधी के आन्दोलन का चरित्र एक प्रकार से मानवधर्मी था। अधिकांश लोगों को आन्दोलन में शामिल करना ही अहिंसा सत्याग्रह की सफलता थी। लेकिन इसके साथ ही गाँधी मानते थे कि अहिंसा और सत्याग्रह के आदर्श को आमजनों को कठोर रूप से पालन करना ही होगा।
राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक नेता (1885-1905 ई.) उदारवादी आंदोलन के विश्वासी थे। वे अनुनय-विनय की नीति के द्वारा सरकार के पास भिक्षावृत्ति की राजनीति के विश्वासी थे। इस नीति में विश्वासी कांग्रेसी नेताओं को नरमपंथी के नाम से जाना जाता है।
राष्ट्रीय कांग्रेस के दो परमपंथी नेताओं का नाम दादा भाई पैरोजी तथा सुरेन्द्रनाथ बनर्जी था।
नरमपंथी नेताओं के कार्यों का मूल्यांकन :
(i) कांग्रेस की स्थापना के प्रारंभ के नेता उयवित सम्पदाय का प्रतिनिधित्व करते थे। फलस्वरूप इनका आरोन कभी भी साधारण लोगो में नहीं था।
(ii) नरमपंथी आवेदन निवेदन को पोति में विश्वास करते थे किन्तु उनके क्रियाकलाप का कोई फल यहीं मिला। ब्रिटिश सरकार की अमानवीय मनोभावना भी इसकी व्यर्थता का कारण था।
(iii) नरमपथियों के अनुनय-विनय की नीति एक भिक्षावृति के समान था।
(iv) उनके बीच गुटबंदी तथा व्यक्ति केन्द्रिकता ने कांग्रेस को दुर्बल बना दिया।
ख. अहिंसा असहयोग आन्दोलन की क्या विशेषताएँ थी? इस आन्दोलन को रद्द कर देने के सिद्धान्त पर गांधी के साथ क्या तुम एक मत हो? तुम अपने विचारों के पक्ष में तर्क रखो।
उत्तर : असहयोग आंदोलन : 1 अप्रैल 1920 ई. को गाँधीजी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आदोलन शुरू किया। सरकारी पदवी का त्याग, सरकारी स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, अदालत सभी का बहिष्कार करने का आह्वान उन्होंने भारतवासियों से किया इनके नेतृत्व में यह आन्दोलन पूरे भारतवर्ष में ब्रिटिश विरोधी जन आंदोलन में परिणत हो गया। किन्तु 'चौरीधौरा के हिंसक कार्यकलाप के करण इन्होंने इस आंदोलन को वापस से लिया।
अहिंसा असहयोग आन्दोलन की विशेषताएँ () असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप भारत में कपड़े के आयात का प्रतिशत बहुत कम हो गया था। (i) मजदूर और किसानों ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। (i) इस असहयोग आंदोलन ने उन लोगों को भी साथ ला दिया जो पहले कभी कांग्रेस द्वारा परिचालित आंदोलन में साथ नहीं दिया था।
असहयोग आंदोलन को असफल आंदोलन नहीं कहा जा सकता, यद्यपि असहयोग आन्दोलन अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सका फिर भी यह भारत का प्रथम जन आन्दोलन था जिसमे देश की जनता का प्रत्येक वर्ग सम्मिलित हुआ। अब किसी को जेल का भय नहीं था। जेल तो उनके लिए तीर्थस्थान बन गई थी। जनशक्ति के महत्त्व को समझकर अब कांग्रेस ने भी संवैधानिक तरीको को छोड़कर जन आन्दोलन के तरीकों को अपनाया। सरकार ने भी अपनी नीतियों में परिवर्तन किया। वह समझ गयी कि अब शक्ति के बल पर भारत में शासन नहीं किया जा सकता है। इस आन्दोलन के द्वारा लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना बढ़ी और लोग राष्ट्र को सर्वोपरि मानने लगे।
ग. कानून अवज्ञा आन्दोलन में आम लोगों की हिस्सेदारी का चरित्र क्या था? सूर्य सेन और भगत सिंह का संग्राम क्या गांधी की नीतियों का सहगामी था?
