1। उचित शब्द चुनकर खाली स्थान भरो।
क. औपनिवेशिक भारत सरकार द्वारा भाषा के आधार पर फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को स्वीकृति दिया गया ……………. (1847 ई०/1837 ई०/1850 ई०)
उत्तर: 1837 ई० ।
ख. भारतीय मुस्लिम समाज को आधुनिक बनाने का अभियान प्रथम किसने चलाया ………… (मुहम्मद अलीजिन्ना / मौलाना अबुल कलाम आजाद / सर सैयद अहमद खाँ) ।
उत्तर: सर सैयद अहमद खाँ ।
ग. कृषक प्रजा पार्टी के नेता थे। …………… (ए० के० फजलूल हक/मुहम्मद अली जिन्ना / जवाहरलाल नेहरू)।
उत्तर: ए० के० फजलूल हक।
घ. स्वाधीन पाकिस्तान राष्ट्र का जन्म हुआ ………….. (1947 ई० 15 अगस्त 1947 ई० 14 अगस्त 1947 ई० 26 जनवरी)।
उत्तर: 1947 ई० 14 अगस्त।
2। सही एवं गलत का निर्णय करो :
क. 19 वीं सदी में हिन्दुओं की तुलना में मुसलमान शिक्षा एवं नौकरी के क्षेत्र में पिछड़ापन था। (सही)
ख. हिन्दू पुनरूत्थानवादी आंदोलन हिन्दू मुस्लिम एकता प्रभावित कर रहा था। (गलत)
ग. महात्मा गांधी खिलाफत आदोलन का समर्थन किए थे। (सही)
घ. पाकिस्तान प्रस्ताव को खारिज करने के लिए 1940 ई० में लाहौर अधिवेशन हुआ। (गलत)
3। संक्षिप्त उत्तर वाले प्रश्न :
क. अलीगढ़ आन्दोलन का मूल उद्देश्य क्या था?
उत्तर: सर सैयद अहमद खाँ अलीगढ़ आन्दोलन के जन्मदाता थे। इनका मुस्लिम सम्प्रदाय में वही स्थान है में हिन्दू सम्प्रदाय में राजा राममोहन राय का है। इसलिए बहुत से लोग इन्हें मुस्लिम समाज का राजा राममोहन र कहते हैं।
उनका मुख्य उद्देश्य था (i) मुसलमानों को अंग्रेजों के सम्पर्क में लाना (ii) मुस्लिम समाज में व्याप्त बुराइयों तद उनके अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा (ii) मुसलमानों में पाश्चात्य सभ्यता का प्रसार करना ।
ख. स्वदेशी आंदोलन से बंगाल के हिन्दू मुस्लिम समर्थक किस प्रकार प्रभावित हुए ?
उत्तर : स्वदेशी आंदोलन को लेकर हिन्दू-मुस्लिम समस्या और जोर पकड़ने लगी। बंग-भंग का विरोध करने वाले नेताओं को कहने लगे कि हिन्दूओं की तुलना में मुसलमानों को अधिक सुविधाएँ दी जा ही है, जिसके कारण बंगाली पहचान के बदले हिन्दू तथा मुस्लिम की पहचान बनती गई। इसके साथ ही बंगाल के गरीब किसानों को विदेशी वस्त्रों को बहिष्कृत करने के लिए जोर दिया जाने लगा। बंग-भंग प्रतिरोध आंदोलन एक समय हिन्दू तथा मुस्लिम के पारस्परिक विरोध में बदल गया।
ग. भारत में मुसलमान खिलाफत आंदोलन प्रारम्भ क्यों हुआ ?
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गणराज्य ब्रिटेन के विरूद्ध अस्त्र उठा लिया था। भारतीय मुसलमानों में प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजी सरकार को समर्थन देने के बावजूद चेक गणराज्य के विषय को लेकर एक उघड़ेवुन की। स्थिति उत्पन्न हो गई। चेक गणराज्य के सुल्तान को 'खलीफा' अथवा मुस्लिम समुदाय में धर्मगुरू के रूप में जान जाता था। प्रथम विश्वयुद्ध में चेक गणराज्य के हार के कारण सुल्तान की शक्ति कम हो गई। तुर्की के बहुत बड़े साम्राज्य को ब्रिटिशों ने अपने कब्जे में ले लिया। इस घटना से भारतीय मुसलमान संतुष्ट हो गए थे। उनलोगों ने ब्रिटिश नीतियों का पूरा विरोध किया। मुसलमानों के पवित्र स्थलों को 'खलीफा' को वापस देने की माँग उठी। यही माँग क्रमश: भारत में ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का रूप ले लिया।
घ. सन् 1930 ई० भारत में हिन्दू मुसलमान सम्पर्क क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण क्यों था?