उत्तर: अहिंसात्मक आन्दोलन के बाद कुछ सालो तक कोई नया आन्दोलन तैयार करने की स्थिति नहीं बन रही थी। गांधी स्वयं भी कई सालों तक जेल में रहे। जेल से निकलकर फिर वे अपना मन आदर्श सत्याग्रही तैयार करने में लगाते रहे। दूसरी तरफ कांग्रेस संगठन के बीच भी नया विवाद उठ खड़ा हुआ था। कांग्रेस के बीच स्वराज पंथी नामक एक नया दल तैयार हो गया था।
कांग्रेस कव बीच से ही चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू आदि प्रमुख नेताओं ने गांधी के रास्ते से बाहर निकल आने की बात की थी। उनका मानना था कि सरकारी कानून व्यवस्था का बायकाट न करके उसे मानना हो उचित है। अन्यथा सरकारी नीति और काम में बाधा उत्पन्न होगी। दूसरी तरफ गांधी पंथी पुराने रास्ते पर ही चलने में उत्साही दिख रहे थे। फलस्वरूप 1922 ई० के अन्त में चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू ने मिलकर 'काग्रेस. खिलाफत स्वराज दल तैयार किया। यह दल कांग्रेस के बीच ही एक अलग दल के रूप में काम करता रहा। नगर कुछ नीतियों में अलग होकर भी गांधी के परामर्श पर दोनों दल कांग्रेस के साथ ही रह गये थे।
सूर्य सेन 1930 ई० में चट्टग्राम (गाँव) में सूर्य सेन के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों का उत्थान हुआ था। तय हुआ कि एक साथ ही चटगाँव, मैमनसिंह और बारिशाल में आक्रमण करना होगा। इसी योजना के अन्तर्गत सूर्य सेन के नेतृत्व में 1930 ई० के 18 अप्रैल को घटगांव अरखागार लूटा गया। अरवागार लूटने के बाद 22 अप्रैल को क्रान्तिकारियों ने जलालाबाद पहाड़ी पर आश्रय लिया। यहीं पर ब्रिटिश सेना के साथ क्रान्तिकारियों की लड़ाई हुई। इस लड़ाई में क्रान्तिकारियों के पक्ष से 11 लोग मारे गये। इसके बाद गुरिल्ला कायदे से युद्ध करने का फैसला लेकर क्रान्तिकारी जलालाबाद से चारों तरफ फैल गये।
भगत सिंह: ब्रिटिश पुलिस के हाथों मारे गये लाला लाजपत राय का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने लाहौर
पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट सान्डर्स की हत्या की।
8 अप्रैल 1929 ई० को केन्द्रीय विधान सभा में भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका और स्वेच्छा से अपनी गिरफ्तारी दी उस घटना में क्रान्तिकारी राजगुरू और और सुखदेव सहित बहुतों को पकड़ा गया। ब्रिटिश सरकार ने इसी मामले में 1929 में लाहौर षड्यंत्र मुकदमा शुरु किया। 1931 ई० में इस मुकदमे के फैसले में भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। 'इन्कलाब जिन्दावाद' शब्द को भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने लोकप्रिय बना दिया। 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गांधी ने जिस अहिंसा सत्याग्रह की बात की थी यह आदर्श हमेशा नहीं टिका रहा। गांधी ने स्वयं करेंगे या मरेंगे की आवाज लगाकर इस 'आन्दोलन का मिजाज ही बदल दिया।
घ. राष्ट्रीय राजनीति में सुभाषचन्द्र बोस के उत्थान की पृष्ठभूमि का विश्लेषण करो। सुभाषचन्द्र की राजनीतिक चिन्तन धारा किस-किस विषय से प्रभावित थी, अपने शब्दों में बताओ।
उत्तर : नेताजी का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 ई० को कटक में हुआ। ये अत्यन्त प्रतिभा सम्पन्न विद्यार्थी थे। इनके मन में देश-प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी थी। ये जन्मजात देशभक्त थे। आई०सी०एस० की परीक्षा पास कर जब ये इंग्लैण्ड से भारत आये तो ये सर्वप्रथम देशबन्धु चितरंजन दास के सम्पर्क में आये और इसके बाद इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। कुछ दिनों तक ये कलकता में मेयर के पद पर रहे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और एक कर्मठ नेता के रूप में तत्परता के साथ भारत माता की सेवा कांग्रेस के माध्यम से करने लगे ।