उत्तर : 1924 ई० में चेक गणराज्य (तूर्की) के खलिफा का खात्मा हो गया। इसके परिणामस्वरूप खिलाफत आंदोलन का तेज प्रभाव समाप्त हो गया। लेकिन जिस धार्मिक भावना का सूत्रपात हुआ था। इस समय हिंदू महासभा की तरह उग्र हिंदू जातीवादी संगठनों का वर्चस्व बढ़ते जा रहा था। कांग्रेस के साथ इन सभी संगठनों का घनिष्ठता बढ़ता जा रहा था। मदनमोहन मालवीय ने प्रमुख नेताओं को हिंदुत्ववाद क्रिया-कलापों से कांग्रेस को प्रमुख रूप से फायदा कराया मुस्लिम सम्पदाय धीरे-धीरे कांग्रेस से और दूर होता चला गया। 1930 के दशक में दोहरी जाति के साम्पादायिक विचित्रता का महत्त्वपूर्ण समय था। 1930 ई० में मुस्लिम लीग का सभापति मोहम्मद इकबाल एवं उसके पश्चात् कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश बलुचिस्तान तथा कश्मीर को लेकर अलग प्रदेश गठन करने का प्रस्ताव दिया। रहमत अली ने साफ-साफ तौर पर पाकिस्तान की बातों का उल्लेख किया था।
4।विस्तृत उत्तर वाले प्रश्न :
क. सर सईयद अहमद खाँ किस प्रकार मुस्लिम समाज को आधुनिकिकरण पथ पर आगे ले गये।
उत्तर : उन्नीसवी शताब्दी के आरम्भ में मुस्लिम सम्प्रदाय बहुत पिछड़ा हुआ था। मुस्लिम समाज में शिक्षा का सर्वथा अभाव था । मुसलमानों में पर्दा प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह तथा अंधविश्वास का प्रचलन जोरों पर था । भारत में अंग्रेजो से पहले मुसलमानों का शासन था। अंग्रेजों ने मुसलमानों से सत्ता छीन ली थी अतः वे अंग्रेजों के प्रबल विरोधी तथा कट्टर दुश्मन थे। मुस्लिम समाज अंग्रेजों की अच्छी बातों को भी स्वीकार नहीं करते थे वरन् उन्हें घृणा की दृष्टि से देखते थे। इसी समय मुस्लिम समाज में सर सैयद अहमद खाँ नामक महापुरुष का पदार्पण हुआ जिसने सर्वप्रथम यह अनुभव किया कि पाश्चात्य संस्कृति न अपनाने के कारण मुसलमान बहुत पीछे रह गये। है। मुस्लिम सम्प्रदाय का उद्धार करने में उन्होंने बहुत परिश्रम किया। उन्होंने भारतीय मुसलमानों को नई चेतना दी तथा यह बताया कि पाश्चात्य सभ्यता के बिना उनका उद्धार नहीं हो सकता है। वे पर्दा प्रथा के प्रबल विरोधी तथा स्त्री-शिक्षा के कट्टर अनुयायी थे। सर सैयद अहमद खाँ ने मुसलमानों की बदतर स्थिति को समझा और उनमें नई शिक्षा का प्रचार और नवजागरण लाने के लिए 1875 ई० में अलीगढ़ में मुहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज की
स्थापना की, जो कालान्तर में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से विख्यात हुआ। सर सैयद अहमद खाँ ने ही मुसलमानों में राजनीतिक जागरण लाया। सर्वप्रथम उन्होंने ही हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रयास किया। इसलिए इलबर्ट बिल के समय उन्होंने हिन्दू और मुस्लिमों को भारत माँ की दो आँखें कहा, पर कालान्तर में जब वे कांग्रेस से अलग हो गये तब उन्हें यह भय हुआ कि कहीं भारत में अल्प मुसलमानों के अधिकारों का हरण न हो जाय, इसलिए उन्होंने मुसलमानों में साम्प्रदायिकता की भावना को उभारा। उनके विचार से मुसलमानों का हित उसी में था ।
ख.19 वीं सदी में हिन्दू पुनरूत्थानवादी आन्दोलन का जन्म हुआ? साम्प्रदायिक भावों के पनपने में इन सभी आन्दोलन का क्या योगदान है?
उत्तर : 1924 ई० में चेक गणराज्य (तुर्की) के खलिफा का खात्मा हो गया। इसके परिणामस्वरूप खिलाफत आंदोलन का तेज प्रभाव समाप्त हो गया। लेकिन जिस धार्मिक भावना का सूत्रपात हुआ था। इस समय हिंदू महासभा की तरह उग्र हिंदू जातीवादी संगठनों का वर्चस्व बढ़ते जा रहा था। कांग्रेस के साथ इन सभी संगठनों का घनिष्ठता बढ़ता जा रहा था। मदनमोहन मालवीय ने प्रमुख नेताओं को हिंदुत्ववाद क्रिया-कलापों से कांग्रेस को प्रमुख रूप से फायदा कराया मुस्लिम सम्प्रदाय धीरे-धीरे कांग्रेस से और दूर होता चला गया। 1930 के दशक में दोहरी जाति के साम्पादायिक विचित्रता का महत्त्वपूर्ण समय था। 1930 ई० में मुस्लिम लीग का सभापति मोहम्मद इकबाल एवं उसके पश्चात् कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश बलुचिस्तान तथा कश्मीर को लेकर अलग प्रदेश गठन करने का प्रस्ताव दिया। रहमत अली ने साफ-साफ तौर पर पाकिस्तान की बातों का उल्लेख किया था।
1930 के दशक में दोहरी जाति के सामदायिक विभिता का महत्वपूर्ण समय था। 1930 ई० में मुस्लिम लोग का सभापति मोहम्मद इकबाल एवं उसके पश्चात् कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रदेश, बलुचिस्तान तथा काश्मीर को लेकर अलग प्रदेश गठन करने का प्रस्ताव दिया। रहमत अली ने साफ-साफ तौर पर पाकिस्तान की बातों का उल्लेख किया था। 1932 ई० के ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमेस मैकडोलान्ड के घोषणा पत्र में साम्प्रदायिक बँटवारा की बात कही गयी थी। इस घोषणा में ब्रिटिश सरकार के विभाजन तथा शासन नीति प्रतिफलित हुई थी।
ग. आहिंसा, असहयोग आन्दोलनों में किस प्रकार मुसलमान नेताओं ने दूरी बनाये ?
उत्तर: 1922 ई० में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। इसके साथ ही खिलाफत आंदोलन भी शिथिल पड़ गया। खिलाफत आंदोलन के नेताओं ने महात्मा गाँधी के अहिंसा नीति को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। बल्कि महात्मा गाँधी के जन लोकप्रियता का प्रयोग करके खिलाफत आंदोलनकारी जनता के करीब पहुँचने का प्रयास किये। उलेमाओं की उपस्थिति तथा धर्मों के प्रतीक के प्रयोग के कारण इस्लामी आदोलन धार्मिक भावनाओं को जागृत करने में सहायक हुआ। इसके साथ-साथ समान रूप से उग्र हिन्दू पुर्नजीवी आंदोलन भी गति पकड़ रहा था। इस समय हिन्दू महासभा की तरह उग्र जातिवादी संगठनों का वर्चस्व बढ़ते जा रहा था काँग्रेस के साथ इन सभी संगठनों का मनिष्ठता बढ़ता जा रहा था। मदनमोहन मालवीय आदि प्रमुख नेताओं ने हिंदुत्ववादी क्रियाकलापों से काँग्रेस को प्रमुख रूप से फायदा कराया। इन्हीं कारणों से मुस्लिम संप्रदाय धीरे-धीरे कांग्रेस से दूर होता चला गया।
उग्र हिंदू नेताओं के दबाव में मोतीलाल नेहरू जैसे स्वराजपंथी नेता हिंदू-मुसलमान को एक साथ लेकर चलने के लिए मजबूर हुए। मुहम्मद अली जिना स्वराजधियों के साथ तालमेल के लिए उत्साहित थे, लेकिन 1926 ई० के चुनाव में बंगाल और पंजाब में कांग्रेस के बीच कोई भी मुसलमान पार्थी नहीं था। जातीय आंदोलन से मुसलमानों के अलग हो जाने के प्रलोभन को ही सांप्रदायिकता' कहकर व्याख्या की गई। लेकिन अंदर की बात पता लगाने पर यह देखने को मिलता है कि जो 1930 के दशक में राजनीति में भी मुसलमानों का अलग स्थान था, जिसके परिणामस्वरूप 'मुस्लिम सांप्रदायिकता कहकर किसी भी निश्चित अवस्था को बतलाना ऐतिहासिक भूल माना जा सकता है।