कांग्रेस की सेवा तथा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना गांधीजी अपने समय के कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे। सुभाष चन्द्र बोस भी भारतीय जनता के हृदय के सम्राट थे, पर दोनों के देश के सम्बन्ध में आर्थिक, राजनीतिक विचारों में साम्य नहीं था सुभाष चन्द्र बोस को स्वराज्य पार्टी के कार्यक्रमों को देखकर एवं समझ कर राजनीतिक परिपक्वता आयी। गांधीजी ने जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया तो नेताजी ने उसका विरोध किया। सुभाष चन्द्र बोस के विचार साम्यवादी थे। सुभाष चन्द्र बोस पूरे देश में जागरण लाकर पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे । गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस लिया तो सुभाष चन्द्र बोस ने इसे राष्ट्रीय भूल कहा। कांग्रेस के सन् 1929 ई० के लाहौर अधिवेशन से एक वर्ष पहले जवाहरलाल और सुभाष बाबू ने 'Independent leagur की स्थापना की और लाहौर अधिवेशन में जवाहर लाल ने कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में पूर्ण स्वराज्य की माँग की। सुभाष चन्द्र बोस ने बहिष्कार, हड़ताल और वैकल्पिक सरकार के गठन की मांग रखी जिसे गांधीजी के विरोध के कारण कांग्रेस द्वारा समर्थन नहीं मिला।
सन् 1938 ई० में सुभाष चन्द्र बोस हरिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। अपने अध्यक्ष काल में सुभाष चन्द्र बोस ने कांग्रेस में रहते हुए साम्यवादी और बामपंथी ताकतों को एक साथ मिलाया एवं पूरे देश में ब्रिटिश विरोधी एवं साम्राज्यवादी ताकत के विरोध में जनमत तैयार किया। अतः सन् 1939 ई० के त्रिपुरी कांग्रेस की अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए तो पट्टाभि सीतारमैया गांधीजी के समर्थन से अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए। इस पर गांधीजी के साथ उनका विरोध हुआ और वे कांग्रेस को छोड़ कर फारवर्ड ब्लॉक दल की स्थापना किये।
ङ. भारत छोड़ो आन्दोलन क्या गांधी के अहिंसा सत्याग्रह के आदर्श को मानकर चला था ? नौविद्रोह को स्वाधीनता संग्राम में योगदान को तुम किस तरह व्याख्या करोगे।
उत्तर : 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गांधी ने जिस अहिंसा सत्याग्रह की बात की थी वह आदर्श हमेशा नहीं टिका रहा। गांधी ने स्वयं करेंगे या मरेंगे की आवाज लगाकर इस आन्दोलन का मिजाज ही बदल दिया। ब्रिटिश शासकों के प्रति उनका यह विचार था कि ब्रिटिश भारत छोड़कर चले जाएँ, उसके बाद जो भी परिस्थिति होगी उसका दायित्व गांधी स्वयं लेंगे। इससे ही भारत छोड़ो आन्दोलन में भी विभिन्न प्रान्तों के लोगों ने हिस्सा लिया नी था। इसी साल अगस्त में ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन के प्रधान प्रधान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। उस समय नेतृत्वहीन हो पड़े इस आन्दोलन को साधारण लोगों ने ही भारत के विभिन्न प्रान्तों में स्वतः स्फूर्त ढंग से आगे बढ़ाया। 3. वस्तुतः नेताहीन आन्दोलन इतनी दूर तक आगे बढ़ेगा। इसे कांग्रेस के अगुवा भी नहीं सोच सके थे।
1946 ई० में 18 से 23 फरवरी तक बम्बई में नौ-विद्रोह ने उपनिवेशक ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ा दी थी। भोजन का घटिया स्तर और वर्ण-वैषम्य जैसे अपमान के विरूद्ध 18 फरवरी को 'तलवार' जहाज के सैनिकों (Rating) ने अवरोध किया। उनकी माँग थी अच्छा भोजन और समान वेतन इसके साथ ही वे आजाद हिन्द फौज एवं दूसरे राज बान्दियों की मुक्ति की मांग भी कर रहे थे। सारे राजनीतिक दलों का पताका उनलोगों ने जहाज के मस्तूल पर फहरा दिया।
मगर ब्रिटिश प्रशासन ने भयंकर दमन नीति अपनाते हुए नौ विद्रोह को रोकने की चेष्टा की। इसके फलस्वरूप हड़ताल और प्रतिवाद जल्द ही संघर्ष का रूप ले लिया। नौ विद्रोह के समर्थन में भारत के विभिन्न हिस्सों में छात्र युवा एवं आम लोग सड़कों पर उतरे। जबकि कांग्रेस एवं मुस्लिम लोग ने भी विद्रोहियों से अपना समर्थन वापस ले लिया। यहाँ तक कि महात्मा गांधी ने भी इस विद्रोह का विरोध किया था। आजाद हिन्द फौज की तरह नौ-विद्रोहियों ये ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित हुए थे। फलस्वरूप उन्हें भी एक जैसा सम्मान मिलना चाहिए था।