घ. सन् 1940-1947 ई० तक किस प्रकार भारत भाग्य स्पष्ट हुआ? भारत विभाजन कहाँ तक आवश्यक और उचित था ? अपने उत्तर को योग्य तर्क के साथ प्रस्तुत करो।
उत्तर: जय भारतवासी बीसवी शताब्दी के आरंभ के साथ स्वाधीनता आंदोलन की ओर अग्रसर हो रहे थे, उसी समय कुछ कट्टरवादी मुस्लिम नेता मुसलमानों के लिए पृथक संरक्षण की माँग करने लगे। उन्हें भारत जैसे हिन्दू बहुल राष्ट्र में अपना अधिकार खो जाने का भय सता रहा था हिन्दू वर्ग के कट्टरवाद का सामना करने के लिए उन्हें एक ऐसी संस्था की स्थापना करने की आवश्यकता हुई जो हिन्दुओं को पूरी तरह जवाब दे सके। इस संस्था का मूल उद्देश्य मुस्लिम हितो को रक्षा करना था। इसी उद्देश्य से 1906 ई० में मुस्लिम लोग को स्थापना की गई। लीग ने आरम्भ से ही साम्रदायिक रुख अपनाया। लीग को सांप्रदायिक गतिविधियों के कारण हिन्दू और मुसलमान वर्गों के बीच विवाद की दरार और भी चौड़ी होती गयी। इस दरार को 1916 ई० में लखनऊ समझौते द्वारा पाटने का भी प्रयत्न किया गया। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी ने इस उद्देश्य से समर्थन किया कि शायद इससे दोनों वर्गों के बीच का विवाद समाप्त हो जाय, परन्तु यह विवाद उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया।
1927 ई० में लीग के दो गुट होने पर एक गुट का नेतृत्व जिन्ना ने किया। वे उस समय तक भी हिन्दू-मुस्लिम समस्याओं के समाधान के लिए संयुक्त निर्वाचन की बात को महत्व देते थे ।
1937 ई० के आम चुनाव में कांग्रेस की भारी सफलता से जिन्ना जैसे महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति के लिए घबरा जाना स्वाभाविक था। इसलिए जिन्ना ने कांग्रेस को हिन्दुओं की संस्था घोषित कर इसे मुसलमानों के हितों का घातक बताया। जिन्ना ने सर्वप्रथम 'पाकिस्तान नामक नये राष्ट्र की स्थापना की माँग उठाया और जिन्ना की इस माँग से मुसलमान वर्ग अत्यन्त खुश हुआ और इस प्रकार जिन्ना मुसलमानों के सर्वेसर्वा नेता के रूप में प्रकट हुए। 22 नवम्बर, 1939 ई० के दिन जब कांग्रेस ने मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दिया तो मुस्लिम लीग ने उस दिन को 'मुक्ति दिवस बताया। जिन्ना और लीग के इशारे पर 1946 ई० में भीषण हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। लीग ने 16 अगस्त, 1946 ई० को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस (Direct action day) घोषित कर हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य को और बढ़ा दिया। सरकार भी इस झगड़े से प्रसन्न थी। वह पाकिस्तान की माँग को उचित बताकर उसका समर्थन करती थी। 1947 ई० में माउण्टबेटन योजना द्वारा भारत और पाकिस्तान नामक दो इकाइयों का गठन किया गया ।14 अगस्त, 1947 ई० को एक स्वतन्त्र मुस्लिम राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान का निर्माण हुआ ।